डॉ0 हरि नाथ मिश्र

*सजल*
 समांत--आरे
पदांत--होते हैं
मात्रा-भार--26
कभी नहीं मिलते जो,नदी-किनारे होते हैं,
जो दे समय पे साथ, वही  सहारे होते हैं।।

वैसे तो हैं स्रोत बहुत, उजियारा पाने के,
जो करें सदा प्रकाश, वही सितारे होते हैं।।

लाभ-हानि की चिंता कुछ,को रहती नहीं कभी,
ऐसा  करते  हैं  जो, मन -  बंजारे  होते  हैं।।

देकर वचन भूलते जो, होते  नाग  भयंकर,
ऐसे कपटी जन जिह्वा, दो  धारे  होते  हैं।।

निज कुल-परिवार त्याग जो,करें सुरक्षा माँ की,
ऐसे  सैनिक  भारत  माँ  को, प्यारे  होते  हैं।।

बड़े-बड़ों  की  सेवा  करना,अपना धर्म सनातन,
सेवा-रत - जन  कुल  के, सदा  दुलारे  होते  हैं।।

कर्म करें फल मिले नहीं, होता  सदा  असंभव,
रखें  सोच  विपरीत  वही,मन - मारे  होते  हैं।।
               ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
                    9919446372

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