सुनीता असीम

यादों का इक निशाँ तो रहने दे।
आदमी हूं       गुमाँ तो रहने दे।
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है अधूरा मिलन हमारा ये।
वस्ल की दास्तां तो रहने दे।
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छिन गई है ज़मीं मेरी कब की।
सर पे इक आसमां तो रहने दे।
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मत करो नफरतों का सौदा यूं।
प्रेम का कुछ समां तो रहने दे।
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जानती हूं मेरा नहीं है तू।
देखने में गुमां तो रहने दे।
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सुनीता असीम
१/४/२०२१

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