एस के कपूर श्री हंस

[0चलो एक पौधा प्रेम का, मिलकर*
*लगाया जाये।।*
*।।ग़ज़ल।।  ।।संख्या  66  ।।*
*।।काफ़िया ।। ।। आया   ।।*
*।।रदीफ़।।   ।। जाये ।।*
1
चलो एक पौधा प्रेम का, मिलकर लगाया जाये।
महोब्बत ही खुदा यह ,संबको बताया जाये।।
2
नफरत करने वाले ,कभी भी पनपते नहीं।
इस बात को अब, संबको दिखाया जाये।।
3
मायूसी और उदासी से ,निकलें लोग जरा।
हौसलों का नगमा ,संबको सुनाया जाये।।
4
मिलकर जीने में ही है ,कौम की भलाई।
इस बात को बहुत दूर, तक फैलाया जाये।।
5
जो रूठ बैठे गुमसुम,अलग चौखटों पर।
अब उनको जरूर ही, आज मिलाया जाये।।
6
हर किसी नज़र में ,दर्द बेसब्री हो मिलने की।
इक ऐसाआला जहान ,मिलकर बनाया जाये।।
7
मैं की बात नहीं, अब हो बस बात हम की।
कुछ ऐसा फ़लसफ़ा ,अब चलाया जाये।।
8
*हंस* हँसी खुशी मिलकर, रहने की बात हो।
कुछ ऐसा फसाना ही, अब पढ़ाया जाये।।

*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"।*
*बरेली।।।।*
मोब।।।।।       9897071046
                     8218685464

[।।रचना शीर्षक।।*
*।।चमक ही चमक नहीं ,हमें रोशनी चाहिये।।*
*।।विधा।।मुक्तक।।*
*न 1 ।*
वही अपनी  संस्कार   संस्कृति
यहाँ   पुनः बुलाईये।
वही स्नेह प्रेम की भावना फिर
यहाँ   लेकर आईये।।
हो उसी  आदर  आशीर्वाद  का
यहाँ     बोल   बाला।
हमें  चमक   ही    चमक    नहीं
यहाँ  रोशनी  चाहिये।।
*न 2 ।*
सच से   दूर    हर         बात  में
नई सजावट आ  गई है।
रिश्तों में नकली   चमक       सी
अब  बनावट आ  गई है।।
मन भेद  मति          भेद   आज
बस  गये हैं भीतर  तक।
कैसे करें यकीं    कि  यकीन   में
भी  मिलावट आ  गई है।।   
*न 3।*
तुम्हारा चेहरा  बनता   कभी तेरी
पहचान        नहीं      है।
चमक दमक से    मिलता  किसी
को   सम्मान  नहीं है।।
लोग याद रखते  हैं    तुम्हारे दिल
व्यवहार को  ही  बस।
न जाने कितने    सिकंदर   दफन
कि नामोंनिशान नहीं है।।    
*न 4 ।*
जाने हम     कहाँ         से  कहाँ 
अब         आ    गये  हैं।
चमकती   दौलत        को    हम
आज पा      गये      हैं।।
सोने के        निवालों     से  अब
अरमान।    हो        गए।
आधुनिकता में           भावनायों
को ही           खा गए हैं।।
*रचयिता।एस के कपूर " श्री हंस"।बरेली।*
मो।।।।।।   9897071046
                8218685464

।।कुछ करो कि जिंदगी मुस्कराने लगे।।*
*।।ग़ज़ल।।    ।। संख्या 65 ।।*
*।।काफ़िया।। ।।आने  ।।*
*।।रदीफ़।।   ।।लगे  ।।*
1
कुछ करो कि जिंदगी   मुस्कराने लगे।
हर फूल गुलशन का खिलखिलाने लगे।।
2
तपिश कम हो इस    जमाने   की सारी।
हर  तरफ से  हवा ठंडी सरसराने  लगे।।
3
मायूसी खत्म हो हर किसी के जहन से।
बस्ती का हर घर  रोशन जगमगाने लगे।।
4
नफरत की हर दिवार ढहे दिलों से सबके।
कीड़ा महोब्बत का दिलों में कुलबुलाने लगे।।
5
लफ्ज़ ही मिट जाये, दुश्मनी का लिखावट से।
हर जुबां महोब्बत ही, बस बड़बड़ाने लगे।।
6
मंगल में जिंदगी नहीं,जिंदगी में मंगल की सोचें।
हर किसीके दर्द में दिल सबका तड़फड़ाने लगे।।
7
*हंस* किसीको भी किसीकेअमन से जलन न हो।
हर कोईअपनी खुशी खूब ही दिखलाने लगे।।

*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।।।।*
मोब।।।।।      9897071046
                    8218685464

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