नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

जिम्मेदार इंसान---

नशा जिंदगी का अभिशाप
नशा नाश विनाश को देता
दावत नशा जिंदगी का पाप।।
नशा दौलत का ,ताकत का,
शोहरत का ,हुश्न का नशा
अंतर मन का खोखला
अभिमान।।
नशा शराब धीरे धीरे गलता
इंसान शराब दौलतमंद का
नशा दारू ठर्रा महुआ गरीब
का अहंकार।।
गांजा भांग चरस अफीम
हीरोइन हसीस जाने क्या
क्या नाम नही मिलता
परम्परागत नशा तो ड्रग
एडिक्सन नए युग का नशा
नायाब।।
खैनी गुटका पान धूम्रपान
तंबाकू बीमारी पैसा देकर
खरीदता इंसान।।।                       

अब तो ऐसे
हालात नादान सिगरेट
बीड़ी का कस खिंचते वर्तमान
भविष्य के कर्णधार।।         

पर्यावरण प्रदूषित प्रकृति
परेशान ना जाने कितनी
बीमारिया प्रदूषण पर्याय।।

तम्बाकू खैनी बीड़ी सिगरेट
जीवन में छैनी धीरे धीरे
खोखला करती  जिंदगी
मजधार में ही निबट जाता
इंसान।।

बीड़ी सिगरेट के धुएं में 
पल प्रहर जलता घुट घुट
कर मरता इंसान।।

कैंसर जैसी भयंकर बीमारी
को बैठे बैठे दावत देता सुर्ती
तंबाकू के सेवन से इंसान।।

पीताम्बर का आवाहन 
युग विश्व के मानव सुनो
ध्यान लगाय सुर्ती तंबाकू
बीड़ी सिगरेट से तौबा 
कसम उठाओ आज।।

बीबी बच्चों पर तो कुछ
रहम करो जिनका जीवन
तुमसे तुम ही हो उनके जीवन
खुशियों के नाज़।।
असमय अगर बीमारी के
बन गए ग्रास महंगा बहुत
इलाज इलाज में ही जाते कंगाल ।।
जीवित गर रह पाए तब
भी जीवन भार नही रहे
यदि परिवार झेलता सजा
दर दर फटेहाल।।

नौबत ही क्यो आये तुम
जिम्मेदार इंसान ऐसा कुछ
भी ना पालो सौख नशा
जीते जी ही मर जाए चाहत 
का परिवार।।                   

कुछ तो  रहम करो खुद पर ना आये कोई बीमारी आफत जंझाल।।

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश

आशुकवि रमेश कुमार द्विवेदी चंचल

पावन मंच को प्रणाम, धनवन्तरि शतक भाग दो के आगे के भाग का अवलोकन करें****""*******""*"पेटनु रोगु अनेक भरे  जेहिमा  कछू कै हम नामु गनाई!!                                          आध्मान अपच या कही अफरा मचली या डकार का काव बताई!!                       गैसु खुलै तौ लगै असकिनु मानौ मध्य सभानु मा आफत आई!!                      भाखत चंचल उलटी कही या कही जौनु पेचिस धाय जो आई!! 1!!                 भगन्दरु अर्श कही  हौं जाकौ  केहू केहु जे बवासीर कहाई!!                             आंव गिरै चाहै होय सफेद या रक्तम रक्त जे ढेरु लगाई!!                               लीवर याकि खराब कही याकि गोला जे वायु कै नाव कमाई!!                         भाखत चंचल और बहूत जो राज अपरू मंहय दुजो  कहाई!! 2!!                  अर्क कही तुलसी पंचामृत जाहि रसायन वैद्य बताई!!                          एक्ट कही हौं गैस बदे  जे कैप्सूलनु आवतु सांई!!                                    सीरपु स्मृति लैफु कही याकि जौनु सी आई डी नामु गनाई!!                            भाखत चंचल एक्ट आक्सीडेन्ट  या लाइव सीरपु नाव गनाई!! 3!!                 कैप्सूलहु पाइल्स एक्ट कही याकि पाउडर हू लै आवहु भाई!!                           सीरप लिवो लिन ही गनी  अरू पथ्यनु ध्यानु ते खावहु सांई!!                           पथ्य परहेज करौ कछू दिवसु औ टेबलेट त्रिफला को साथहू लाई!!                  भाखत चंचल जोरू कहौं  तबु उत्तिमु सेहतु पावहु सांई!! 4!!                            नारी कही जे तौ आधी अबादी   विशेषनु  पार्टी जेशासनु आंई!!                            रोगु मा नैकहूं आई कमी एहि कारनु आजु हौं रोगु गनाई!!                              मासिक होय अनियमित याकी या पानी सफेद या लाल गनाई!!                             भाखत चंचल गोद भरी नहि झंखत सूनी जे ताहि जनाई!! 5!! आशुकवि रमेश कुमार द्विवेदी चंचल, ओमनगर सुलतानपुर उलरा चन्दौकी अमेठी उत्तर प्रदेश मोबाइल फोन::::::8853521398, 9125519009!!

कुमार@विशु

माँ का कर्ज चुकाना है।
जिसके  आँचल  के छाँव तले हम बड़े हुए,
जिसकी  मिट्टी  में  खेलकूदकर  खड़े  हुए,
उसके पाँव की मिट्टी को माथे से लगाना है,
अब  हमको भारत माँ का  कर्ज चुकाना है।।

हरियाली धानी कपड़ों को हमने सदा जलाया,
नष्ट किये सारे  वन-उपवन सुनापन अपनाया ,
वृक्ष लगाकर फिर से धरती माँ को सजाना है,
अब  हमको भारत माँ  का  कर्ज  चुकाना  है।।

वो जननी नौ माह हमे निज कोंख में रखती है,
बूँद-बूँद निज रक्त से तन को सिंचित करती है,
पीड़ा  हँसकर  झेल  गयी उसे नहीं रूलाना है,
उस जननी माँ के हित में कुछ फर्ज निभाना है।।

जन्म से लेकर  मृत्यु तलक जिसने है अन्न दिया,
जिसके रजकंण में उठ गिरकर हमने साँस लिया,
झूलसी  केसर  की  क्यारी  को  फिर महकाना है,
अब   हमको  भारत  माँ  का   कर्ज  चुकाना  है।।

उत्तर   में   गिरिराज  हिमालय   पहरा   देता  है,
दक्षिण  में  सागर  निसदिन चरणों को धोता  है ,
भारत  माँ के  श्री  चरणों  में  शीश  झुकाना है,
अब हमसबको  भारत  माँ  का  कर्ज चुकाना है।।

