नूतन लाल साहू

सपना

मैंने तो सपने में देखा था
अदभुत स्वर्णिम सुनहरा पल
पर वाह रे कोरोणा
मौत का तांडव मचा रहा है
क्या यही इक्कीसवीं सदी है
क्या ये बहरा है
क्या ये अंधे भी हो गया है
जो देख सुन न पा रहा है
मां, बहिन और बेटियों के
आंसुओ की धार
जो टूट पड़ा है,बिजली बनकर
और मौत का तांडव मचा रहा है
क्या यही इक्कीसवीं सदी है
मैने तो सपने में देखा था
धरती मां हरियाली से आच्छादित है
धरती के हर इंसान के मन में
उमंग भरी हुई है
और अमन है चमन में
सुमन मुस्कुरा रही है
पर वाह रे कोरोणा
मौत का तांडव मचा रहा है
क्या यही इक्कीसवीं सदी है
सबके मन में छाई हुई है उदासी
जबकि धन की कमी नहीं है
साकार नहीं हो पा रही है
मधुर कल्पनाएं
धरी की धरी रह गई है
मैने तो सपने में देखा था
कल जो नई भोर होगी
खुशी से सराबोर होगी
पर वाह रे कोरोणा
मौत का तांडव मचा रहा है
क्या यही इक्कीसवीं सदी है

नूतन लाल साहू

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