*नाम*- रेनूबाला सिंह
*पता*-A-312 पार्श्वनाथ मैजेस्टिक फ्लोर्स इंदिरा पुरम,गाज़ियाबाद (यू.पी.)
२०१०१४
*शिक्षा*- बी.ए,ब्रिज कोर्स एम.ए (मध्यकालीन
इतिहास),बी.एड..
डिप्लोमा- होटल मैनेजमेंट
रुचि- योग, संगीत (गायन,वादन,नृत्य)
पठन-पाठन
*भाषा*- हिन्दी,भोजपुरी,अंग्रेजी
*शिक्षण-कार्य* केंद्रीय विद्यालय मालीगांव गुवाहाटी में २ वर्ष
एडहाक शिक्षिका के रूप
में सेवारत।
*संस्कार वैभव हिन्दी सभा* नामक संस्था से सदस्य के रूप में स्वतंत्र लेखन का कार्य,कलरव नामक पत्रिका में १०वर्षों से कविताएँ व लेख प्रकाशित हो रहे हैं।
*यू. एस. एम. पत्रिका*,गाज़ियाबाद में गत १२ वर्षों से *वंदना लेख,कविताएँ ,व्यंग* प्रकाशित हो रहे हैं।
*रेलवे महिला कल्याण संगठन* में *सचिव/अध्यक्षा* के पदों पर दिल्ली सहित देश के विभिन्न शहरों में पच्चीस वर्षों तक गरीब महिलाओं एवं बच्चों के शिक्षण (प्रशिक्षण) *हस्तकला के विकास में समाज सेवा* का कार्य किया।
*कंटेनर कार्पोरेशन महिला कल्याण संगठन* में *सचिव* के पद पर रहते हुए प्रतिभावान बच्चों को पुरस्कृत किया।
*हुनर स्टार्ट-अप* सेमिनार आन एंटरप्रनारशिप- *प्रशस्ति पत्र* ।
बटोही साहित्यिक सांस्कृतिक व सामाजिक *प्रशस्ति पत्र*।
*संस्कार वैभव हिन्दी सभा* में हिन्दी भाषा भारतीय संस्कृति व राष्ट्रीय एकता को समृद्ध बनाने के लिए *प्रशस्ति पत्र*
*लाइनेस क्लब अपराजिता*
इंदिरापुरम,गाज़ियाबाद में *सदस्य/ सचिव* पद पर
३ वर्ष तक कार्य किया।
इंदिरापुरम में पिछले १० वर्षो से *योग शिक्षण* में सेवारत
*सलाम नमस्ते रेडियो स्टेशन ९०.४ एफ एम* पर नियमित रूप से आयोजित सम सामयिक विषयों पर सहभागिता...
*खुदा को कर बुलंद इतना* सामयिक विषयों पर *वामा पत्रिका* में सहभागिता।
*प्रकृति के आस पास*
नामक काव्य संग्रह प्रकाशित।
वर्तमान समय में *आदिराजआफ डांस* स्कूल से संबद्ध।
धन्यवाद!🙏🙏
*तो समझो होली है।*
शीत ऋतु की हो विदाई ग्रीष्म रस रंग गंध इंद्रधनुष धरा पर जब रंगों की छटा बिखराए ,तो समझो होली है।
सुनहरी धूप में कोयल कूके किरणों संग मुस्काए अमरैया बौराए, बेला चंपा चमेली हिना गुलदाउदी आंगन महकाए ,
तो समझो होली है।
मोगरा गुलाबों से गुलजार सजे फुलवारी औ' द्वार ,
मौसम बदले प्राकृतिक नज़ारे, नाचे मन जैसे मयूर तो समझो होली है।
बच्चे मुस्काए जवानों में जब दिखे तरुणाई और बूढ़े गदराए, उत्साह नटखट चुलबुलाहट मन में हिलोरें हुलसाए, तो समझो होली है।
बच्चे धूम मचाते रंग भर गुब्बारे, पिचकारी बाल्टी गलियों ढोल ,बाजे नगाड़े मृदंग मजीरे, बांसुरी भी खींचे लंबी लंबी तानें, तो समझो होली है।
नैनों से जब नैन मिले अधर देख मुस्काए ,गाल गुलाबी लाल, बिना रंगे बिखर जाए, प्रीत डोर खींच मन प्रियतम देख मदमस्त हो जाए, तो समझो होली है।
गुझिया, मालपुआ ,दही बड़ा सब मिल बैठ खाएं पूरी खीर और बताशे, भूलकर भी दुख गम गिले-शिकवे हो न, हमजोली सब गले मिले,
तो समझो होली है।
होलिका दहन, संग में बुराई घृणा नफरत की, देकर आहुति, जात पात कलह क्लेश दोष मिटा, होली मिलन की बात हो जहां,
तो समझो होली है।
दहलीज के भीतर बंद कमरों में छाई रहे खुशहाली प्रेम सौहार्द्र और स्नेहिल भाव से रंग जाए दुनिया सारी ,
