*समीक्षार्थ*
नम-नयन भाव-कंठ अवरुद्ध
कर देगी प्रकृति सभी को बुद्ध। ?
मृत्यु पर क्योंकर हो, अब परिहास
जो जन गए सुरलोक, हुए खास।
सज्ज रहो शरीर, बनने को विदेह
बुन रहा जाल, काल चुनकर देह।
निधि मद्धेशिया
कानपुर
*सुप्रभातम् काव्य-सृजन के* *सहयात्रियो 🌞🇮🇳🌹🎸🙏🏻*
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