डॉ0 हरि नाथ मिश्र।

*पहला*-5
   *पहला अध्याय*(श्रीकृष्णचरितबखान)-5
कृष्न-चरित सुनि कलिमल-नासा।
मिटै भरम अरु बढ़ै हुलासा।।
     सुधामयी लीला जदुराई।
      करत पान हिय सभें जुड़ाई।।
कहे तुरत तब मुनि महराजा।
सुनि के प्रश्न परिच्छित राजा।।
     किसुन-कथा कै महिमा भारी।
     गंगा-जल इव सुचि अरु न्यारी।।
सालीग्राम-पदामृत नाईं।
बक्ता-श्रोता-कर्त्ता भाईं।।
    सुनहु परिच्छित कह सुकदेवा।
     जाहि समय प्रभु जनमै लेवा।।
मही रही बहु पीड़ित-दुखिता।
दंभी-अभिमानी नृप सहिता।।
बहु-बहु असुर-दैत्य चहुँ-ओरा।
रहा न जाकर ओरा-छोरा।।
    मही धारि तब धेनू रूपा।
    रोवत पहुँची ब्रह्म अनूपा।।
कृषित गात बिनु दाना-पानी।
कही जाइ निज दुखद कहानी।।
     सुनत मही कै कथा-प्रसंगा।
     ब्रह्मा चले देव-सिव संगा।।
पृथ्वी साथे सकल समाजा।
लइ पहुँचे पय-सागर तट जा।।
    जहाँ रहहिं पुरुषोत्तम देवा।
     जासु कृपा सभ देवन्ह लेवा।।
कीन्हा सभ मिलि तहँ अह्वाना।
'पुरुष-सूक्त'पढ़ि पुरुष-प्रधाना।।
    समाधिस्थ तब ब्रह्मा भयऊ।
    सुनत भए नभ-बानी तहँऊ।।
प्रभू-आगमन जग मा होई।
पृथ्बी अब नहिं गरिमा खोई।।
     ब्रह्मा कहे सुनहु सभ देवहु।
     जदुकुल जनम तुमहिं सभ लेवहु।।
जब लगि प्रभू करहिं तहँ लीला।
तब लगि रहहु उहाँ अनुसीला।।
   होंइहैं स्वयं प्रकट पुरुषोत्तम।
    बसुदेवहिं गृह जाइ नरोत्तम।।
सकल अपछरा अमरपुरी कै।
करिहैं सेवा किसुन हरी कै।।
   लेइ जनम गोपिन्ह कै तहवाँ।
   राधहिं सेवा करिहैं उहवाँ।।
स्वयं प्रकास सेष भगवाना।
जाहिं अनंत सकल जग जाना।।
    प्रिय भगवान सहस मुखधारी।
     प्रभु कै भ्रात जेठ अवतारी।।
सँग-सँग करिहैं दुष्ट-दलन वै।
जस चहिहैं प्रभु किसुन ललन ह्वै।।
दोहा-माया कृष्णहिं योग कै, बैभव-कला-प्रधान।
        आयसु पाइ क नाथ कै, लीला करी महान।।
                        डॉ0हरि नाथ मिश्र।
                         9919446372

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