विनय साग़र जायसवाल

ग़ज़ल ----

हमसे मुसाफिरों को कहीं घर नहीं मिला
रस्ते बहुत थे राह में रहबर नहीं मिला 

वीरान रास्तों में पता किससे पूछते
राह-ए-सफ़र में मील का पत्थर नहीं मिला 

दिन रात हम उसी के ख़यालों में ही उड़े
तन्हाइयों में चैन तो पल भर नहीं मिला

उसके सितम में प्यार की शामिल थीं लज़्ज़तें 
उस सा करम नवाज़ सितमगर नहीं मिला

दो घूँट पीके और भी जागी है तशनगी 
साग़र कभी शराब का भर कर नहीं मिला

उस पर उड़ेल दीं हैं सभी दिल की ख़्वाहिशें 
वो शख़्स है कि आज भी खुलकर नहीं मिला

*साग़र* तलाशे-यार में भटके कहाँ कहाँ 
उस हुस्ने इल्तिफ़ात सा पैकर नहीं मिला

🖊विनय साग़र जायसवाल 
बरेली यूपी

रहबर-पथ प्रदर्शक
करम नवाज़-कृपा करने वाला
तिशनगी--प्यास
हुस्ने-इल्तिफ़ात -अच्छे से ध्यान देना ,अच्छे से दया ,कृपा करने वाला
पैकर-रूप ,

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