टपक रहा छप्पर से पानी वह निर्मम बरसात लिखो।
लिखो कहानी फिर हल्कू की पूस ठिठुरती रात लिखो।
सिसक रही हैं भारत माता, दंगे की तस्वीर लिखो।
बचपन में जो बोझ उठाते वह बिगड़ी तकदीर लिखो।
जेठ दोपहरी स्वेद बहाते हलधर की लाचारी को।
जो दहेज की भेंट चढ़ी लिख दो अबला बेचारी को।
छोड़ गया जिस मां को बेटा उस मां के जज्बात लिखो
लिखो कहानी फिर हल्कू की पूस ठिठुरती रात लिखो।
लिख दो मूक सिसकियां रोती जो अंधेरी रातों में।
दानव भेष घूमते मानव हवस भरी जिन आंखों में।
तड़प रही है भूख बिलखती नित्य पड़ी पुटपाथों पर,
कागज कलम नहीं ईंटें है नन्हे - नन्हे हाथों पर।
नहीं जला जिस घर में चूल्हा उस घर के हालात लिखो।
लिखो कहानी फिर हल्कू की पूस ठिठुरती रात लिखो।
लिखो बाण से शब्द करें जो भेद कुटिल व्यभिचारी पर।
शब्दों से कर दो प्रहार दानव से अत्याचारी पर।
लिखो बेबसी ममता की तुम, व्याकुल थकी निगाहों को,
पड़े फफोले जहां पांव दुष्कर पथरीली राहों को।
निर्धन के मंडप से लौटी बिन फेरे बारात लिखो।
लिखो कहानी फिर हल्कू की पूस ठिठुरती रात लिखो।
सीमा शुक्ला अयोध्या।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें