ग़ज़ल---
सब काम हो रहे हैं रईसों के वास्ते
कुछ कीजिए हुज़ूर ग़रीबों के वास्ते
है ज़िम्मेदारी आपकी हर शख़्स ख़ुश रहे
हाकिम नहीं हैं सिर्फ़ अज़ीज़ों के वास्ते
गर आस रौशनी की है तो यह भी सोचना
है तेल भी ज़रूरी चरागों के वास्ते
अब तक वो काम देखिए पूरा नहीं हुआ
छोड़ा था जो भी काम अदीबों के वास्ते
दिल खोल कर के लूट रहे आज डॉकटर
इल्ज़ाम क्यों हैं सारे वकीलों के वास्ते
कहना फ़कत है आज नये दौर से हमें
कुछ एहतराम रखिये ज़ईफों के वास्ते
*साग़र* किसी भी राह में ख़ौफ़-ओ-ख़तर न हो
इतना तो कीजिएगा हसीनों के वास्ते
🖋️विनय साग़र जायसवाल
6/4/2021
हाकिम-शासक, बड़ा अधिकारी
अदीबों-साहित्यकारों ,लेखकों
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