काव्यरंगोली आज का सम्मानित कलमकार दावानी

 परिचय


नाम    लक्ष्मण दावानी


पिता   स्व.श्री हरपाल दास दावानी


शहर   जबलपुर


जिला  जबलपुर


राज्य   मध्य प्रदेश



गीतिका


दिल  मुहब्बत  में  उसे  अपना  जलाते देखा

अपना  दामन  उसे  अश्कों  से भिगाते देखा


हर  तरफ  फैल  रहा  है ये उजाला  जिस से

चाँद  आँचल  में  उसे  वो  ही  छुपाते   देखा


थी  नसीबों  में  लिखी  जिस के बुलंदी छूना

सब से  नजरें  उसी  को ही  है  चुराते  देखा


दाग  दामन  पे  थे उस के  बे बसी के शायद

सर  इबादत  में  सदा उस को  झुकाते  देखा


प्यार , इजहार , मुहब्बत  पे  भरोसा  कर के

अश्क   आंखों  से   उसे  हमने  बहाते  देखा


आईना खुदको बनाकर के हकीकत का अब

ऐब  अपने   ही  उसे   सब  से  छुपाते  देखा

            



अनबुझी प्यास थी दिलमें या शराफत उसकी

रिश्ता   अपनो  से  उसे   खूब  निभाते  देखा



दिलो के  दर्द का  कोई सहारा  क्यों नहीं होता

भरी दुनिया में भी कोई हमारा  क्यों नहीं होता


तड़फ कर  दे रही है आरजू भी ये सदाएं अब

निगाहों में हमारी अब नजारा  क्यों नहीं होता


मुहब्बत कसमसाती ही रही है उम्र भर दिल में

हमारे  इश्क का कोई , किनारा क्यों नहीं होता


भटकता  ही  रहा  हूँ  मैं  जमाने  से अंधेरो  में 

दिखादे जो हमें मंजिल वोतारा क्यों नहीं होता


नहीं है जब नसीबो में , लिखी  मेरे मुहब्बत तो

बिना इसके मेरा फिर ये गुजारा क्यों नहीं होता


बसा है दिल में जो मेरे  जमाले हुस्न ओ यारा 

निगाहों  से मेरी  उसका उतारा क्यों नहीं होता

                




समा बाहों में तुम अपना, ठिकाना भूल  जाओगे

करूँगा  प्यार  में  इतना  , ज़माना भूल  जाओगे


लगा के  देख लो हमको गले अपने  कभी जानम

अदा से  इस तरह हम को , रिझाना भूल जाओगे


चुरा  लूँगा  निगाहों  से तेरी  में इस  तरह काजल

शरारत से  किसी का दिल , चुराना भूल जाओगे


अंदाजे  गुफ्तगू  मेरा  कभी  जो  देख  लोगे तुम

जुबां  से  तुम  मुझे अपनी लुभाना भूल जाओगे


अगर जो  देख लोगे जख्म सीने  पर  मुहब्बत के

नजर से  तीर  तुम अपने , चलाना  भूल जाओगे


अधूरे  ख्वाब  जलते  देख आँखों में  मुहब्बत के

सुहाने  खाब  नज़रो   में  सजाना  भूल  जाओगे

             ( लक्ष्मण दावानी )




ख्वाब झूठे सजाने से क्या फायदा

रेत पर  घर  बनाने से क्या फायदा


जो  अंधेरे  मिटा   ही  न  पाएँ  मेरे

दीप  ऐसे  जलाने से  क्या  फायदा


जो बना दे  तमाशा  तेरी जीस्त को

उनसे रिश्ता निभाने से क्या फायदा


मौत से  ज़िन्दगी जीत  सकती नहीं

उस से नज़रें चुराने  से क्या फायदा


तुलते हों रिश्ते धन के तराजू में जो

उनकोअपना बनाने से क्या फायदा


काम नाआए मजलूम के जो किसी

ऐसी दौलत कमाने से क्या फायदा

( लक्ष्मण दावानी ✍जबलपुर )

20/9/2020




मैल ही मैल हो जब भरा मन में तो

ऐसे  गँगा  नहाने  से  क्या  फायदा


थाम   ले  हाथ  मेरा  आज   सवँर  जाने  दे

भर ले  बाहों  में  मुझे आज  बिखर  जाने दे


आग  जो  दिल में  मुहब्बत कि  लगी है मेरे

अपने  दिल  मे  तू  उसे आज उत्तर जाने दे


ओढ़ कर अपने  लिहाफो  में मुझे ऐ हमदम

अपने  पहलू  में  मुझे  आज  ठहर  जाने दे


माँग के लाये हैं हम चन्द मिलन की घड़ियाँ

प्यार  में  डूब  के  मुझे  अपने मर  जाने  दे


हम छुपा लेंगे नशेमन  में बसा  कर तुम को

साथ इक पल तो  जरा अपने गुजर जाने दे

          ( लक्ष्मण दावानी


✍ )

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