तो समझो होली है
धन्यवाद
रेनू बाला सिंह
*पसरा कोरोना दोबारा*
*होली में*
आंखों को कुछ तरेर कर
हथेली में गुलाल मल कर
चुलबुलाहट होने लगी है
पीछे से दोस्तों के छुप कर,
लाल करें गालों को रगड़ कर
मगर कैसे क्या करें हम आज
मुश्किल हो गया जीने का अंदाज
ढोल नगाड़े बंद हैं सभी साज
सखियों में उमड़ा नखरा नाज़
अब होने लगी है मोबाइल पर, होली मिलन की बात
माना मुश्किल है हाथ से हाथ मिलाना
नामुमकिन भी है अब गले मिलना
दूरी बना मास्क लगा पालन
कर वैक्सीन लगा
गुलाल जब बादल बन उड़ा
फेसबुक व्हाट्सएप पर
रंगों की पिचकारी भर कर
कहीं होली गुलाल अबीर भीगेगा नहीं शरीर पर
मन को सराबोर होने पर
रोक सकेगा न कोई
रोक सकेगा न कोई
धन्यवाद
रेनू बाला सिंह , गाजियाबाद ,उत्तर प्रदेश
201014
मंच को नमन🙏🙏
*बसंत ऋतु पर दोहे*
कोयल बैठी डार पर,
इत उत डोलत जाय ।
भंवरा गुंजत बाग में ,
पी पराग मद होए।।
फूले अमवा बौराए
पुलकित मनवा होय ।
कोयल कूके गाए ,
बिरहनी बोली सुनाए।।
तितली डोलत बाग में,
उड़त फिरत झूमत है।
हंसी ठिठोली साथ में,
मन ही मन हंसत है।।
रेनू बाला सिंह
विधा- *कविता*
शीर्षक-- *नववर्ष इसे ही कहलाने दो*
रचना- *रेनू बाला सिंह*
प्रतिवर्ष नववर्ष हम क्यों मनाते
पश्चिमी देशों की है यह प्रथा
साथ में मिलकर खुशियों की कथा
दोहराई अपनाई उमंग भरी
नव वर्षीय गाथा
प्रतिवर्ष नववर्ष::::
सर्दी की गलन से ठिठुराते जेब से हाथ बाहर नहींआते
कान मफ़लर से ढ़कते जाते जुरार्बें दस्ताने चढ़ाएं रहते
प्रतिवर्ष नववर्ष:::::
नगाड़े की थाप पर नाचते गाते
पश्चिमी देशों की योजना में रमते जाते
स्याह घने गहराते कोहरे में सजते
चकाचौंध बिजली बाती में चमकते
प्रतिवर्ष नववर्ष:::::::
अंधेरी बीती रात झालरों से जगमगाते
टिक टिक करती घड़ी के जैसे ही मिलते
हैप्पी न्यू ईयर्स का नारा लगाते
संबंध बढ़ा प्यार से एक दूजे से गले मिलते
प्रतिवर्ष नववर्ष::::::::
नव कोपल नव पुष्प खिलें
ठिठुरन विदा ले
नव प्रभात नव प्रकाश उजागर हो
बासंती बयार नव ऊर्जा का संचार हो
फुलवारी बसंत मुस्काए आंगन आंगन
प्रतिवर्ष नववर्ष :::::
पीली सरसों के फूलों से सजी वसुंधरा
प्रकृति बिखेरती हरित
स्नेह धारा
उत्साह उल्लास उमंग उत्सव आने दो
शुक्ल चैत्री दिवस प्रथम
नववर्ष इसे ही कहलाने दो
नववर्ष इसे ही कहलाने दो
रचना--रेनू बाला सिह
*शिवरात्रि*
*काव्य रंगोलीमंच को नमन*
आध्यात्मिक मकसद शिवरात्रि मनाने का
शरीर के कण-कण को जीवंत करने का
भांति भांति के संघर्षों को त्यागने का
आध्यात्मिक मकसद:::
सत्यम्- शिवम्-सुंदरम् अपनाने का।
धर्म अर्थ काम मोक्ष की अति कृपा का
शिवरात्रि का उत्सव स्मरण करने का
आध्यात्मिक मकसद:::
'शि'अर्थ पापों को नाश करने का
'व' का अर्थ देने वाले यानी दाता का
साधक और भक्तों के सिद्धांतों का ।
आध्यात्मिक मकसद:::
प्रतिनिधित्व करता हमारी आत्मा का ।
आभामंडल और हमारी चेतना का।
ब्रह्मांडीय चेतना पृथ्वी तत्व को छूने का ।
आध्यात्मिक मकसद शिवरात्रि बनाने का धन्यवाद ।
स्वरचित -
रेनू बाला सिंह 🖋️
गाजियाबाद
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