सुनीता असीम

यहीं आवाज़ आई चारसू से।
बुराई से लड़ो ला-तक्नतू से।
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नहीं बच्चे भी सुनते अब किसी की।
बने मां-बाप के हैं         वो अदू से।
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मिले मंजिल उसे कोशिश करे जो।
है मिलता क्या नहीं हिम्मत जुनू से।
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मिलन आसान होता है अगर जो।
न मतलब कोई है फिर आरजू से।
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गलत जब काम मुझसे हो गया हो।
बची फिरती हूं रब के रूबरू से।
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नहीं जब काम अच्छे करने तुमको।
रहा क्या फायदा फिर है वुजू से।
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सुलझते जब नहीं झगड़े हों घर के।
उन्हें सुलझा लो फिर तुम गुफ्तगू से।
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ला-तक्नतू=हिम्मत
अदू=दुश्मन

सुनीता असीम
७/४/२०२१

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