एस के कपूर श्री हंस

।। ग़ज़ल।।  ।।संख्या 59।।*
*।।काफ़िया ।। ।।अर ।।*
*।।रदीफ़  ।।   ।। हो गया।।*
1
जाने    कैसे दूर  ये शहर  हो  गया।
क्यों साथ अपने ये कहर  हो  गया।।
2
लिखा सीने से कलेजा निकाल कर।
क्यों ग़ज़ल का शेर  बेबहर हो गया।।
3
रखा था बांध कर   जिस  ठहराव को।
देखते देखते वो      ही  लहर हो गया।।
4
लाये जो दरिया पहाड़ों से निकालकर।
चलते   चलते वो क्यों   नहर हो  गया।।
5
बड़े मन से बनाये   जो पकवान हमने।
वही खाना चखे बिना   जहर हो गया।।
6
*हंस* देख न पाये सूरज की रोशनी को।
हमारे जागने से पहले ही सहर हो गया।।
*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस

।।गुस्से में छिपा भी प्यार होता है।।*
*।।ग़ज़ल।।*  *।।संख्या 58।।*
*।।काफ़िया।। ।। आर ।।*
*।।रदीफ़ ।। ।।होता है।।*
1
गुस्से में छिपा भी  प्यार     होता   है।
चाहत का ऐसा ही  क़िरदार होता है।।
2
समझदार   को तो  इशारा काफी है।
इंकार    भी  लिए   इक़रार  होता है।।
3
जो करता  है       बेपनाह    महोब्बत।
उसे ही  रूठने का अख्तियार  होता है।।
4
गुस्सा तो बस चेहरे पर ही  दिखता है।
प्यार दिल के अंदर लगातार   होता है।।
5
जो रखे हक़ महोब्बत का   किसी पर।
वही जाकर गुस्से का हक़दार होता है।।
6
वही होता  जीवन में  इक़ सच्चा साथी।
वही सुख दुःख का  हिस्सेदार होता है।।
7
जो करता बस मुहँ   पर झूठी  तारीफ़।
वह आदमी अंदर  से   बेकार होता है।।
8
झाँकते रहो  अपने   अंदर भी  हमेशा।
क्यों किसी से बात पे तक़रार होता है।।
9
जिसके प्यार में बसा होता झूठा गुस्सा।
तुम्हारे लिए जैसे वो इक़ संसार होता है।।
10
*हंस* गुस्से ,नज़र, दिल को पढ़ना सीखो।
तेरे लिए वो इंसा यक़ीनन बेकरार   होता है।।

*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस "*
*बरेली।।।।*
मोब ।।।।       9897071046
                    8218685464

*।।विधा/विषय गद्य साहित्य ।।*
*।।होली व अन्य त्यौहार।।केवल पर्व ही नहीं।।संबधों की प्रगाढ़ता के सुअवसर हैं।।*

होली ,दीवाली, दशहरा व अन्य केवल रंगों के खेलने व आतिशबाजी के त्यौहार ही नहीं है,अपितु दिलों का रंगना,मिलना इसमें परमआवश्यक है।रंगों के बहने के साथ ही मन का मैल बहना भी बहुत आवश्यक है ,तभी होली की सार्थकता है और दीपावली पर जाकर मिलना ,उनके हाथ से मीठा खाना, साथ हंसना बोलना ही पर्व की सार्थकता है।
कहा गया है कि, अंहकार मनुष्य के पतन का मूल कारण है। अंहकार मनुष्य की बुद्धि विवेक , तर्क शक्ति , मिलनसारिता तथा अन्य गुणों का हरण कर लेता है।व्यक्ति का जितना वैचारिक पतन होता है ,उतना ही उसका अंहकार बढता जाता है। अंहकार से देवता भी दानव बन जाता है और अंहकार रहित मनुष्य देवता समान हो जाता है।बड़ी से बड़ी गलती के तह में यदि जाये ,तो मूल स्रोत में अंहकार को ही पायेंगे।
ईर्ष्या व घृणा का मूल कारण भी अंहकार ही होता है ,जो अन्ततः कई क्षेत्रों में असफलता का कारण बनता है। होली ,दीपावली व अन्य त्योहार ,वो अवसर है ,जब कि ,मनुष्य समस्त विद्वेष व कुभावना का त्याग कर, शत्रु को भी मित्र बना सकता है।अंहकारी सदैव विनम्रता विहिन होता है।अंहकार आने से मनुष्य अपने वास्तविक रूप से भी ,धीरे धीरे दूर हटने लगता है और एक बहुरूपीये समान बन जाता है।वह कई झूठे आवरण अोढ लेता है और उसकी अपनी असलियत ही लुप्त होने लगती है।अंहकारी में , हम की भावना नहीं होती है।उसमें केवल मैं की भावना ही होती है।यह भावना नेतृत्व क्षमता व समाजिक लोकप्रियता के लिए अत्यंत घातक है।अंहकारी व्यक्ति में धीरे धीरे ,धैर्य , निष्ठा ,सदभावना का अभाव होने लगता है।अंहकार का खानदान बहुत बड़ा है और यह अकेले नहीं आता है और साथ में कोध्र, स्वार्थ, घृणा ,अहम, अलोकप्रियता ,अधीरता , आलोचना ,निरादर ,कर्मविहीन सफलता की लालसा ,अतिआत्म विश्वास, त्रुटि को स्वीकार न करना, आदि अनेक अवगुण स्वतः ही साथ आ जाते हैं।अतएव ,त्योहारों में बड़ापन दिखायें, एक कदम आगे बढे, दिल से गले लगायें।आप पायेंगे नफरत की बहुत मजबूत सी दिखने वाली दिवार, भरभरा कर एक झटके में ढह जायेगी।
सारांश यही है कि, होलिका दहन मे अहंकार को भी जला कर नाश कर दिया जाना चाहिए।जन्माष्टमी का प्रसाद का आदान प्रदान करें।दीपावली में एक दूसरे के यहाँ अवश्य जाये।मिलकर दशहरा पर्व पर रावण दहन करें।तभी इन पवित्र पावन पर्व की सार्थकता है।पहल करके देखिये, एक कदम बढ़ाइये, आप पाएंगे कि पहले ही दो कदम आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं।गले भी लगिये और दिलों को भी मिलाइये।आप देखेंगे कि त्योहारों की यह मिलन सारित, एक सकारात्मक परिणाम आपके जीवन में लेकर आयेगी।
*लेखक।।।।।एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।।।।*
मोब।।। 9897071046
8218685464

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