रक्त की नदियाँ बह जाएँ कम शीश नहीं होंगे,
माँ शान अगर गिर जाए तो जीकर क्या करेंगे,
दुश्मन की छाती पर चढ़ ध्वज तेरा फहरान है,
अब  हमसबको भारत माँ का  कर्ज चुकाना है।।

✍️कुमार@विशु
✍️स्वरचित मौलिक रचना

सुधीर श्रीवास्तव

भावनाएँ बारिश की
****************
ये भी अजीब सी पहली है
कि बारिश की भावनाओं को तो
पढ़ लेना बहुत मुश्किल नहीं
समझ में भी आ जाता है
पढ़कर समझ में भी आता है।
परंतु भावनाओं की बारिश
कब, कहाँ कैसे और
कितनी हो जाय ,
कोई अनुमान ही नहीं।
हमारी ही भावनाएं
कब, कहाँ, कैसे और कितनी
कम या ज्यादा बरस जायेंगी
हमें खुद ही अहसास तक नहीं।
भावनाओं की बारिश के
रंग ढ़ग भी निराले हैं,
अपने, पराये हों या दोस्त दुश्मन
जाने पहचाने हों या अंजाने, अनदेखे
जल, जंगल, जमीन, प्रकृति,
पहाड़, पठार या रेगिस्तान
धरती, आकाश या हो ब्रहांड
पेड़ पौधे, पशु पक्षी ,कीट पतंगे,
झील, झरने,तालाब ,नदी नाले
या फैला हुआ विशाल समुद्र,
सबकी अपनी अपनी भावनाएं हैं
और सबके भावनाओं की
होती है बारिश भी।
इंसानी भावनाएं होती सबसे जुदा,
इन्हें और इनकी भावनाओं को
न पढ़ सका इंसान तो क्या
शायद खुदा भी।
भावनाएं और उसकी बारिश की
लीला है ही बड़ी अजीब सी।
● सुधीर श्रीवास्तव
      गोण्डा, उ.प्र.
    8115285921
©मौलिक, स्वरचित

एस के कपूर श्री हंस

*।।।।।रचना शीर्षक।।।।।।।।*
*धूम्रपान निषेद्ध   दिवस  31* 
*मई  पर   शपथ।।*
*।।।।विधा।।।।।मुक्तक।।।।।*

1
तम्बाकू, गुटका, पान मसाला
की अब  बस  है  आज    से।
कैंसर कारक इन नशों की तो
मानो अब तज है  आज   से।।
आज ही क्या सदैव जीवन में
आगे से उपयोग  नहीं   करेंगें।
प्रण करते  हमसब    धूम्रपान
निषेद्ध दिवस सच हैआज से।।
2
तंबाकू उत्पादों  का     प्रयोग
मानो जहर     का  सेवन   है।
जीवन का तो मानो कि  मौत
के दरिया में   खेवन          है।।
आज अभी से  छोड़  दीजिए
आदत   बुरी   धूम्रपान     की।
बेमौत मरता आदमी    बचता
नहीं     कोई   नाम   लेवन  है।।
*रचयिता।।।।एस के कपूर*
*"श्री हंस"।।।।*
*बरेली।।।।।।।।।*
*31।।।।05।।।।।2021।।।*
मोब  9897071046।।।।
8218685464।।।।।।।।।

अरुणा अग्रवाल

नमन मंच,माता शारदे,गुणीजन,
शीर्षक-"आलमारी में रखें पुराने खत"
30।05।2021।


 मानव,मानवी स्रष्टा का श्रेष्ठ सृजन 
इनमें दिया है कला,मनन,कौशल,
ज्ञान,बुद्धि,विवेक,कागज,कलम,
ताकि लिख सकें मनका भावना।।


और यह सिलसिला,चलायमान,
मोबाइल से पहले खतका,परंपरा,
एक दूजे के लिऐ लिखता,सुबोध,
और खत के माध्यम से होता रूबरू।।

 नया नौ दिन ओर पुराना सौ दिन,
उसी तरह खत-पुराना है अनमोल
जब कभी फ़ूरसत,पढ़े ,सह-मन,
यादगारी लम्हा,देगा शुकून,अपार।।


चाहे वह बचपन-बन्धु,आत्मिय,
लिखा हो तन,मन,लगन से प्रिय,
जब कभी याद आऐ,पढ़े,खत,
अवश्य मिलेगा शान्ति-मुरार।।


 गहना,आभूषण तो फ़िर मिलेंगे,
पर वह खत,अतुल,गुमनाम न,
होने पाऐ,रखें विशेष-ध्यान,
आलमारी का बढ़ाता रहे मान।।


पाती को मत समझें महज,कागज
वह है बेशकीमती तोहफ़ा,मुचुकंद
सम्भालके रखो उसे आलमारी,में,
ताकि सुशोभित,मंड़ित सम,गहना।।


अरुणा अग्रवाल।
लोरमी।छःगः।🙏

डॉ. कवि कुमार निर्मल

अलमारी में रखे पुराने खत
    
अलमारी में रखे पुराने खत की बात आज सुधिजनों  को बतानी थी।
कुछ लिखते खत में मन बाहर की, मिलने पर बातें होती जुवान थी।।

अब है चैटिंग की सुविधा अनंत, तब 'श्याही' होती भरवानी थी।
अनलिमिटेड डाटा है आज, तब कागज पर कलम चलानी थी।।

खत की बात निराली, लिख कर पत्र-मंजुषा में डाली  जाती थी।
कोने में सिमट एकांत देख, मन की कुछ बातें लिखी जाती थी।।

पहले तो दूरियां अक्सर रहती, पढ़ाई नौकरी की बातें पुरानी थी।
जबसे लॉक डाउन, रहना घर- बगल में बैठ चैटिंग फरमानी थी।।

आज अलमारी में रखे पुराने खत पढ़ यादों की बारात सजानी थी।
कपाट खोलते हीं, खतों से 'इत्र अल काबा'  की खुशबू आनी थी।।

एक खत मिला प्रियतमा का- उफ! दर्द भरी लम्बी एक कहानी थी।
विरह की अगन बह आँसुओं संग- चिट्ठी में पीड़ा लिखी पुरानी थी।।

गर्मी की तपिश हो या फिर जाड़े की ठिठुरन, बात  खतों में घोली थी।
बारिश की पहली फुहार से भड़की तिश्नगी- खत में वो  लिखती थी।।

कभी आँसुओं की धार टपकती दिखती- श्याही पसरी जो रहती थी।
कभी लिखती नाम खून से- मन की श्याही अगन से सूखी रहती थी।।

कुछेक पुराने अलमारी में रखे दबे-मुचड़े खत खोज- बातें तो कहनी थी।
मित्र भले छुपालें- हम हैं निश्छल- अनुभव की बातें यथावत् रखनी थी।।

