काव्यरंगोली आज का सम्मानित कलमकार डॉ.नंदिनी शर्मा'नित्या'



 डॉ.नंदिनी शर्मा'नित्या'

जन्मः इन्दौर(म.प्र.) जुलाई 1985

शिक्षाः एम.ए.(हिन्दी साहित्य),पी-एच.डी.दे.अ.वि.वि.(इन्दौर),

(एस.आई.टी.डी.)कम्प्यूटर टीचर

ट्रेनिंग,पी.जी.डी.आई.टी.से डीप्लोमा

बी.म्युज.(सितार)


- दे.अ.वि.वि. की शोध निर्देशक सन्2018 सेl

-यू.जी.सी.की शोध परियोजना "प्रभा खेतान और मन्नू भंडारी का अंर्तद्वंद-आत्मकथाओं के संदर्भ में"2016 में पूर्णl

सदस्यताः राधाकृष्ण किताब क्लब,नई दिल्ली की सदस्य

- अखिल भारतीय कवियित्री संघ की सदस्य

-संगीत कला परिषद इन्दौर की सदस्य


- राष्ट्रीय एवं अंतराष्ट्रीय सम्मेलनों,वर्कशाप एवं सेमिनारों में निरंतर सहभागिताI

- विभिन सांझा संकलनों,पत्र-पत्रिकाओं में रचनाओं एवं शोधपत्रों का प्रकाशनl

- महाविद्यालय में सांस्कृतिक एवं साहित्यिक गतिविधियों का आयोजन एवं संयोजनI

सम्मान- प्रतिभा सम्मान 

           मातृत्व ममता सम्मान 

          कल्पना चावला अवार्ड

           नारी शक्ति सम्मान

           शब्द सुगंध सम्मान

           नारी रत्न सम्मान


संप्रतिः सहायक प्राध्यापक हिन्दी,स्वशासी महाविद्यालय,

संपर्क: 327,जवाहर नगर देवास (म.प्र.)

फोन: 99261-53862



अजन्मा


नहीं पता था

क्या छुपा था 

काल के गर्भ में


पता नहीं कब  

कैसे वो पड

गया बीज कोख में 

पर उस बीज के पनपने से 

पहले ही कर दिया छिन्न भिन्न 

उसे अनचाहा करार देकर


किसी ने नहीं सोचा

क्या बीती उस 

माँ के दिल पर


अपना कलेजा दबाये

निकाल दिया उसे 

शरीर से अपने 

पर आत्मा उसे 

आज भी नहीं भूली

ओ मेरी अजन्मी संतानll


अभिलाषा


नयन अधिर 

अविराम एकटक 

निहारे तेरी राह मुरारी


हे! कृपानिधान

हे!दयानिधान

हम पर आई है

विपदा भारी


कष्ट निवारो

रोग भगाओ

इस महामारी से

हमको तारो

सकल जगत है 

प्रलयन्कारी


राह दिखाओ

हे!त्रिपुरारी

पहले जैसा 

जीवन कर दो

हम सब की 

बस यही अभिलाषा


इस कारावास से 

मुक्ति दे दो

तुम बिन ना 

कोई ठौर हमारो

हम पर कृपा 

करो हे!मुरारी 

पूर्ण करो 

मन की अभिलाषाl

                                             

                                               

चिडिया


मेरे कच्चे आँगन में 

अंबिया की डाली पर

चहकती है 

सुबह से चिडियों की टोली

गुनगुनी धूप में 

यहां वहां फुदकती रहती है

नन्हे बच्चों की तरह


चिडियों का चहकना 

अच्छा लगता है 

मन को

सुकुन देती है

उसकी

सुंदर क्रीडाएँ


जिसको देख

भूल जाती हूँ  

अपनी पीडा

खो जाती हूँ उनमें 

पलभर के लिए 

गृहस्थी के 

जोड घटाव से दूर


पंख फैलाकर

उडते-उडते

दे जाती है वो 

हौसला जिंदगी

जीने का

ऊँचे आसमान में 

उडने का

अपने सपनो में 

रंग भरने का

उन्हें साकार करने काl


                                  

       रिश्तें


रिश्तों की महक है 

रसोई के मसालों सी 

कुछ तीखी,कुछ मीठी 

तो  कभी खट्टी मीठी 

और फीकी सी

हर स्वाद का 

अपना जायका,अपना स्वाद

हर रिश्ते का अपना ढ़ंंग,

अपनी रंगत

कोई किसी से कम नहीं 

न कोई किसी से ज्यादा

बिल्कुल नमक की भांति

सधा हुआ,नपातुला


हर स्वाद का अपना नाम 

अपनी पहचान

हर रिश्ते का अपना मान  

अपना सम्मान

रिश्तों की एकता मॆं है 

जीवन का सार

रसॊई कॆ मसालों मॆं है

जायकॊ का स्वाद

रिश्तों की गहराई ही है

सुखी परिवार का आधारll


                                       

                                        

                                        डॉ.नंदिनी शर्मा'नित्या'

                                                 देवास(म.प्र.)

                                              9926153862



 

कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...