क्षितिज का मौन
3.4.2021
वो जहाँ मिल रहा है गगन धरा से
मिलन होता क्षितिज में ही सदा
तक तक थक जाते नैन जब दोनों के
आँसू ओस के रूप में गिरे धरा से मिलें।
क्षितिज मिलन शाश्वत मौन है
न कोई चाह न मन का मृदंग है
बस स्वीकृति एक दूसरे से
और चाह बस एक मिलन ।
विहंगम दृश्य खड़ा
बाहं पसारे है गगन
झुक गया क्षितिज तक
भरने धरा को अंक ।
धरा का पूर्ण समर्पण
उदित या ढलता सूरज
बढ़ा देता रिश्तों की गरिमा
करके सम्पूर्ण समर्पण ।
जिससे चलती सृष्टि
क्षितिज ऐसा मिलन जो
है आध्यात्मिक दूर भौतिकता से
कर्मपथ पर निरन्तर दोनों चलते
एक दूसरे को बस दूर से तकते ।
स्वरचित
निशा"अतुल्य"
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