नाम- डॉ0 कमलेश शुक्ला
साहित्यक उपनाम- "कीर्ति"
निवास-कानपुर, उत्तर प्रदेश
शिक्षा - कानपुर यूनिवर्सिटी से एम0ए0 हिंदी, एम0 ए0 अर्थशास्त्र ,बी0एड0,
पी0एच 0 डी 0 विद्या वाचस्पति उपाधि ,विद्या सागर डी0 लिट्0
शिक्षण कार्य- कानपुर यूनिवर्सिटी से सम्बध्द महाविद्यालय में ।
विधा- गीत, गजल,दोहा,छंद मुक्त कविता,छंद युक्त कविता,बाल कविता ,मुक्तक,हायकु , कहानी।
मुख्य विधा- गीत -ग़ज़ल।
कईगीत ,गजल,कविता ,अखिल भारतीय कवि सम्मेलनों में एवम लखनऊ,कानपुर,शाहजहांपुर,फतेहपुर,दिल्ली ,प्रयागराज, उज्जैन ,समेत कई राज्यों में राष्ट्रीय स्तर के समाचार पत्रों ,पत्रिकाओं एवम बेब पोर्टल आदि में प्रकाशित ।
कार्य क्षेत्र- साहित्य एवम समाज
सम्मान- सारस्वत सम्मान,शारदा सम्मान,हिंदी गौरव सम्मान,हिंदी काब्य सम्मान,महादेवी वर्मा सम्मान, साहित्य शिखर सम्मान, दिल्ली द्वारा काब्य गौरव सम्मान,वाग्देवी रत्न से सम्मान ,वीर भाषा एकेडमी मुरादाबाद द्वारा अंतरराष्ट्रीय सम्मान समारोह में साहित्य प्रतिभा सम्मान , राजस्व परिषद बार एसोसिएशन प्रयागराज द्वारा सम्मान, एवम,विश्व हिंदी रचना मंच द्वारा हिंदी सेवी सम्मान, अमर उजाला समाचार पत्र द्वारा अतुल महेश्वरी सम्मान, भारत उत्थान न्यास परिषद द्वारा सम्मान , दिल्ली में युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच से श्रेष्ठ रचनाकार,वीर भाषा हिंदी साहित्य पीठ मुरादाबाद द्वारा अंतरराष्ट्रीय सम्मान समारोह में साहित्य गौरव सम्मान, काब्य शिरोमणि सम्मान , प्रयागराज में मीरा बाई सम्मान से सम्मानित पुरवार शिक्षण संस्थान ,वज्र इंद्राभिब्यक्ति मंच ,माध्यमिक साहित्यिक मंच ,विकासिका साहित्यिक मंच ,तरंग साहित्यिक मंच,,इसके अलावा कई साहित्यिक मंच, विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ उज्जैन से वाचस्पति विद्या उपाधि ,विद्या सागर से सम्मानित एवम देश के कई विभिन्न संस्थाओं द्वारा कई प्रकार के सम्मानों से सम्मानित ।
सचिव ,उत्तर प्रदेश (मध्य इकाई)महिला काब्य मंच की।
प्रकाशित कृति- खेल धूप छाँव के, ( गीत एवम गजल) संग्रह ,मैं कविता हूँ (काब्य सँग्रह) (मीरा बाई सम्मान से सम्मानित)
तीसरा (गीत सँग्रह) " लहरें सागर की "
कई साझा काब्य संकलन जीवंत हस्ताक्षर,काब्यलोक ,काब्य त्रिपथगा ,बाल साहित्य आदि।
मोबइल नम्बर-9453036314
कानपुर ।
गीत--------
देखकर चाँद को चाँद के प्यार में
चाँदनी बन भ्रमण साथ करती रही।
गीत गा ना सकी साथ में प्यार के
रात भर चाँद को ही निरखती रही।
देखकर भोर बेला वहाँ पर तभी
आह भरकर तभी लौटने है लगी।
रह गया तब अधूरा मिलन है वहाँ
उसकी यादें दिल में धड़कती रही।
राह में बैठ दिन भर निहारा उसे
प्रीति दिल में बसाकर पुकारा उसे।
आ भी जाओ प्रिय हम निहारें तुम्हें
