किसे हम दुख कहें अपना मिले छालों से जलते हैं।
निकलते दर्द में जो भी उन्हीं नालों से जलते हैं।
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अकेले हैं जमाने में पराई सी लगे दुनिया।
नहीं कोई लगे दुख भी ज़रा आहों से जलते हैं।
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मिलन की बात होती है मगर विरहा ही मिलती है।
सुलगती रात में दिखते सभी ख्वाबों से जलते हैं।
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बिछड़ना ही लिखे किस्मत तेरे बस में है बस मिलना।
तड़पकर नाम लेते हैं तेरा सालों से जलते हैं।
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अजब सी ये लगे दुनिया न मिलती है मिलाती है।
जो तुझसे दूर ले जाएं उन्हीं बातों से जलते हैं।
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सुनीता असीम
३१/३/२०२१
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