गीतिका
क्या अदा है ये निराली अक्षि काजल धार की
नैन से घायल बनाती धार दे तलवार की।
प्रीत का पौधा लगा पानी न डाला आपने ,
प्यास इसकी दो बुझा अब दे अधर रस धार की।
दिल हमारा ले गई वो नैन का जादू चला ,
भृंग को ज्यों है बुलाती वो कली कचनार की।
सर झुकाकर शर चलाया वार दिलपर है किया
क्यों सताती हो हमें दो घूंट दे दो प्यार की।
प्रीत से नहला हमें दो है घड़ी ये प्यार की ,
खोल बाहे दीजिए जी प्रीत के उपहार की।
प्रीत तुम से मांगने आए कभी कोई नहीं ,
दो मुझे तुम भी इजाजत प्रेम के अधिकार की।
तुम न दो गी प्रीत दिलबर और देगा कौन फिर ,
मत सताओ अब हमें तुम भेंट दे दो प्यार की।
ऐ खुदा वो क्यों हमारे ही हृदय में है बसी ,
क्यों उड़ाती वो रही नींदें हृदय घरबार की।
क्यों दिखाया ऐ खुदा हरपल उसे ही ख्वाब में ,
लाज रख ले ऐ खुदा अब रुद्र के इजहार की।
नाम दिल में छप गया जो वो न अब है मिट रहा ,
नाम लेना है सरल वो है परी संसार की।
संदीप कुमार विश्नोई रुद्र
दुतारांवाली अबोहर पंजाब
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