नारी
कभी घाम
कभी सांझ सुहानी
कभी दवा
कभी पीर पुरानी।
कभी क्रंदन,
कभी तान निराली
कभी तृष्णा
*कभी नदी है नारी।।*
कभी निर्जल
कभी सजल सांवरी
कभी पतित
कभी उत्थित अज्ञारी।
कभी अरण्य
कभी रम्य हरियाली
कभी तृष्णा
*कभी नदी है नारी।।*
कभी तमस
कभी दिव्य उजाली
कभी सुप्त
कभी जप्य जागृती l
कभी सूक्ष्म
कभी पूर्ण आहुती
कभी तृष्णा
*कभी नदी है नारी।।*
कभी वेद
कभी संतन गुरबानी
कभी वेग
कभी ठहरा सा पानी।
कभी गीत
कभी अनकही कहानी
कभी तृष्णा
*कभी नदी है नारी।
*शिल्पी भटनागर
*
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