डा. नीलम

*बच्चों की मुश्किल*

बमुश्किल आई थीं खुशियॉं
लौट गईं मुख दिखला के
बड़े दिनों में स्कूल खुले थे
बंद हो गये कोरोना के डर से

फिर वही प्राचीरें घर की
वही घर के गलियारे होंगे
फोन तो होगा हाथ में
पर कहॉं पे यार हमारे होंगे

अब तो कोफ्त हो गई यारों
बिन माॅंगी इन छुट्टियों से
पेट दर्द और सिर दर्द के
बहाने ,मुॅंह चिढ़ा,लगा रहे ठहाके 

अब तो नियत समय
फोन पे होगी ही पढ़ाई
कोई बहाना नहीं मिलेगा
पढ़ें हों क्यों न ओढ़ रजाई

बस्ते मुॅंह बिसराए पढ़े हैं
पुस्तकों ने निजात पाई
सब कुछ अब तो हो रही
ऑन लाइन ही पढ़ाई

यारी-दोस्ती ,धौल-धप्पा
वो धींगा-मस्ती , हॅंसी -ठट्ठा
सभी  रह गए स्कूल के अंदर
घर में बैठे हम हो रहे नकलची बंदर*। 

*नकलची बंदर--यानि नकल करके परीक्षा दे रहे हैं। एक मोबाईल प्रश्नकर्ता,दूसरे से उत्तर देख रहे हैं।

       *बच्चों की मुश्किल*

बमुश्किल आई थीं खुशियॉं
लौट गईं मुख दिखला के
बड़े दिनों में स्कूल खुले थे
बंद हो गये कोरोना के डर से

फिर वही प्राचीरें घर की
वही घर के गलियारे होंगे
फोन तो होगा हाथ में
पर कहॉं पे यार हमारे होंगे

अब तो कोफ्त हो गई यारों
बिन माॅंगी इन छुट्टियों से
पेट दर्द और सिर दर्द के
बहाने ,मुॅंह चिढ़ा,लगा रहे ठहाके 

अब तो नियत समय
फोन पे होगी ही पढ़ाई
कोई बहाना नहीं मिलेगा
पढ़ें हों क्यों न ओढ़ रजाई

बस्ते मुॅंह बिसराए पढ़े हैं
पुस्तकों ने निजात पाई
सब कुछ अब तो हो रही
ऑन लाइन ही पढ़ाई

यारी-दोस्ती ,धौल-धप्पा
वो धींगा-मस्ती , हॅंसी -ठट्ठा
सभी  रह गए स्कूल के अंदर
घर में बैठे हम हो रहे नकलची बंदर*। 

*नकलची बंदर--यानि नकल करके परीक्षा दे रहे हैं। एक मोबाईल प्रश्नकर्ता,दूसरे से उत्तर देख रहे हैं।

       डा. नीलम

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