कोरोना कविता आशावादी
बाहर न जाओ!
सांस थम रही है, बाहर न जाओ,
घूम रहा वायरस, बाहर न जाओ।
उजड़ रही दुनिया, कुछ तो डरो,
मरोगे बे- मौत, बाहर न जाओ।
मौत से न खेलो,सरकार की सुनो,
तोड़ो न मेरा दिल,बाहर न जाओ।
वीरान हो रहा है, शहर का शहर,
बचो और बचाओ,बाहर न जाओ।
ये लम्हें ज़िन्दगी के बहुत कीमती,
उजड़े न घर अपना,बाहर न जाओ।
मझधार में फंसी यह देख दुनिया,
न डूबे कहीं कश्ती, बाहर न जाओ।
रहोगे जिन्दा, तो सब पा जाओगे,
पर मौत को बुलाने, बाहर न जाओ।
मास्क पहनो औ फासले से रहो,
मना खैर दुश्मन की,बाहर न जाओ।
आँक्सीजन,वेंटिलेटर की देखो कमी,
बरस रही है मौत, बाहर न जाओ।
ज़िन्दगी औ मौत के बीच हम खड़े,
माहौल है खराब , बाहर न जाओ।
रामकेश एम.यादव(कवि,साहित्यकार),मुंबई
इन दिनों!
बेखौफ़ हो गए हैं परिन्दे इन दिनों,
इंसान डर रहा है,इंसान से इन दिनों।
कोरोना लाया वायरस का रेला,
बे-मौत मर रहा इंसान इन दिनों।
दिशा-निर्देश का न करते जो पालन,
वही हैं ज्यादा परेशान, इन दिनों।
बरस रही है मौत सारे जहां में,
दुनिया हो रही है वीरान, इन दिनों।
चीख -चीत्कार का उसपे असर नहीं,
लाश से दबी कब्रिस्तान, इन दिनों।
श्मशान रो रहा मुर्दों को देखकर,
खाली हो रहा है मकान इन दिनों।
मोटर - कार, रेल के चेहरे उड़े,
हो रहा है भारी नुकसान इन दिनों।
टूटेगी चैन उसकी रहो सभी घर में,
यक़ीनन मरेगा हैवान, इन दिनों।
रामकेश एम.यादव(कवि,साहित्यकार),मुंबई
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