काव्यरंगोली आज का सम्मानित कलमकार प्रीतम कुमार झा महुआ, वैशाली, बिहार

 संक्षिप्त परिचय

प्रीतम कुमार झा,  अंतरराष्ट्रीय युवा कवि, गायक सह शिक्षक, महुआ, वैशाली, बिहार 

भारत प्रभारी अंतर्राष्ट्रीय काव्य प्रेमी मंच, तंजानिया, अफ्रीका

राज्य प्रभारी सामयिक परिवेश बिहार अध्याय

राज्य सचिव राष्ट्रीय साहित्य वाटिका

श्रृंगार और वीर रस कवि

अब तक 1000 से अधिक राज्यस्तरीय, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हो चुका है।

हिन्दी साहित्य रत्न, पद्म श्री विष्णु वाकणकर पुरस्कार, सारस्वत सम्मान, वैशाली साहित्य रत्न सम्मान, साहित्य श्री सम्मान, पूर्वी अफ्रीका तंजानिया से अंतर्राष्ट्रीय काव्य प्रेमी मंच पुरस्कार,साहित्य गौरव सम्मान,समरस साहित्य सम्मान,हिंदी सेवी सम्मान-2021 इत्यादि ।स्वप्न-साहित्य सेवा,भारत सेवा ।

रचना की झलक-

"अपनी अंतर्ज्योति से तम का नाश कर दूं,

 तेरे नाम मैं अपनी सारी तलाश कर दूं, 

मैं खुद की खोज में भटकता रहा अब तलक,

अब आंखें मूंद के तुझपर सारा विश्वास कर दूं ।"




अधूरी प्यास

सूनी हो गयी, दिल की गलियां,

सूख गयी है,प्यार की कलियाँ

अब तो दरस दिखा जा,

बिछड़े साथी आजा-2


तुम हो हमारे, हम भी तुम्हारे,

हर पल दिल अब,तुझको पुकारे

अब तो सामने आजा,

बिछड़े साथी आजा-2


तेरी बिन अब जी ना सकेंगे,

जख्मों को अब सी ना सकेंगे

तूं हीं राह दिखा जा,

बिछड़े साथी आजा-2


मन में बसी है सूरत तेरी,

मेरी पूजा मूरत तेरी

प्यार को प्यार दिला जा

बिछड़े साथी आजा-2

       ---प्रीतम कुमार झा

    महुआ, वैशाली, बिहार ।



       

             शहीद उधम सिंह जी।


है तुझे मां नमन,जां से प्यारा वतन,

जग का सिरमौर है,शांति का ये चमन।

दासता को मिटाने, उस अंग्रेज से-2

बांध सर पे वो आया था,जिसने कफन।

है तुझे.....!!!

             

       जन्मे पंजाब के गाँव सुनाम में,

      रह सके ना अधिक, ममता की छांव में ।

       फिर तो भटके उधम,इस गली-उस गली-2

      कितने छाले पड़े,फूल से पांव में ।

       है तुझे....!!!


आयी वैशाखी की एक पावन घड़ी,

सबके मन में समायी,खुशी की लड़ी।

आ गया फिर अचानक, वो डायर तभी-2

जिस तरफ बाग में, देखो लाशें पड़ी ।

है तुझे...!!!


           मन में उस दिन उधम ने इरादा किया,

           मार दूंगा उस डायर को वादा किया ।

           तोड़ दूंगा गुलामी की सब बेड़ियां-2

           बाजुओं के भरोसे को ज्यादा किया ।

           है तुझे....!!!


आग बदले की दिल में तो जलती रही,

साल पे साल और रूत बदलती रही।

फिर तो आया वो दिन जिसका इंतजार था-2

गोली पापी के सीने पे चलती रही।

है तुझे...!!!


           राम सिंह हैं मोहम्मद वो आजाद हैं,

           हर बुराई से जीते वो फौलाद हैं ।

           फंदे को चुमकर चढ़ गये फांसी वो, 

          आज भी सबके दिल में, वो आबाद हैं।

          है तुझे...!!!