अलमारी में रखे पुराने खत की बात आज  सुधिजनों को बतानी थी।
लिखते खतों में बात मन की कुछ औरों की लिख सारी  बतानी थी।।

डॉ. कवि कुमार निर्मल
बेतिया, बिहार 845438

अतुल पाठक धैर्य

शीर्षक-लिहाज़
विधा-विधामुक्त
----------
थोड़ी सी लिहाज़ रक्खा तो करो,
बूढ़े मां बाप को अपने ज़रा देखा तो करो।

जिन्होंने ख़ुद की ख़ुशियाँ त्याग दी हों तुम्हें कामयाब बनाने में,
उनकी थोड़ी परवाह किया तो करो।

कभी सोचा है माँ बाप के आत्मसमान को कितनी चोट पहुँचती होगी,
जब अपने ही बच्चे उनको दर-दर की ठोकरें खाने पे मजबूर करते हों।

उस वक्त  माँ बाप भी ख़ुदा से यही कहते होंगे,
 कि ये दिन दिखाने के लिए कभी ऐसी औलाद दिया न करो।

बागबान जैसी फिल्म बनाई न जाती,
गर आज के दौर में ग़ैरत से भी बदतर संतान पाई न जाती।

रचनाकार-अतुल पाठक " धैर्य "
पता-जनपद हाथरस(उत्तर प्रदेश)
मौलिक/स्वरचित रचना

जया मोहन

आज तम्बाखू निषेध दिवस पर
सीख
आव गया आदर गया 
गए सुपारी पान
सिगरेट के  कस ले रहा
खुश हो नवजवान
गुटखा मुँह में दबा लिया
चढ़ा सुरा का रंग मस्त हो गए भैया जी पी लोटा भर भंग
मना किया घरवालों ने पर खूब की मनमानी
रोगों से तन घिर गया अब याद आ रही नादानी
मुख कैंसर हो जाने से नही खा पाते खाना खांसते रहने के कारण नही हो पाता सोना
रोते हैं पछताते है सबसे यही बताते है
छोड़ो दारू गुटखा पान
नही बढ़ती इससे शान
मुझे देख कर ले लो सीख
नही तो तुम माँगोगे भीख
ज़िन्दगी की है ये सौत
समय से पहले देती मौत

स्वरचित
जया मोहन
प्रयागराज

निशा अतुल्य

बालगीत
गर्मी का मौसम
31.5.2021

आम,लीची,आड़ू का मौसम आ गया
मन को मेरे बहुत ही ललचा गया
बहुत मीठे है भाई तरबूज,खरबूजे
भर गया पेट,पर मन तरसा गया ।

माँ कहती रोटी भी खाओ
तन को अपने स्वस्थ बनाओ
मुझको पर भाता है आम
बाबा का गुस्सा खाना खिला गया
आम,लीची,आड़ू के मौसम आ गया ।।

गर्मी में बहुत अच्छा लगता है शरबत
मगर आम का पन्ना दिल तरसा गया
बचपन अपना पतंगों संग उड़ाया मैंने
रिमझिम बारिश का पानी तन भीगा गया ।
आम,लीची,आड़ू का मौसम आ गया।। 

दोपहरी भर खेलते लड़ते संगी साथी
मस्तियों का आलम बेशुमार छा गया 
छुट्टी हुई पाठशाला की छूटी जान
सबके घर आने से उत्सव सा छा गया 
आम,लीची,आड़ू का मौसम आ गया।। 

माँ का हाथ बटाऊँ,आज मेरे दिल में आ गया
देख थकी सूरत माँ की,समय मुझको बड़ा बना गया
मेरा प्यारा बचपन,मुझको समझदार बना गया 
मैं जिद नहीं करती,फल अब भी भाते हैं बहुत 
समय सबकी अहमियत मुझको समझा गया
आम,लीची,आड़ू का मौसम आ गया।।

स्वरचित
निशा"अतुल्य"

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

दसवाँ-3
  *दसवाँ अध्याय*(श्रीकृष्णचरितबखान)-3
जे नहिं कंटक-पीरा जानै।
ऊ नहिं पीरा अपरै मानै।।
    नहीं हेकड़ी,नहीं घमंडा।
    रहै दरिद्री खंडहिं-खंडा।।
नहिं रह मन घमंड मन माहीं।
जे जन जगत बिपन्नय आहीं।।
    रहै कष्ट जग जे कछु उवही।
    ओकर उवहि तपस्या रहही।।
करि कै जतन मिलै तेहिं भोजन।
दूबर रह सरीर जनु रोगन ।।
     इन्द्रिय सिथिल, बिषय नहिं भोगा।
     बनै नहीं हिंसा संजोगा ।।
कबहुँ न मनबढ़ होंय बिपन्ना।
होंहिं घमंडी जन संपन्ना ।।
     साधु पुरुष समदरसी भवहीं।
    जासु बिपन्न समागम पवहीं।।
नहिं तृष्ना,न लालसा कोऊ।
जे जन अति बिपन्न जग होऊ।।
     अंतःकरण सुद्धि तब होवै।
      अवसर जब सतसंग न खोवै।।
जे मन भ्रमर चखहिं मकरंदा।
प्रभु-पद-पंकज लहहिं अनंदा।।
     अस जन चाहहिं नहिं धन-संपत्ति।
    संपति मौन-निमंत्रन बीपति ।।
प्रभु कै भगति मिलै बिपन्नहिं।
सुख अरु चैन कहाँ सम्पन्नहिं।।
      दुइनिउ नलकूबर-मणिग्रीवा।
      बारुनि मदिरा सेवन लेवा।।
भे मदांध इंद्री-आधीना।
लंपट अरु लबार,भय-हीना।।
      करबै हम इन्हकर मद चूरा।
      चेत नहीं तन-बसन न पूरा।।
अहइँ इ दुइनउ तनय कुबेरा।
पर अब पाप इनहिं अस घेरा।।
     जइहैं अब ई बृच्छहि जोनी।
     रोकि न सकै कोउ अनहोनी।।
पर मम साप अनुग्रह-युक्ता।
कृष्न-चरन छुइ होंइहैं मुक्ता।।
दोहा-जाइ बीति जब बरस सत,होय कृष्न-अवतार।
        पाइ अनुग्रह कृष्न कै, इन्हकर बेड़ा पार ।।
                     डॉ0हरि नाथ मिश्र
                      9919446372

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

जन्म दिन-----

जश्न जोश का बहाना चाहिये
जन्म दिन उत्साह उमंग से 
मानना चाहिए।।

सच्चाई की जीवन की 
लम्बाई जिंदगी  छोटी होती हर
जन्म दिन पर एक वर्ष
उम्र कम होती गम नही
जीवन मे जीने का अंदाज़ चाहिये।।

