डॉ0 निर्मला शर्मा

श्रमिक
जेठ की तपती दुपहरी
पूस की बर्फ़ीली रातें
कोई भी मौसम होता
श्रमिक कभी नहीं सोता

हाड़तोड़ करता परिश्रम
न शिकायत न कोई गम
सन्तोषी रहता सदा ही
राम जप कहता सदा ही

ईमान का पक्का श्रमिक
इरादों से डिगे न तनिक
काम कैसा भी हो कठिन
उत्साह नहीं होता मलिन

तन से निकला जो पसीना
धरती उगले उससे सोना
उपजाऊ बनाता कभी वह
ठोकता मंजिल कभी वह

डॉ0निर्मला शर्मा
दौसा राजस्थान

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