विनय कुमार जायसवाल

ग़ज़ल---

माना मिला किसी का सहारा नहीं मुझे 
ईमान बेच दूँ ये ग़वारा नहीं मुझे

कहता तो है अज़ीज़ तू अपना मुझे मगर 
मुश्किल के वक़्त फिर भी पुकारा नहीं मुझे

मैं खैरियत से हूँ कहूँ कैसे किसी से मैं 
तूफान में दिखा है किनारा नहीं मुझे

बरसों इसी सवाल पे मैं सोचता  रहा 
क्यों कर मिला  जवाब  तुम्हारा नहीं मुझे 

उस बेवफ़ा पे प्यार लुटाया है आज तक
महसूस पर हुआ ये ख़सारा नहीं मुझे

मैं कामयाब हो न सका पर मेरे ख़ुदा 
मौक़ा दिया है तूने दुबारा नहीं मुझे

*साग़र* है  दिल में जिसकी मेरे अहमियत बहुत 
लेकिन कभी उसी ने शुमारा नहीं मुझे

🖋️विनय कुमार जायसवाल
3/4/21
ख़सारा-नुकसान

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