काव्य रंगोली आज का सम्मानित कलमकार मनीषा जोशी मनी ग्रेटर नोयडा

 संक्षिप्त परिचय. नाम मनीषा जोशी

जन्म 13मई

पता सिल्वर सिटी ग्रेटर नोयड़ा

कवयित्री..कई संस्था से सम्मानित तीन पुस्तकें प्रकाशित.कई मंचों से काव्यपाठ व पत्र पत्रिकाओं मे रचनाऐं लेख व कहानियां प्रकाशित.

mj0001997@gmail.com


यशोधरा..कविता 1

बरसों बाद हुए हैं दर्शन,आज तुम्हारे

निष्ठुर, पाथर ,भगवन बोलों कैसे 

 करूं तुम्हें संबोधन ...

अर्ध रात्री की स्वप्न बेला में छोड़ अकेला 

सरल राह को मेरी अंचित कर डाला..

विरह अश्रु आहें यादें थी. आत्म ग्लानि..

वेदना के हर एक क्षण में थी कहानी..

थे भयावह कितने मेरे वो स्वप्न जिनमें..

वन में वृक्षों के मध्य तुम जाते दिखे थे

मार कर सम्पूर्ण इच्छाऐं मेरे ह्दय की.

वन गमन कर तुम समर्पित हो गये थे

मोह माया तज खड़े हो आज जो तुम बुद्ध बनकर 

मैं भी पालनहार बनी हूं कर्तव्यों को यू सिद्ध कर 

काट लिया एकाकी ही मैनें ये जीवन सारा

अपने भीतर की शक्ति को जब  ललकारा

रोते राहुल को तब लगाकर मैं छाती से...

पालती थी पोसती थी जलती थी बाती सी

ज्ञान हुआ तुमको तो मुझको भी भान हुआ.

स्त्री की पूर्णता का शक्ति का अनुमान हुआ..

मैं सृष्टि, मैं धरती, मैं जीवन के प्रतिमानों सी.

मैं यौगिक, मैं नैतिक, मैं दुख: के निदानों सी.

 आज स्वागत तुम्हारा है भगवन इस आँगन में .

हे बुद्ध अब तनिक भी कटुता नहीं इस मन में.

@मनीषा जोशी मनी..




खिड़कियाँ--कविता 2

दिन ढलते  ही काटने लगता है अकेलापन, बोझ से लगते है दरवाजे ,डराने लगती है खिड़कियां, गुज़र रहें है दिन बस यू ही थकान भरी साँसो की तरह।

 अकसर जब मैं देखती हूं इन खिड़कियों के शीशे से मई जून की चिलचिलाती धूप, नस नस में मेरी उबलने लगतीं हैं  वो उजली सुनहरी यादें,

 जब पड़ता है इन खिडकियों के शीशे में आग सा चमकता सूरज पिघलने लगता है सालों पुराना दर्द बूंद- बूंद कर बहने लगता है मेरे गालों पर।  वही बरसात में जब नम आखों से देखती हूं  मैं इन खिड़कियों को छूती बारिश भीग जाती हूं भीतर तक खुद ब खुद कई बार होने लगती है इन आँखों से ढेरों बरसात, और कांटों सी चुभती है ये सर्दियों की ठंडी रातें जब जमती इन कांच की  खिड़कियों में ओस की  बूंदें और धीरे- धीरे फिसल कर मिटाती बनाती हैं अनेक डरावनी आकृतियाँ बिलकुल वैसी जैसे मेरे मन के भीतर बनती बिगड़ती रहती हैं ना जाने क्यों इन खिड़कियों और मुझमे  बहुत कुछ समान लगने लगता है उस पल, लेकिन फिर भी मुझसे कही ज्यादा भाग्यशाली है ये खिड़कियां ,जिन पर हर वक़्त रहती है मेरी नज़रें तुम्हारे इंतज़ार में, कुछ नया कुछ अलग देखने की  चाह में,  पर मुझ पर??? नहीं- मुझ पर नही रहती किसी की  नज़र न किसी को है मेरा इंतज़ार जब से तुम गये हो छोड़कर मुझको पतझड़ में।

@मनीषा जोशी।

ग्रेटर नोएडा ।


3 श्रद्धांजलि 

बोझिल  मन है ,रोती आँखे 

राह दिखाने वाला देखो 

आज हमें यू ,छोड़ चला है 

शान्त देह है मौन कवि मन _

अश्रु  लिए हैं विश्व के जन जन 

दूर दूर तक ,भीड़ जमा है _

आज एक सूरज ,अस्त हुआ है 

शोकाकुल है ,समस्त दर्शक

जीवन पथ का ,पथ प्रदर्शक.

