*नींद के ज़जीरे पर*
नींद के ज़जीरे पर
ख्वाबों का मुसाफिर
निकल पड़ा खामोश
रात के सफर पर
चॉंदनी की नदिया में
सितारों की लहरे थीं
दूर कहीं जल रहा था
आकाश दीप-सा चॉंद
खामोशियों की सरगम
पर हवाओं की रागिनी
गुनगुनाती तन्हाई में
थी रुहानी आशिकी
बीती थी जो मधुयामिनी
जागने लगी फिर रात में
ख्वाब जाग कर करने लगे
प्रेमालाप अपने आप में
ख्वाबों में हम-तुम गुम
बस जाग रही थीं रुहें
ख्वाबों का मुसाफिर
नींद के ज़जीरे पर ,कर
रहा था खामोश सफर।
डा. नीलम
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