शिल्पी भटनागर हैदराबाद तेलंगाना

 नारी


कभी घाम

कभी सांझ सुहानी

कभी दवा

कभी पीर पुरानी।

कभी क्रंदन,

कभी तान निराली

कभी तृष्णा 

*कभी नदी है नारी।।*

कभी निर्जल

कभी सजल सांवरी

कभी पतित

कभी उत्थित अज्ञारी।

कभी अरण्य

कभी रम्य हरियाली

कभी तृष्णा 

*कभी नदी है नारी।।*

कभी तमस 

कभी दिव्य उजाली

कभी सुप्त

कभी जप्य जागृती l

कभी सूक्ष्म

कभी पूर्ण आहुती

कभी तृष्णा 

*कभी नदी है नारी।।*

कभी वेद 

कभी संतन गुरबानी

कभी वेग

कभी ठहरा सा पानी।

कभी गीत 

कभी अनकही कहानी

कभी तृष्णा 

*कभी नदी है नारी।


*शिल्पी भटनागर


*

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