जन्मदिन के जश्न में 
कोई परंपरा भारतीय नही
ना कैंडल्स ना केक फिर भी
गर्व अभिमान भारतीय है हम
भारतीयता को अपनाना चाहिये।।

जन्म दिन की खुशियों में
शुमार दावत दारू नाच गान
उपहार हैप्पी बर्थ डे जिओ
हज़ारों साल होना चाहिये।।

गर मौका मिल जाए
गर्ल फ्रेंड की बाहों में बाहें डाल
घुमाना चाहिये शायराना अंदाज़
बडा नाज़ जन्म दिन आता साल
में एक बार इश्क मोहब्बत प्यार
आजमाना चाहिए ।।

पूरे जश्न जोश खो जाए
होश दोस्तो संग मौज 
मौके का जौक शौख का
खास खुशियों का खुमार
आना चाहिये।।
भारत भारतीयता की परम्परा
तकिया नुकुसी जन्म दिन पर
भी मंदिर देवता आशीर्वाद
मन्नत मुराद नीरस नीरसता
पास भी नही जाना चाहिये।।

घटती सिमटती जिंदगी में
दान पुण्य पाप जन्म दिन
पर गर कर दिया रक्त दान
क्या फायदा बेवजह जन
कल्याण से खुद को बचाना
चाहिये।।
जोश जश्न से जन्म दिन मनाना
चाहिए।।

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश

सौरभ प्रभात

शीर्षक - *कृष्ण सुदामा मिलन*
विधा - *आल्हा छंद*


दीन सुदामा के चरणों में
बैठा देखो यूँ जगपाल।
पाँव पखारे निज अँसुवन से
बाल सखा का पूछे हाल।।1।।

नैन छिपाये उर की चिन्ता
होंठ सजाये इक मुस्कान।
प्रेम तड़ित से विचलित होकर
नीर बहायें रस की खान।।2।।

देख फटी वो पाँव बिवाई
कोमल मन करता चित्कार।
कैसा हूँ मैं मित्र अधम जो
संगी को न दिया आधार।।3।।

काँख छिपी फिर देखी गठरी
छीन लिये उसको करतार।
सूखे चावल खाते जाते
और लुटाते नेह अपार।।4।।

विप्र अचंभित सोच रहा है
कैसे कह दूँ अपना हाल?
बिन बोले पर घर भर डाला
ऐसा नटवर नागर ग्वाल।।5।।

✍🏻©️
सौरभ प्रभात 
मुजफ्फरपुर, बिहार

मधु शंखधर स्वतंत्र

मधु के मधुमय मुक्तक

🌹🌹 *गौहर*🌹🌹
-----------------------------

◆ गौहर सागर में छिपा , विरले सीपी साथ।
माला की शोभा बने, पहने दीनानाथ।
उज्ज्वल आभा देख कर, हर्षित ह्रदय अपार।
शांत चित्त पर्याय है, आए जब यह हाथ।।

◆ गौहर सौहर ने दिया, जड़ी अँगूठी बींच।
सुख सौन्दर्य बढ़ा करे , रखती प्रतिपल भींच।
चाहत में सबकी बसे, सच्ची हो पहचान,
प्राप्त इसे जो कर लिया, त्वरित इसे ले खींच।।

◆ गौहर संज्ञा श्रेष्ठ है, शुभग सदा पहचान।
रंक प्राप्ति इच्छा धरे, भूप लुटाए शान।
चमक विशेषण भी बने, ये विशेष्य के साथ,
धरते गौहर शान से, आभा का प्रतिमान।

◆ गौहर सम संज्ञा मिले, धारा वही विशेष।
माला में धारण करे, शोभा अनुपम भेष।
सदा मनुज की धीरता, गौहर का संदेश,
धैर्य सहज अरु शांत ही, भाव बसे अनिमेष।।
*मधु शंखधर स्वतंत्र*
*प्रयागराज*✒️
*31.05.2021*

नूतन लाल साहू

सफलता का सफर

सफलता का सफर
रास्ता है मुश्किल
यहां हर मोड़ पर
दुश्मन खड़ा है
स्वार्थों के अंधेरों ने
घेरा हुआ है
जीतता वही है
जो स्वयं से लड़ा है
जो अंतर्रात्मा की आवाज सुनता है
वहां से जो ज्ञान
निकल कर आता है
वही तो
भविष्य का रास्ता सुझाता है
सही मायने में
सफलता का सफर के लिए
एक दर्पण होता है
दृढ़ संकल्प के साथ
जो चलता है
और निरंतर आगे बढ़ते ही
रहता है
चाहे कितना ही,मारो उसे ठोकर
आत्मविश्वास और संयम ही
वक्त से लड़ने का
उनका हथियार होता है
जीतता वही है
जो स्वयं से लड़ा है
कल को किसने है,देखा
मेहनत से ही बदलेगी
भाग्य का सारा लेखा
सफलता का सफर में
पक्का संकल्प आवश्यक है
दुनिया तो है, इक बाजार
रास्ता खुद ही बनाना होगा
यही तो सफलता का सफर है

नूतन लाल साहू

जयप्रकाश चौहान अजनबी

*विश्व तम्बाकू निषेध दिवस पर स्वरचित गीत*

*शीर्षक:- बीड़ी -सिगरेट पीना नही*

 मैं कभी ये नहीं कहता कि तुम शौक मत करना।
पर घी दूध छोड़ तम्बाकू का भोग मत करना।


बीड़ी -सिगरेट ,बीड़ी -सिगरेट पीना नहीं।
घी -दूध को छोड़कर घी- दूध को छोड़कर ।

पल-पल बीड़ी तेरा गला जलाएगी। 
सिगरेट तेरे गले में छालो को बुलाएगी।
जब बीड़ी पिएगा तेरा फेफड़ा गलाएगी ।
इस सुडौल काया को  जर्जर कर जाएगी।

 बीड़ी -सिगरेट बीड़ी -सिगरेट......

तुमने बीड़ी को पिया उसका स्वाद लिया।
तूने पगले जान के रोग को न्योता दिया ।
अब बन गया आदि तूने यह नया रोग लिया ।
तब ना सोचा ना समझा यह कैसा भोग किया।

 बीड़ी -सिगरेट बीड़ी -सिगरेट......

अब तुझको यह बीड़ी की आदत तड़फाएगी।
ना पिएगा तो तुझे चैन से नींद ना आएगी ।
अगर तुम सिगरेट छोड़ना भी चाहोगे ।
तो तुम जानकर भी ना छोड़ पाओगे ।

बीड़ी -सिगरेट बीड़ी -सिगरेट...... 

