*सजल*
समांत--आरे
पदांत--होते हैं
मात्रा-भार--26
कभी नहीं मिलते जो,नदी-किनारे होते हैं,
जो दे समय पे साथ, वही सहारे होते हैं।।
वैसे तो हैं स्रोत बहुत, उजियारा पाने के,
जो करें सदा प्रकाश, वही सितारे होते हैं।।
लाभ-हानि की चिंता कुछ,को रहती नहीं कभी,
ऐसा करते हैं जो, मन - बंजारे होते हैं।।
देकर वचन भूलते जो, होते नाग भयंकर,
ऐसे कपटी जन जिह्वा, दो धारे होते हैं।।
निज कुल-परिवार त्याग जो,करें सुरक्षा माँ की,
ऐसे सैनिक भारत माँ को, प्यारे होते हैं।।
बड़े-बड़ों की सेवा करना,अपना धर्म सनातन,
सेवा-रत - जन कुल के, सदा दुलारे होते हैं।।
कर्म करें फल मिले नहीं, होता सदा असंभव,
रखें सोच विपरीत वही,मन - मारे होते हैं।।
©डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
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