काव्य रंगोली पेज हेतु
संक्षिप्त परिचय
नाम - बसंत कुमार शर्मा, IRTS
पिता - स्व0 श्री दौलत राम शर्मा
माता - स्व0 श्रीमती कमला प्रसाद शर्मा
शिक्षा - एम. कॉम
संप्रति -उप मुख्य सतर्कता अधिकारी,
पश्चिम मध्य रेल, जबलपुर
लेखन विधाएँ - गीत, नवगीत, दोहा, छंद, ग़ज़ल, व्यंग्य, लघुकथा, संस्मरण आदि
संपर्क-
बसंत कुमार शर्मा,
354, रेल्वे डुप्लेक्स,
फेथ वैली स्कूल के सामने,
पचपेढ़ी, साउथ सिविल लाइन्स,
जबलपुर (म.प्र.)
पिनकोड- 482001
मोबाइल : 9479356702
ईमेल : basant5366@gmail.com
प्रकाशन - विभिन्न साझा संकलनों एवं पत्र/पत्रिकाओं में दोहा, गीत, नवगीत, ग़ज़ल, व्यंग्य, लघुकथा आदि का सतत प्रकाशन
पुस्तक प्रकाशन -
(1) बुधिया लेता टोह - गीत-नवगीत संग्रह - वर्ष 2019 - काव्या प्रकाशन, दिल्ली
(2) शाम हँसी पुरवाई में - ग़ज़ल संग्रह - वर्ष 2020 - ब्लू रोज पब्लिशर्स, नई दिल्ली
गीत (१)
हुई नगर की जीत
आज गाँव
फिर हार गया है,
हुई नगर की जीत
मचल रहा है
मेरे मन में,
एक और नवगीत
हरिया के
खेतों में कारें,
सरपट रेस लगातीं
सुबह शाम
खूँटे पर गायें,
भूखीं रोज रँभातीं
मुनिया को
टूटे छप्पर में,
सता रहा है शीत
खुला नया
जनपद का ऑफिस,
छत पर
सोलर पैनल
डिस्क लगाकर
देखें साहब,
टी वी पर हर चैनल
खोज रहे
मादक नर्तन में, जनसेवा की रीत
कुल्हड़; पत्तल;
दोने सब पर,
हुआ प्लास्टिक भारी
आम पलाश
नीम पीपल को,
श्वासों की दुश्वारी
हरी भरी तुलसी आँगन की
रहती है भयभीत
करे आजकल
नंदनवन में,
जिप्सी रोज सफारी
कालिंदी के
तट को लगते
हैं कदंब अब भारी
कहाँ राधिका, कृष्ण, गोपियाँ
कहाँ सरस नवनीत
गीत (२)
ढँग से जी लो
वर्तमान को,
सबके सँग मिलजुल
किसे पता
जीवन की बत्ती,
कब हो जाये गुल
कोयल की
मीठी बोली
सँग,
गीत प्रीत के गाओ
सागर से गहरे
नयनों में,
सपने नए सजाओ
देखो वहाँ डाल पर बैठी,
क्या सोचे बुलबुल
तोरण बाँधो
दरवाजे पर
खुशियाँ आएँगी
कोमल अधरों
पर मुस्कानें
खिल-खिल जाएँगी
इधर-उधर की
गलत बात तो सोचो मत बिलकुल
हिंसा, नफरत
छोड़-छाड़ कर,
बन जाओ गौतम
अक्षर-अक्षर
हो अनुरागी,
अधर गीत-सरगम
सारी दुनिया
गले लगाने
हो जाये आकुल
गीत (३)
तोता-मैना
गौरैया का,
आँगन ठाँव भुला बैठे.
बरगद, पीपल,
आम, नीम की,
शीतल छाँव भुला बैठे.
भूले कच्ची
दीवारों के,
हम रिश्ते पक्के.
आज वही
रिश्ते खाते हैं,
सडकों पर धक्के.
क्यों शहरों की
चकाचौंध में,
अपना गाँव भुला बैठे.
प्यार मुहब्बत
की अमराई,
नदिया नाव-खिवैया.
भूले सखियाँ
सखा अनोखे,
पोखर ताल-तलैया.
उलटे-पुलटे
याद हो गए,
सीधे दाँव भुला बैठे.
कंगन, बिंदिया,
हरी चूड़ियाँ,
आँखों का कजरा.
हार मोतियों जड़ा सलौना,
बेला का गजरा.
पायल, बिछिया और महावर,
वाले पाँव भुला बैठे.
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