सुषमा दीक्षित शुक्ला

होली की वह मधुमय बेला ,
बीत गई कुछ छोड़ निशानी।

 गली मोहल्ले रँग रँग है,
 रंगा हुआ नाली का पानी।

 दीवारों पर रंग जमा है ,
चेहरों पर भी रंग रवानी ।

कहीं फ़र्श तो कहीं रँगे मन ,
अलग अलग कर रहे बयानी।

 होली तो हे! मीत यही बस,
 याद दिलाने आती है ।

नफरत छोड़ो प्यार निभाओ,
 दुनिया किसकी थाती है ।

होली की वो मधुमय बेला ,
बीत गयी कुछ छोड़ निशानी ।

गली मोहल्ले रंग रँग है ,
रँगा हुआ नाली का पानी ।

सुषमा दीक्षित शुक्ला

कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...