डॉ0हरि नाथ मिश्र

पहला अध्याय-7
    *पहला अध्याय*(श्रीकृष्णचरितबखान)-7
भोज-बंस कै तुमहिं अधारा।
एकमात्र बंसज होनहारा।।
    बड़-बड़ सूर-बीर-बलवाना।
    तुम्हरो जसु गावहिं बिधि नाना।।
अहहि एक ई अबला नारी।
दूजे ई तव बहिना प्यारी।।
    तीजा मंगल-परिनय-अवसर।
    यहि का बध नहिं होई सुभकर।।
सुनहु बीरवर धरि के ध्याना।
होय जनम सँग मृत्युहिं आना।।
    आजु होय वा कबहूँ होवै।
     कहहुँ साँच ई होवै-होवै।।
होवै जब सरीर कै अंता।
धरहि जीव बपु अपर तुरंता।।
    जिव तन तजै करम अनुसारा।
     जस पग-चापहि उठै दुबारा।।
तजहि तिरुन जबहीं जल-जोंका।
अपर तिरुन कै मिलतै मौका।।
    कबहुँ-कबहुँ नर जाग्रत-काले।
    बैभव चहइ इंद्र कै पा ले।।
भाव-बिभोर मगन ह्वै सोचै।
निज विपन्न गति सपन बिमोचै।।
    बिसरै जनु अस्थूल सरीरा।
    अमरपुरी-सुख लहहि अधीरा।।
भूलै जीव अइसहीं देहा।
कर्म-कामना विह्वल नेहा।।
    प्रबिसहि अपर सरीरहि जीवा।
    कइके प्रथम बपू निरजीवा।।
जीव क मन बिकार-भंडारा।
इच्छा-तृष्ना-बिषय-अगारा।।
     जेहि मा अंत समय मन रमई।
      ताहि सरीर जीव पुनि धरई।।
चंचल जीव समीरहि नाई।
जल बिच ससी-रबी-परिछाँई।
      इत-उत हिलै पवन लइ बेगा।
      वइसइ रहै जीव संबेगा।।
रहइ जीव जग जे-जे देहा।
रखइ मोह,मानै निज गेहा।।
     यहि सरीर कै आवन-जावन।
      भ्रम बस समुझइ निजहि करावन।।
जे चाहसि जग निज कल्याना।
करिव न द्रोह कबहुँ अपमाना।।
दोहा-द्रोही जन भयभीत रहँ, सत्रुन्ह तें यहि लोक।
        मरन बाद डरपहि उहइ, जाइ उहाँ परलोक।।
                          डॉ0हरि नाथ मिश्र
                            9919446372

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