अब सुन ले मेरे यारा तू वादा निभाना ।
इस बीड़ी सिगरेट को तू कर दे बेगाना ।
तंबाकू को छोड़ अब अच्छा बन के दिखाना।
अजनबी कहे तब तुझे इज्जत देगा यह जमाना ।

बीड़ी- सिगरेट बीड़ी- सिगरेट पीना नहीं ।
घी -दूध को छोड़ के घी -दूध को छोडक़े।

 जयप्रकाश चौहान अजनबी
 जिंदोली,अलवर(राजस्थान)

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

*दोहे*(पहचान)
अपनी ही पहचान का,होता सरल न ज्ञान।
लिया समझ जो स्वयं को,समझो वही महान।।

मिलती कभी न पूर्णता,भले कहें हम पूर्ण।
ऐ मूरख इंसान सुन,अंत होय मद चूर्ण।।

साधु-संत,ऋषि-मुनि कहें,खुद की निजता जान।
अपने ही गुण-दोष की,करो उचित पहचान।।

रहो भले या मत रहो, जग जाता है भूल।
याद करे जब बाँट दो,काँटा बदले फूल।।

यही पूर्ण पहचान है,यही सत्य-आधार।
मनुज-धर्म उपकार है,कर्म बाँटना प्यार।।

मद-घमंड से तो नहीं,मिले कभी पहचान।
जन-सेवा,उपकार से,हो प्रसिद्ध अनजान।।

मातृ-भूमि-हित प्राण दे,होता अमर जवान।
अन्न-फूल-फल दे कृषक,पाए नित सम्मान।।
           ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
                9919446372

रामबाबू शर्मा राजस्थानी

          नशा नाश की जड़ है
                        ~~~
          विश्व तंबाकू निषेध दिवस पर,
          जनमानस को समझाता हूँ।
          नशा नाश की जड़ है भैया,
          अवगुण इसके बतलाता हूँ।।

          दोस्त मित्र चुटकी भर देते,
          फिर हम ही आदी बन जाते।
          धीरे-धीरे परवान चढ़े,
          नहीं मिले,कुछ भी कर आते।।

          पावन पवित्र शरीर हमारा,
          गाल गलाये गुटखा खाकर।
          दाँतों की मनभावन शोभा,
          हर कोई बतलाये आकर।।

          बीड़ी,सिगरेट जान लेवा,
          धुआं उडाते है सम्मान से।
          कितना भी समझालो उनकों,
          डरते नहीं है अपमान से।।

          खाँस-खाँस कर शोर मचाते,
          घर वाले होते परेशान।
          दुष्परिणाम की जब बात करो,
          बन जाते है वो ज्ञानवान।।

          छोटे-बड़े युवा किशोर सब,
          मिलकर जब जर्दा मसलते है।
          बार-बार,थप-थप से अपनी,
          बहुत बड़ी शान समझते है।।

          समय रहते नहीं सुधरे तो,
          कोरोना से जुड़ जाओगे।
          कई बिमारियों से एक साथ,
          फिर कैसे तुम बच पाओगे।।

          पान मसाला गुटका खाकर,
         इतराते रहते इधर-उधर।
         कर जोड़ नम्र निवेदन मेरा,
         लत छोड़ नशे की,अब सुधर।।

        ©®
           रामबाबू शर्मा,राजस्थानी,दौसा(राज.)

सुधीर श्रीवास्तव

हाइकु
********
नशे की लत
खोखला कर देती,
चेत जा जरा।
++++++++
नशा मुक्त का
प्रण कर लो तो,
जीवन हर्ष।
++++++++
नशे के साथ
जीवन का हो नाश,
बचना होगा।
+++++++++
घाव नशे का
बहुत रूलाता है,
संयम रख।
+++++++++
नशीला जहां
मौत का कुँआ जैसा,
बचना होगा।
+++++++++
बच लो यारों
नशे के जहर से,
बड़ा सूकून।
++++++++
नशा कुँआ है
हमारी मौत पक्की,
बच लो भाई।
+++++++++
★सुधीर श्रीवास्तव
      गोण्डा(उ.प्र.)
    8115285921

