काव्य रंगोली आज का सम्मानित कलमकार प्रकाश रेगर

 परिचय:-

नाम,चन्द्र प्रकाश रेगर


मो,8441039551

पता,नैनपुरिया पो,नमाना,तह,नाथद्वारा,

राजसमंद ,राजस्थान


शिक्षा:-GNM,NURSING 


अनुभव:-3years


पहली कविता प्यार अंधा है,



वृक्ष लगाओ, वृक्ष बचाओ


जीवन की क्षणभंगुरता में,

सतत बह रही इस सरिता में,

योगदान का मूल्य समझकर,

उनका भी आधार बचाओ।

वृक्ष लगाओ,वृक्ष बचाओ।


सृजन सृष्टि के आदिकाल से,

 निर्मित पूर्व मानव कपाल से,

प्राणवायु के दानी हैं जो,

उनके भी अब प्राण बचाओ।

वृक्ष लगाओ, वृक्ष बचाओ


प्राणवायु से प्राण बचायें,

फल देकर वे भूख मिटायें,

उमड़ घुमड़ते मेघ खींच लें,

ऐसे चहुं दिशि विटप बढ़ाओ।

वृक्ष लगाओ, वृक्ष बचाओ।


अपना घर आवास निहारो,

कितना है सहयोग विचारो,

तुम भी उनके सहयोगी बन,

 गली-गली विस्तार दिलाओ।

वृक्ष लगाओ, वृक्ष बचाओ


शीतल छाया के आंगन में,

चौदह वर्ष राम रहे वन में,

रोपे अपने कर कमलों जो,

उनका भी परिवार बढ़ाओ।

वृक्ष लगाओ, वृक्ष बचाओ।


अमराई श्रीराम को भायी,

फुलवारी में सीता पायी,

जिस अशोक ने शोक हरे सब,

उसका भी अब शोक हटाओ।

वृक्ष लगाओ वृक्ष बचाओ।


कृतघ्न हुए जग मानव सारे,

केवल अपना स्वार्थ संवारे,

जिनके परोपकार से है जग,

उन पर भी उपकार दिखाओ।

वृक्ष लगाओ, वृक्ष बचाओ।


🙏🏼,रावण नहीं दरिन्दों को जलाओ,🙏🏼


सत्ययुग कि बात सत्ययुग पर छौडौ,

कलयुग है भाई रावण नही दरिन्दों को पकडो,


छुआ नही कभी माँ सीता को उसे हम हर वर्ष जलाते हैं,

फिर नजाने क्यों बलात्कारी को सजा न दे पाते हैं,,


अंहकार ने रावण को अपने स्वभाव से भटकाया था,

मनुष्य वो भी था पर हवस के कारण कभी हाथ नही लगाया था,,


जिन्होंने बच्ची से भुडी नारी तक जुर्म कर डाला है,

फिर भी न जाने क्यों उस पर को अटूट फेसला आया है,


ऊस जलने वाले रावण का एक सवाल है,

मुझे छोडो,क्या बलात्कारीयौ को जलाने की औकाद है,


मेने माँ सीता को रखा अशोक वाटिकाऔ मै सुरक्षित,,

तुम बहन बेटी भी घर पर नहीं रख पाऔगे,,,


बहन बेटी भी घर पर नहीं रख पाओगे,


🙏🏼🌹क़लम की आवाज़🌹🙏🏼


कभी प्रेम लिखती है

कभी विद्रोह करती है

कभी स्वप्न बुनती है

कभी द्रवित बहती है

ढ़लती कवि रंग में

कवि जैसी रहती है

ये क़लम की आवाज़ है

यूँ ही बेहीसाब  होती है,,


हर्षित करे ये उर कभी

कभी आक्रोश भरती है

सत्य दिखला दे कभी

कभी भ्रमित करती है

तेज इसमें प्रकाश सा कभी

कभी अंधकार लिखती है

ये क़लम की आवाज़ है

यूँ ही बेहीसाब होती है,,


सम्मान लिखे नारी का कभी

कभी गाथा वीरों की लिखती है

बदल देती है सिहासन कई

जब कागज़ पर चलती है

इतिहास रच देती है नए

जब सत्य लिखती है

कभी युद्ध लिखती है 

कभी विनाश लिखती है

ये क़लम की आवाज़ है 

यूँ ही बेहिसाब होती है,,


है क़लम वो सच्ची जहाँ में

जो कवि का ह्रदय लिखती है

लिखती है वो बात समाज की

जो ना किसी के भय में रहती है

है क़लम तब तक वो बड़े काम की

जब तक ना वो पैसों में बिकती है

ये क़लम की आवाज़ है

यूँ ही बेहिसाब होती है।


 🌹🙏🏼जय किसान🙏🏼🌹


दुनिया को पेट भरवा वाला थे,

चलता री जौ रे,

आवें ला कई रोग,सकंट थे,

लडता री जौ रे,,


खेती करनी ईण जनम् मै जाणें 

शरहद पर तकियों लगा के सौणौ रे,,

दुनिया को पेट भरवा वाला थे,

चलता री जौ रे,,


खेती करवा वाला ही जाणै,

अन्न निपजाणौ या शरहद पे जा मरणौ रे,,

खुद भुखा रेवण वाला थे,दुनिया 

को पेट भरता री जौ रे,


आंदोलन मैं लडता लडता कई माता 

बहना रा सुहाग उझड गिया,

सिर पर कफ़न बाद थे,

खेती करता री जौ रे,


बीज रोपण मै  लिदौं लोन भी,

माथे पड्गियौ रे,

इंण कारणें कई किसान

 फंदौं गले लिदौ रे,,


खेती करणों वेही जाणें जौ

56,इंच री छाती राखें,

छोटा मोटा बैठ गाड़ी मै देश विदेशा मै घुमैं,

आवे सकंट जब 

देश में अन्नदाता कह वतला वें,,


खुद भुखा रेवण वाला थे,

दुनिया को पेट भरता री जौ रे,

खुद,भुखा रेवण वाला 

दुनिया को पेट भरता रीजो रै


🌹🌹प्यार मै मग्न🌹🌹


दिल से निकले शब्दों को

अक्सर पंनौ पर उतार लिया करता हूँ 

बस इस तरह अपने दिल के

दर्द को शांत कर दिया करता हूँ


तेरी खामोशी को मै अक्सर

समज ने कि कोशिश जो करता हूँ

तु भलेही दुर है मुझसे फिर भी में

अपने पास महसूस करता हूँ


तेरे हावभाव को कुछ हद तक

में समज ने में जो लगा हूँ 

बस इसी कि खोज में जो 

में निकला हूँ 


कुछ यादौ को मै फिर से 

दौहराने जो लगा हूँ

कोई हुँई तो नहीं कही भुल

हम से इसी कि खोज में लगा हूँ


शब्द के सहारे शब्दों को 

जो जोड़ने लगा हूँ

सच् बताऊ तो बितें दिनौ को 

लेकर आज फिर रोने लगा हूँ


कोई न तु खुश है जिसमें उसमें

 मै भी खुश हूँ 

बस इसी सहारे जीने लगा हूँ

तु खुश रहना बस इतनी

आराधना ईश्वर से करने लगा हूँ

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