सुनीता असीम

तड़पकर रात दिन चारों पहर जिसको उचारा है।
वही माधव वही मोहन वो गिरधारी हमारा है।
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 जगाकर भूख मिलने की वो वृंदावन चले जाएं।
चले आओ मेरे मोहन तुम्हें दिल से पुकारा है।
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निखरती धूप है आंगन चमकता है गगन ऊपर।
तेरा ही चारसू जलवा तू ही प्रीतम हमारा है।
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 धरा पर पाप बढ़ते हैं तभी आते हो तारन को।
कि साधू हो या संन्यासी सभी को आ उबारा है।
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तेरे ही प्रेम की प्यासी पुजारिन हूं मैं तेरी ही।
बड़े ही नेम से मैंने ये मन अपना निखारा है।
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ये तृष्णा बढ़ रही मन की मिलोगे आन कब मुझसे।
तुम्हारी याद में दिल आज रोता फिर बिचारा है।
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करो तुम दूर दुविधा ये सुनीता की सुनो भगवन।
के तुमने क्यूं नहीं उसको कभी जी भर निहारा है।
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सुनीता असीम
९/४/२०२१

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