उर बसा वेदनाएं कलपती रही।
जा रहे छोड़कर तुम मुझे अब कहाँ
रोक दो तुम गगन का भ्रमण अब यहाँ।
रात का यह पहर बीत जाए न अब
प्रिय तेरे लिए ही संवरती रही।
डॉ. कमलेश शुक्ला कीर्ति
कानपुर।
छंदमुक्त रचना----
आत्मा और परमात्मा
दोनों का प्यार
असीमित अपरंपार
दोनों की चाहत
एक दूसरे के लिए
आत्मा परमात्मा को देखती
और परमात्मा आत्मा को
दोनों के बीच
मौन संवाद
एक दूसरे में होने
की अनुभूति
दिलाता हर समय
जीवन पर्यन्त
बिन बोले ही
दोनों का प्रगाढ़ सम्बंध
यही तो है आध्यात्मिक प्रेम
जो महसूस तो होता है
पर दिखता नहीं
हर जगह मैजूद है
पर प्रकट नहीं
आत्मा हमेशा
परमात्मा में मिलना चाहती
परमात्मा आत्मा को
आत्मसात कर
एकनिष्ठ प्रेम!
डॉ .कमलेश शुक्ला कीर्ति
कानपुर।
गीत--- नारी महान है
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प्रभु ने सुंदर छवि देकर बना के भेजा नारी है।
उर में ममता का सागर दे रचा दी श्रष्टि सारी है।।
अम्बर सी ऊँचाई दी सागर सी दे दी गहराई।
सहनशक्ति दे दी धरती सी तब नारी है बनाई।।
ज्ञानकर्म सब सद्गुण देकर दे दी जिम्मेदारी है।
उर में ममता का सागर दे रचा दी सृष्टि सारी है।।
कुंदन सा तपाकर भेजा सुंदर बना दी है काया।
पुरुषों के संरक्षण को बना दी उसको है छाया।।
उसकी खुशबू से महकाकर बना दी फुलवारी है।
उर में ममता का सागर दे रचा दी श्रष्टि सारी है।।
घर की जिम्मेदारी दे सजग रहना उसे सिखाया।
मर्यादा में रहकर ही जीना उसको सदा बताया ।।
दुनियाँ को प्रभु ने दे दी ऐसी कृति यह प्यारी है।
उर में ममता का सागर दे रचा दी श्रष्टि सारी है।।
प्रभु ने सुंदर छवि देकर बना के भेजा नारी है।
उर में ममता का सागर दे रचा दी श्रष्टि सारी है।।
डॉ. कमलेश शुक्ला कीर्ति
कानपुर।
9453036314
होली गीत--तेरे प्यार में मैंने साँवरे।
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तेरे प्यार में मैंने साँवरे ऐसा तन रंग डाला।
दूजा कोई रंग चढ़े न अब तू सुन ले मुरली वाला।।
ज्ञान कर्म की बात बताकर, तुम ऊधौ को नहीं भेजो।
मेरा मन तो प्यार ही जाने, यहाँ ज्ञान रसिक न भेजो।।
नेहदीप जल रही है मन में तुम करो न गड़बड़ झाला।
दूजा कोई रंग चढ़े न अब तू सुन ले मुरलीवाला।।
जैसे पंक्षी उड़कर आकाश में लौट नीड़ को आये।
हमें ऊधौ कितना समझाएं पर मन तुमको ही ध्यावे।।
कोई ज्ञान हमें न भावे जपूं तेरे नाम की माला।
दूजा कोई रंग चढ़े न अब तू सुन ले मुरलीवाला।
तन तो मेरा एक है कान्हा ,मन भी है एक हमारा।
तेरे चरणों में लगा दिया जब ,हो गया अब यह तुम्हारा।।
कोई रंग हमें न भावे , तू सुन ले नन्द के लाला।
दूजा कोई रंग चढ़े न अब तू सुन ले मुरलीवाला।
डॉ .कमलेश शुक्ला कीर्ति
कानपुर।
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