।।ग़ज़ल।। ।।संख्या 56 ।।
*।।इंसान का इंसान बनना अभी बाकी है।।*
*।।काफ़िया।। ।। आन।।*
*।।रदीफ़।। ।।अभी बाकी है।।*
1
शुरू किया बढ़ना उड़ान अभी बाकी है।
मंजिल जीत का निशान अभी बाकी है।।
2
पूरी करनी है हर इक़ सोच अपनी हमको।
पाने को सारा अरमान अभी बाकी हैं।।
3
उठना बहुत जरूरी ऊपर सब की निगाह में।
तय करने को पूरा आसमानअभी बाकी है।।
4
सुख शांति चैन सुकून की छत संबको मिले।
बनने को तो ऐसा मकान अभी बाकी है।।
5
जहाँ पर सच का हो बोलबाला सब तरफ।
बनने को इक़ ऐसा जहान अभी बाकी है।।
6
नई पीढ़ी की नज़र में हो बुजुर्गों का आशीर्वाद।
होने को ऐसा आदर सम्मान अभी बाकी है।।
7
आदमी एक दूजे को न देखे हिराकत नज़र से।
हर दिल में आना ये फरमान अभी बाकी है।।
8
न देख पायें आदमी तकलीफ एक दूसरे की।
दुनिया का होना ऐसा मेहरबानअभी बाकी है।।
9
*हंस* खुद बढ़ कर दूजे की मदद को आये आगे।
बनने को भी ऐसा इंसान अभी बाकी है।।
*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस*"
*बरेली।।।।*
मोब।।।।। 9897071046
8218685464
।।इक़ जमाना बीत गया भीगे बरसात में।।
*।।ग़ज़ल।।* *।।संख्या 57 ।।*
*।।काफ़िया।। ।। आत ।।*
*।।रदीफ़।। ।। में ।।*
1
सोते नहीं छत पे पहले जैसे रात में।
लगाते नहीं गले हर मुलाकात में।।
2
बदल गया चलन अब जमाने का।
देखते हैं कीमत हर भेंट सौगात में।।
3
चकाचौंध रोशन बन गई दुनिया।
अब यकीं घट गया जज्बात में।।
4
बडे बूढ़ोंआशीर्वाद में रहा नहीं यकीं।
बौखला जाते हैं बुजुर्गों की लात में।।
5
दुनिया की हरबात में आ गई सियासत।
चलने लगा दिमागअब घात प्रतिघात में।।
6
बिना स्वार्थ के नहींअब कुछ होता।
मतलब आता पहले हर बात में।।
7
अलगअलग दुनिया बस गई सबकी।
काम आते नहीं किसी जरूरात में।।
8
दिखावे की बन चुकी है अब दुनिया।
रुक गए हैं हाथ धर्म कर्म खैरात में।।
9
*हंस* बंद कमरों में चहकती नहीं जिंदगी।
इक़ जमाना गुज़र गया भीगे बरसात में।।
*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।।।।*
मोब।।।।। 9897071046
8218685464
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