                 ---प्रीतम कुमार झा,बिहार, भारत ।


 


 गोरा-बादल का बलिदान


धन्य भूमि है भारत तेरी, सबसे अलग पहचान है,

तुमने वीर जने हैं कितने, हमको ये अभिमान है।


तेरी इज्जत की खातिर मां,सबकी जां कुर्बान है,

है हमको ये फख्र ये मैया, हम तेरी संतान हैं ।


वीर वो धरती जहां अमर सिंह, रहते स्वाभिमान से,

प्यार उन्हें था जान से बढ़कर, अपने वतन की शान से।


काल चक्र ने कुचक्र चलाया, काली घटा घिर आयी,

खिलजी की सेना से नौबत,आर-पार की आयी ।


जब देखा पापी खिलजी ने,पार कठिन है पाना,

किया षड्यंत्र उसने धोखे से,कुंवर को किया निशाना ।


तब पद्मिनी मां ने बढ़कर, थाम लिया बागडोर,

घोष हुआ धरती-अंबर में ,किया सबने था गौर।


गोरा-बादल पूत थे सच्चे, रानी से किये कुछ वादा,

सकुशल लायेंगे अपने कुंवर को,दृढ़ था उनका इरादा।


मां पद्मिनी साथ चली,डोली संग चतुर कहार,

मानो दुश्मन दलन को उद्यत, स्वयं कालिका तैयार ।


हुई लड़ाई ऐसी जैसा, देखा ना कोई जग में,

बिजली बनकर टूट पड़े,दुश्मन के वो पग-पग में ।


जो ठाना था मन में सबने,आखिर पूर्ण हुआ वो,

पर गोरा-बादल कब होते,दुश्मन से कभी काबू।


प्रलय बने वो,काल बने वो,मच गया हाहाकार,

दुश्मन सेना डरकर भागी,मच गयी चीख पुकार ।


तभी अचानक सबने मिलकर, घेर लिया बांकुरों को,

जैसे गीदड़ घेर हैं लेते,कभी-कभी कुछ शेरों को।


जबतक जान बची थी तन में, हाहाकार मचाये,

शीश कट गये फिर भी,दोनों मस्तक नहीं झुकाये।


वीर शिरोमणि कहलाये वो,अमर बने इतिहास में,

नाम रहेगा हरदम उनका, हर सांसों की सांस में ।

    

               ---प्रीतम कुमार झा।

          महुआ, वैशाली, बिहार

             9525564374


चलो एक बार फिर से


------------------------------------

चलो एक बार फिर से प्यार में, सपने सजायें हम,

खो के एक-दूजे में खुद को,अब भूल जायें हम।


बहुत रोये तेरी खातिर, मगर अब रो न पायेंगे,

बहुत खोया है उल्फत में, मगर अब खो न पायेंगे ।


बने मिसाल कुछ ऐसे, वहीं करके दिखायें हम,

चलो एक बार फिर से प्यार में, सपने सजायें हम ।


माना यार दुनियां में कठिन ,राहें मोहब्बत की,

मगर दिल का करूं अब क्या, जरूरत एक-दूजे की।


सफर इस इश्क का मिलकर, सनम ऐसे बिताये हम,

चलो एक बार फिर से प्यार में, सपने सजायें हम ।


जुनून-ए-प्यार का हमपर,असर ये है भला कैसा,

मुझे सारी लगे दुनियां, तुम्हारे ख्वाब के जैसा ।


बस्ती में दीवानों की,अब अव्वल तो आयें हम,

चलो एक बार फिर से प्यार में, सपने सजायें हम ।

                       

                  ---प्रीतम कुमार झा 

            महुआ, वैशाली बिहार


 बेटी

-----------------

बेटियाँ जान हैं, बेटियाँ मान हैं-2

बेटियों से हमारी ये पहचान है।

 घर में बेटी जो है,फिर तो रौशन है घर,

बेटियों से है होता, सुख से बसर।

बेटियाँ ख्वाब हैं, दिल के अरमान हैं,

बेटियों से हमारी ये पहचान है।

हर कदम साथ दे,सबसे आगे रहे,

भाग्य उनसे हमारे ये जागे रहे ।

सच कहूं बेटियाँ, सबकी मुस्कान हैं,

बेटियों से हमारी ये पहचान है।

जग का है वो सृजक,है खुशी से चहक,

रूप कितने धरे,फूलों की हैं महक ।

बेटियाँ जो न हो,फिर तो क्या शान है,

बेटियों से हमारी ये पहचान है।

              ---प्रीतम कुमार झा

    महुआ, वैशाली, बिहार


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...