कैद
25.4.2021
शरीर एक पिंजरा
सांसो का पँछी कैद
महसूस करे सभी
ये ही अनुभूति है ।
सुख भी यहीं रहता
दुख आता ही रहता
कैद नहीं होए कोई
ये सहानुभूति है ।
मौसम सा बदलता
पल छीन जीवन का
पतझड़ जाता जब
बहार भी आती है ।
निःशब्द राग सभी
कोयल कुहकी कहीं
इसकी मधुर वाणी
मन को हर्षाती है ।
स्वरचित
निशा"अतुल्य"
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