एस के कपूर श्री हंस - काव्य रंगोली आज का सम्मानित कलमकार

काव्य रंगोली आज का सम्मानित कलमकार

कवि- परिचय
(साहित्यिक/समाजिक/सेवाकाल)
*1* नाम:एस के कपूर"श्री हंस"
*2*. पिता का नाम :स्व0 बृज लाल कपूर जी
*3* माता का नाम :स्व0 सावित्री देवी कपूर जी
*4*.पति का नाम (विवाहिता हेतु):,,,,,,
*5* जन्म तिथि:07 जून 1950
*6* जन्म स्थान: नई दिल्ली
7.वर्तमान स्थायी पता: 06,पुष्कर एनक्लेव,टेलीफोन टॉवर के सामने
स्टेडियम रोड,बरेली ,उत्तर प्रदेश पिन
243005
*8*. शिक्षा : एम एस सी (रसायन शास्त्र)
सी ए आई आई बी (भाग 1)
*9* लेखन की विधाएँ: गद्य(आलेख,निबंध, संस्मरण, समाचार पत्र सूचना आदि)
पद्य(मुक्तक, मुक्तक माला,हाइकु,छंद मुक्त(तुंकान्त व अतुकांत), कुंडलियां,मनहरण छंद(8 8 8 7) आदि) ग़ज़ल अभी लगभग 100 (विशेष। लगभग 10000 मुक्तकों की रचना अब तक)
*10*. कृतित्व:
*(क)* प्रकाशित ग्रंथ ई पत्रिका (हारेगा कॅरोना) लोकार्पण दिनाँक 20।06।2020
*(ख)* अप्रकाशित ग्रंथ ई पत्रिका( व्यक्तित्व विकास पर केंद्रित)
*(ग)* संपादन सलेक्टेड न्यूज़ समाचार पत्र,बरेली(मई 2014 से मई 2016)
पीलीभीत मिड टाउन जेसीज व अवध जेसीज की स्मारिकाओं का संपादन।
*(घ)* पत्र पत्रिका में प्रकाशन,,,,आई नेक्स्ट(144 लेख प्रकाशित) ,कलीग,हम दोस्त।संवाद।सेकंड इनिंग्स, परफेक्ट जरनीलिस्ट,हेल्थ वाणी,गीत प्रिया, प्रेरणा अंशु,रोहिलखण्ड किरण।काव्या मृत।काव्य स्पंदन।
काव्य रंगोली।काव्य धारा।स्वर्ण धारा।
इंकलाब व अनेकानेक विश्व जन चेतना ट्रस्ट ,साहित्य संगम संस्थान दिल्ली व अन्य ई पत्रिकाओं में रचनायों व लेखों का प्रकाशन।
विभिन्न संस्थाओं के ब्लॉग।।पोर्टल।।वेबसाइट।।यू ट्यूब।।टी वी चैनल।। गूगल पेज।। आदि पर रचनाओं।।लेखों का प्रकाशन व वीडियो अपलोडिंग।
*11* सम्मान ,पुरस्कार व अलंकरण।
लगभग 600 से अधिक , भौतिक व डिजिटल प्रमाण पत्र प्राप्त।पुरुस्कार।ट्रॉफी।मैडल विभिन्न साहित्यिक व सामाजिक संस्थाओं द्वारा प्रदत्त।
*12*. अन्य उपलब्धियां: 
दूरदर्शन, आकाशवाणी, बरेली, रामपुर से प्रसारण।
ऑन लाइन कवि मंचों का संचालन आदि। बरेली में अनेक कवि गोष्ठीयों का संचालन।
उत्तर प्रदेश बुक ऑफ रिकॉर्डस में नाम दर्ज।ट्रॉफी प्रमाण पत्र प्राप्त।
संस्थापक अध्यक्ष।पीलीभीत मिड टाऊन जेसीस।वर्ष1986।
1988 वर्ष। उत्तर प्रदेश राज्य जेसीस उपाध्यक्ष।
1990। उ प राज्य जेसीस प्रशिक्षक।
संस्थापक अध्यक्ष
सेवा निर्वत एस बी आई अधिकारी सामाजिक क्लब।बरेली।2016 से 2018(वर्तमान में सरंक्षक पद पर आसीन)
जिलाध्यक्ष।भारतीय हिंदी सेवा पंचायत।बरेली।2020 से 2023।
वरिष्ठ उपाध्यक्ष।संस्कार भारती।बरेली
उपाध्यक्ष।सक्षम संस्था।बरेली
संयुक्त सचिव।मानव सेवा क्लब। बरेली
पूर्व सचिव।वरिष्ठ नागरिक कल्याण समिति।बरेली
कई अन्य साहित्यिक संस्थाओं में पदाधिकारी।
21 अगस्त 2020 को बरेली वरिष्ठ नागरिक सामाजिक क्लब।बरेली की स्थापना।
03 सितंबर को विश्व जन चेतना ट्रस्ट
भारत के जय जय हिंदी बरेली मंडल
प्रखंड की स्थापना तथा बरेली जिले व
मंडल के अध्यक्ष के रूप में मनोनयन।
लगभग 24 व्हाट्सएप ग्रुप के समूह नियंत्रक।
जिला विज्ञान क्लब बरेली के नियमित 
निर्णायक मंडल के सदस्य।
2019 में अन्य बैंक सामाजिक क्लब की स्थापना बरेली में सहयोग प्रदत।
सेवा काल में राजभाषा प्रतियोगिता में
30 से अधिक पुरुस्कार प्राप्त।
*12(अ)* विशेष अभिरुचि। बचे हुए अथवा बेकार सामान से विभिन्न प्रकार के हैंडिक्राफ्ट बनाना।
क्विज़। सभी प्रकार की क्विज स्वयं बनाना व
क्विज का संचालन/आयोजन करना।
*13*. संप्रति: सेवा निर्वत प्रबंधक।भारतीय स्टेट बैंक।बरेली।वर्ष 2010..........
चीफ आफ इंटरव्यू बोर्ड। महेंद्रा बैंक कोचिंग।बरेली।वर्ष 2011 से 2017 तक।
*14*. मोबाइल संख्या: 9897071046
8218685464
*15* . व्हाट्सप्प संख्या : 9897071046
*16*. ई मेल : kapoorsk32@gmail.com
Skkapoor5067@ gmail.com

।।हर दिन इक़ नया संग्राम
है जिन्दगी।।
।।विधा।।मुक्तक।।
1
बस सुखों का  ही आराम
नहीं है जिंदगी।
दुःखों का ना नामोनिशान
नहीं है जिंदगी।।
संघर्षों का   दाम वसूलती
भी ये जिंदगी है।
गमों पर     लगा    विराम
नहीं है जिंदगी।।
2
ऐशो आराम का तामझाम
नहीं है  जिंदगी।
खाली खुशियों का पैगाम
नहीं है जिंदगी।।
कभी   खुशी   कभी  गम
का ही नाम यह।
कोशिशों का   ही  मुकाम
है यह   जिंदगी।।
3
हर सुख का    मिला जाम
नहीं है जिंदगी।
बस    यूँ    ही      गुमनाम 
नहीं है जिंदगी।।
संघर्ष की   आग   पर  तप
कर बनता है सोना।
बसअपने स्वार्थ से ही काम
नहीं है जिंदगी।।
4
सुख दुःख का छाया   घाम
है यह    जिंदगी।
हर दिन इक़   नया   संग्राम
है यह   जिंदगी।।
अपने लिए   नहीं   दूजों के
लिये भी जीना यहाँ।
सरोकारों का     चारों  धाम
है  यह   जिंदगी।।

रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"
बरेली।।।।
मोब।।।।।      9897071046
                    8218685464

।।हमारे बुजुर्ग।।दुआओं की
सौगात है, बुजुर्गों के पास।।
।।विधा।।मुक्तक।।
1
क्षमा दुआ अनुभव और  आस,
है बुजुर्गों    के  पास।
बहुत ही  जिम्मेदारी  अहसास,
है बुजुर्गों   के  पास।।
छोटे बड़ों का ध्यान   और करें, 
घर की रखवाली  भी।
संस्कृति,  संस्कारों  का वास है,
बुजुर्गों        के  पास।।
2
बहुत  दुनिया    देखी   बड़ों  ने,
उनसे  ज्ञान    लीजिये।
उन्होंने  किया    लालन  पालन,
उन पर   ध्यान  दीजिए।।
उनके मान सम्मानआशीर्वाद से,   
संवरताआपका भी भाग्य।
आ जाता  कुछ  चाल   में  अंतर, 
नही   अपमान   कीजिये।।
3
हर किसी  के लिए खूब जज़्बात,
हैं   बुजुर्गों    के  पास।
अनुभवों की   इक लंबी    बारात, 
हैं बुजुर्गों     के   पास।।
दिल है   दिमाग है     हर  बात है,
पास    बुजुर्गों      के।
दुआओं ही दुआओं की   सौगात,
है    बुजुर्गों  के   पास।।
4
पैसे की   तो      बहुत    कदर  है,  
बुजुर्गों     के    पास।
बहुत ही ज्यादा   पारखी नज़र है,
बुजुर्गों    के     पास।।
रखते  तजुर्बा हर मौसम  बरसात,
का    बुजुर्ग     हमारे।
एक पूरी   जिन्दगी  का   सफर है,
बुजुर्गों    के     पास।।

रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"
बरेली।।
मोब।।            9897071046
                     8218685464


