चंदन अंजू मिश्रा
पता: जमशेदपुर
कृतियां: द फर्स्ट स्टेप, डैडी सहित 7 पुस्तकों में कृतियां ।
चंदन :सुगंध शब्दों की का प्रकाशन
सम्मान :राष्ट्रपति द्वारा हस्ताक्षरित सम्मान पत्र प्राप्त
सामाजिक कार्य:रॉबिनहुड अकादमी की सदस्या
कवितायें:
1)साजन आना उस नदी के किनारे,
साँझ को बैठ मन की बातें करेंगे।
मुझे शहर की भीड़ से दूर ले जाकर,
नैनों की डोर में अपने बाँध लेना।
जो धरा है मेरे मन की बंजर हुई,
इस पर बादल बन जल बरसा देना।
सुनाकर अपने मन की सारी बातें,
संग थोड़ा रो लेंगे और थोड़ा हँसेंगे।।
साजन आना उस नदी के किनारे,
साँझ को बैठ मन की बातें करेंगे।
ले आना तुम झुमके एक जोड़ी ,
एक जोड़ी पायल भी ले आना।
बिंदिया वो छोटी काली वाली और,
नैनों के लिए काजल भी ले आना।।
तेरी पसन्द की हुई चूड़ी, बिंदी,
साड़ी, झुमके सब मुझ पर खिलेंगे।।
साजन आना उस नदी के किनारे,
साँझ को बैठ मन की बातें करेंगे।
जन्मों - जन्मों की बात कौन जाने,
इसी जन्म में हर वादा पूरा कर लें।
मिटा कर सारे पुराने दाग हम चलो,
एक दूसरे की ज़िंदगी रंगों से भर लें।।
भूल कर इस दुनिया की सारी बातें,
एक दूसरे की आत्मा में खोए रहेंगे।।
साजन आना उस नदी के किनारे,
साँझ को बैठ मन की बातें करेंगे।
-©चंदन "अंजू" मिश्रा
2)*रात्रि के दो पहलू*
गहराई जाती है देखो,
बीतती ही नहीं यामिनी।
पुष्प कुमुदिनी के प्रसन्न,
कि रुकी हुई है चाँदनी।।
किसी मन में व्यथा है ,
किसी मन में उल्लास है।
निशा में छुपी पीड़ा भी,
संग चाँदनी का प्रकाश है।।
किसी मन के प्रतिबिंब को,
झिंझोड़ देती है रात कृष्णा।
और किसी की चन्द्रिका ये,
मिटा देती है मन की तृष्णा।।
जिस साथी से वियोग हुआ,
व्यथित मन को वो याद आए।
रुदन करता विरह में मन,
कि ये रैना क्यों न बीत जाए।।
लेकिन ये शरद रात देखो,
चन्द्रमा को संग लाई है।
खिल उठा दिव्य ब्रह्मकमल,
सुगंध चहुँ ओर छाई है।।
-©चंदन "अंजू " मिश्रा
3)मैं नहीं हूँ कोई लेखिका,
क्योंकि मुझे नहीं करनी आती,
लेखकों की तरह गहरी बातें।
मैं तो बस लिख देती हूँ,
कभी हॄदय में चलते तूफान को,
कभी अकुलाते मन की व्यथा को,
कभी समाज में होते अन्याय को,
कभी विरह को कभी प्रेम को,
कभी कोयल की कूक को,
सड़क पर पड़े किसी गरीब के भूख को।
मैं पीड़ा में अश्रु नहीं बहाती,
नेत्रों में पड़े उन मोतियों को,
मैं स्याह रंगों में सफ़ेद पन्नों पर उकेर देती हूँ,
और बन जाती है रचना,
हाँ, उन लेखकों की तरह मैं गोल-गोल बातें नहीं कह पाती,
मुझे नहीं लिखनी आती कविताएं,
अपनी बेढंगी बातों को आवरण पहना देती हूँ बस।
-©चंदन "अंजू" मिश्रा
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