बीत गई कुछ छोड़ निशानी।
गली मोहल्ले रँग रँग है,
रंगा हुआ नाली का पानी।
दीवारों पर रंग जमा है ,
चेहरों पर भी रंग रवानी ।
कहीं फ़र्श तो कहीं रँगे मन ,
अलग अलग कर रहे बयानी।
होली तो हे! मीत यही बस,
याद दिलाने आती है ।
नफरत छोड़ो प्यार निभाओ,
दुनिया किसकी थाती है ।
होली की वो मधुमय बेला ,
बीत गयी कुछ छोड़ निशानी ।
गली मोहल्ले रंग रँग है ,
रँगा हुआ नाली का पानी ।
सुषमा दीक्षित शुक्ला
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