*।।समाज,राष्ट्र का सजग*
*सतर्क प्रहरी,पत्रकार।।*
*।।विधा।।मुक्तक।।*
1
कभी मीठा तो कभी
चीत्कार लिखता है।
कभी विपक्ष  कभी
सरकार लिखता है।।
कलम का  सिपाही
रुकता नहीं   कभी।
हर बात   वह    तो
बार बार लिखता है।।
2
कभी आरपार कभी
कारोबार लिखता है।
कभी विसंगति और 
प्रचार लिखता    है।।
समाज राष्ट्र  के  हर
बिंदु को छूती कलम।
हर विषय की    वह
भरमार   लिखता है।।
3
कभी ओज तो कभी
श्रृंगार     लिखता है।
कभी खिजा   कभी
बहार     लिखता है।।
खुशी गम के     हर
पहलू को  छूता  वो।
कभी जीत तो कभी
हार    लिखता     है।।
4
कभी व्यंग तो कभी
सरोकार लिखता है।
कभी शांति    कभी
अंगार लिखता   है।।
छू जाती है  कलम
दिल को       कभी।
जब भावनाओं का
संसार  लिखता  है।।
5
सब पढ़ते हैं कि वो
जोरदार लिखता है।
कभी दबके या बन
सरदार लिखता  है।।
हर हालात  को  वो
लिखता समझ कर।
सब कोई और नहीं
पत्रकार लिखता है।।
*रचयिता।। एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।।।।*
मोब।।।         9897071046
                    8218685464


4- *।।ग़ज़ल।। संख्या  107 ।।*
*।।काफ़िया।। मक/नक।।*
*।।रदीफ़।। दवा बन जाये।।*
1
ऐसा हो  जख्म की नमक दवा बन जाये।
ऐसा हो आँखों की चमक दवा बन जाये।।
2
जख्म दिल के भर जायें बस मीठे बोल से।
बस दर्द की धमक ही कोई दवा बन जाये।।
3
बात पीछे छूट जाये   दिमागी तनाव की।
जिन्दगी की जनून ए रमक दवा बन जाये।।
4
सोच बनेआदमी के दिल की इतनी अच्छी।
चेहरे का तेजओ दमक ही दवा बन जाये।।
5
हंस कुछ ऐसा हो कि बेमेल भी मेल ही लगे।
हार जीत की  सनक भी दवा बन जाये।।

*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।।।।*
मोब।।।।।   9897071046
                 8218685464


5- ।।रचना शीर्षक।।*
*।। पहले बिखर कर ही आदमी*
*फिर निखर कर आता है।।*
*।।विधा।।मुक्तक।।*
1
आशा का   दीप  सदा
जलाये रखना।
प्रभु में     आस्था सदा
बनाये रखना।।
कभी   मंद      ना पड़े
उम्मीद की लौ।
काम में    लगन   सदा
लगाये रखना।।
2
कभी      संवेदना   का
साथ   छूटे ना।
विश्वास का      कदापि
हाथ    छूटे ना।।
अधीरता        हो    पर
जमीर जिंदा रहे।
तरकश  से     अनुचित
वाण छूटे ना।।
3
नैतिकता   की   लकीर
मिटने ना पाये।
दिल से दूसरों   की पीर
मिटने ना पाये।।
संघर्ष रहे  और    शक्ति
रहे  लड़ने  की।
दुखों में  भी     कर्मवीर
मिटने ना  पाये।।
4
कठिन परिश्रम    ही  तो
आत्मबल लाता है।
तपिश में तपकर  व्यक्ति
सोना बन पाता है।।
उत्साह उमंग   जीवन में
मंद ना हो     कभी।
बिखर कर  ही    आदमी
निखर कर आता है।।

*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।।।।*
मोब।।।।।।    9897071046
                    8218685464

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

खतरे में लोकतंत्र का चौथ स्तम्भ

लोकतंत्र की ख़ास खासियत   जन जन तक 
जन जन का संवाद 
अभिव्यक्ति की आजादी
सूचना का अधिकार।।
न्याय पालिका, कार्यपालिका,
विधायिका लोकतंत्र महिमा
महत्व सार।।                      

चौथा संवाद
संचार का माध्यम मिडिया
का संसार।।
गांधी जी के तीन बन्दर आज
प्रसंगिग उल्टा दिखता मिडिया
सच नहीं देखता सच
नहीं दिखाता सच का कर देता
है त्याग।।                             

सच बोलने की हिम्मत
गर दिखलाता बतलाता कोईं
सच सिद्धान्त पर हो जाता
बलिदान।।

मिडिया के रूप अनेको प्रिंट मिडिया इलेक्ट्रानिक मिडिया सोशल मिडिया ना जाने कितने
अवतार।।

पीत पत्रकारिता टी आर पी
वायरल का कारोबार।।

सच को झूठ ,झूठ को सच का
खेल बनगया तमाशा लोकतंत्र
का चौथा अलम्बरदार।।

जन जन में अब अवधारणा
कौन सुनाएगा सच आज 
कोई बिक जाता है कोई बिकने
का करता इंतज़ार।।

ये कुछ सचाई है मगर आज भी
संजीदा संवेदनशील है लोक
तंत्र का चौथा स्तम्भ की धार।।

कितनो ने जान गवाई सच्चाई का
छोड़ा नहीं कभी भी साथ
सच के साथ खड़ा मौलिक
मूल्यों का लोक तंत्र का मजबूत
चौथा स्तम्भ मिडिया संवेदनशील बाज़।।                            

मिडिया लोकतंत्र का अतिमहत्वपूर्ण लोकतंत्र का आधार।।

मिडिया चाहे जो रातो रात
बाना दे किसी को महान
चाहे तो नैतिकता के गांधी
और महात्मा को भी कर दे शर्मशार।।

लोक तंत्र में मिडिया अहम
कलाकार किरदार।।

गर शासन प्रशासन को
रखना है संवेदन शील 
जन जन का हो कल्याण
जन जन को अधिकारों का
हो ज्ञान मिडिया स्वतंत्र निष्पक्ष
निडर निर्भीक लोक तंत्र अभिमान।।

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल

हिन्दी पत्रकारिता दिवस की हार्दिक शुभाकमनएं और बधाई।

हिन्दी शिक्षा है  आधार तुम्हारा
कलम  बना  है  हथियार प्यारा,
कांटो    में    राह    बनाते    हो
तुम   सच्चाई    दिखलाते   हो।

निर्भय निश्छल हो पथ पर चलकर
सामाजिक दर्दों को सामने लाते हो
कितने उलहनाओं को  सुन सहकर
संवेदनाओं को नई दिशा दे जाते हो।