जीवन से मुँह ,मोड चला है 

आज रो रहे ,भारतवासी 

ह्रदय ह्रदय ,में भरी उदासी _

एक युग का अंत हुआ है 

कोई ना ऐसा संत हुआ है

 राजनीति में रहकर जिसने 

पाठ पढ़ाया मानवता का 

अर्पण किया देश को जीवन _

लोभ न था जिसको सत्ता का .

कर्म प्रधान था जिसका तन मन_

जिसका धन था ये कविताधन

मुखमंडल मे तेज सजा था

वाणी मे भी अोज भरा.था

जिसने  वाणी के गौरव से

मन से बांधें मन के धागे 

राह दिखाई, अटल जो हमको

हम सब चले उसी पर आगे _

अमृत की अभिलाषा है जब

 विष के पीछे क्यो हम  भागें 

अमृत की अभिलाषा है जब

 विष के पीछे क्यों हम भागे 

मनीषा  जोशी  मनी



गीत 4

मन से मन में  बीज लगन का  बोना बहुत ज़रूरी है

प्रेम अगर है संवादों का  होना बहुत ज़रूरी है।

कुंठित मन होगा तो कैसे रिश्तों में खुशबू महकेगी।

त्याग समर्पण से ही तो आँगन में हर खुशी चहकेगी

छोटे छोटे दुख सुख को जब हम आपस में बाँटेंगे।

मन में तब वो नेह भरी फूलों की  डाली लहकेगी।

रिश्तों की  गागर को मन से ढोना बहुत ज़रूरी है

प्रेम ....

एक दूजे की पीड़ा को आँखों से पढ़ना होता है।

प्रेम भरी औषधि से मतभेदों को भरना होता है।

खट्टी मीठी बातों से मीठे को चुनना होता है।

अन्तर्मन से पावन संबंधों को गढ़ना  होता है।

दुख में  सुख में साथ चलें, ये चलना बहुत ज़रूरी है

प्रेम अगर है...

अलसाई  सी आँखों से रातों को जगना पड़ता है।

अर्पण कर सर्वस्व कभी खुद को ही ठगना पड़ता है।

निश्चित करना उस क्षण खुद तुम सच्चाई पर चलना है।

प्रेम नगर नें विश्वासों के  पीछे चलना पड़ता है।

छल को पथ से दूर करे जो, टोना बहुत ज़रूरी है।

प्रेम अगर है....

मनीषा जोशी मनी



गीत5

मैंने जीवन मे जो खोया तुमको वो न खोने दुंगी

वादा है तुमसे ये बिटियाँ तुमको मैं न रोने दुंगी

पल पल मान गवाँया मैंने पल पल मैंने अश्रु पिये है मेरी पीड़ा मे बस मैं थी 

ऐसे भी दिन रात जिये हैं 

जैसा जीवन ढोया मैने तुमको वो न ढ़ोने दुंगी।

वादा है तुमसे ये बिटियाँ तुमको मैं न रोने दुंगी।

तुम चंदन तुम पारस मेरी

 तुम सच्चे मोती का  दाना।

तुम गंगाजल तुम निर्मल मन ।

जीवन क्या है तुमसे जाना।

बचपन की  प्यारी बगियाँ मे काँटे मै न बोने दुंगी।

वादा है तुमसे यह बिटिया तुमको मैं ना रोने दूंगी ।

क्षमता का भंडार बना दूं ।

मैं तुम को हथियार बना दूं।

छू ना सके कोई कपटी मन

तुमको मैं तलवार बना दूं।

तुमको बल दिखलाए कोई ऐसा मैं ना होने दूंगी वादा है तुमसे बिटियाँ तुमको मैंने रोना दूंगी ।

@मनीषा जोशी मनी

ग्रेटर नोयडा



mj0001997@gmail.com

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