कैसा  भी  हो   संकट   सारा
राष्ट्र  समर्पण   भाव   तुम्हारा
लोकतंत्र  के  चौथेस्तम्भ  की
भूमिका का है कर्तव्य तुम्हारा।

बिना  डरे  कर्म पथ  पर  चल पड़े
कलम का प्रभाव लिए निकल पड़े
दृढ़  निश्चय   संकल्प   बिना   भय 
भाषा की मर्यादा में खड़े रहे अड़े।

कभी दर्द बन कभी अश्रु बन
अन्याय  नहीं   सह  पाते  हो
थाम लेखनी निकल पड़े जब
उन्नत वेग  से  बढ़ते  जाते हो।

हिन्दी शिक्षा है  आधार तुम्हारा
कलम  बना  है  हथियार प्यारा,
कांटो    में    राह    बनाते    हो
तुम   सच्चाई    दिखलाते   हो।
     
        - दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल

आशुकवि रमेश कुमार द्विवेदी चंचल

पावनमंच को प्रणाम ,आज का विषय ...धूम्रपान ,रचनाओं का अवलोकन करें....                                 पान तौ नीकु लगै कतना वतना हमते नहि लिखि पढि़ जाई।।                           पान चढा़ देवी देव सदा नित होय नही बिनु याके पुजाई।।                                  पान बतावतु है मुखभूषन  शोभा कहाँ बिनु या पहुनाई।।                                  भाखत चंचल नाशु भयो जबु आय मिली यहु धूम्र बुराई।।   1।।                     पान विभूषित है रंगरूप जो आदरू औ सम्मान बढा़वै।।                                       आवैं जौ द्वारे कोऊ मेहमानु  तौ स्वागतु मा जलपानहिं धावै।।                             मुल आवै शुरूर जबै मनमा  जबु पान संगै मदपानहिं आवै।।                           भाखत चंचल होवै बहूत जौ नाली गिरैं  अरू शीश झुकावैं।।2।।                         पूत औ  पतनी दुआरे लखैं अरू स्वामी खडे़ मधुशाला रखावैं ।।                        खाता जौ बैंकु कय खाली परै  तौ खेते मकान कय नम्बर लावैं ।।                         कछू दिनु पीवै मधुपमहारानी बादि मँहय वै वनका पी जावैं ।।                       भाखत चंचल काव कही बिनु भोजनु नारि अपर घर धावैं ।।3।।                         आशुकवि रमेश कुमार द्विवेदी, चंचल।ओमनगर

मधु शंखधर स्वतंत्र

*सुप्रभातम्... जय श्री राम..*🙏🚩
*मधु के मधुमय मुक्तक*
🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷
🌹🌹 *अख्यायिका*🌹🌹
-----------------------------------
◆ दिखलाती  अख्यायिका, जीवन के सब खेल।
जमींदार की धारणा, दीन हीन का मेल।
सभी बिन्दु की बात हो, अभिव्यक्ति हो मूल,
रुचि आधारित जब पढ़े, मन की दौड़े रेल ।।

◆ मुंशी जी अख्यायिका , रही कृषक ही नाम।
दो बैलों की बात पर, ईदगाह की शाम।
सभी लोकप्रिय हैं यहाँ, पढ़ते देकर ध्यान।
शिक्षाप्रद होती सदा, सद् चरित्र शुभ काम।।

◆ एक लिखो अख्यायिका ,जिसका जीवन नाम।
बच्चों को भाए सतत, पढ़े सुबह से शाम।
पाएँ जीवन सत्य वो, समझें निज उद्देश्य,
यही भावना हो सुखद, लेखक का सुख धाम।।

◆ भाव भरी अख्यायिका, देती है संदेश।
सदा सहेजो संस्कृति, जैसे सुंदर केश।
सुंदर भावों से सजी, रामायण में बात।
अमर बाल्मीकि कर गए, अवध और अवधेश।।
*मधु शंखधर स्वतंत्र*
*प्रयागराज*✒️
*30.05.2021*

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

शीर्षक-- लब्ज़ों की हकीकत

लब्जों का दिल से रिश्ता
लब्ज़ दिल गहराई जज्बात है।।
लब्ज़ दिल परछाई चेहरा
लब्जों से बनते विगड़ते जिंदगी का
राज है।।                                       

ये लब्ज़ आईने है इंसानी हद हस्ती
लब्ज दिल की सच्चाई बया हाल है।।
लब्ज़ इंसानी हद हकीकत दासता वास्ता ये लब्ज़ आईने है इंसान इंसानियत पहचान है।।
लब्ज़ दिल जज्बे का तूफ़ान
दोस्त दुश्मन की शान आन
ये लब्ज़ आईने है आबरू बेआबरू बताते बनाते है।।
लब्ज़ विखरे दिल को भी 
जोड़ मोहब्बत के दामन
समेटता ये लब्ज़ आईंने है
दिल आईने का सेहरे है।।
लब्ज़ों से सजते जंग के मैदान
दोस्त दुश्मन ,दुश्मन दोस्त अंदाज़
मोहब्बत महफिलो कि रौशनी है।।
ये लब्ज़ आइने है जिंदगी की
चाहत की राह दिखाते इश्क इबादत की ईमान है।।
असली नकली का फर्क 
लब्ज़ों की दुनियां का यक़ी
सच ये लब्ज़ आईने है आवाज़
दिल मे उतरते है।।
लब्ज़ों की दुनियां ही दिन
ईमान कुदरत की शान
ये लब्ज़ आईने है दिख
जाता जिसमें दुनियां जहाँ है।।

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश

रामकेश एम यादव

दौलत के भूखे!

अवसर तलाशती ये कैसी दुनिया,
सांसों को चुराये,ये कैसी दुनिया।
दौलत  के   भूखे  दरिंदे  यहाँ  पे,
ऐसे मक्कारों से सजी है दुनिया।

सोती फांकों की चिता, कुछ दुनिया,
दो पाटों के बीच ये पिस रही दुनिया।
खुलेआम बिकती औरतों की अस्मत,
सूली रोज चढ़ती-उतरती वो दुनिया।

ऐसी दुनिया में जीकर क्या करेंगे,
ऐसी दुनिया में रहकर क्या करेंगे?
पल -पल जो बेचे अपने ईमान को,
बदसूरत दुनिया लेके क्या करेंगे?

एक खिलौने के जैसे बना आदमी,
ऊपर से केवल है ये सजा आदमी।
जिन्दा नजर जैसे ये आता नहीं,
बिना सांस के ये चल रहा आदमी।

इंसानियत का मतलब कुछ भी नहीं,
पैसे के अलावा और कुछ भी नहीं।
मुट्ठीभर लोगों के हाँथों में क़ैद,
हम सबका मुकद्दर और कुछ नहीं।

दो गज जमीं, दो गज कफन तक नहीं,
बे-कंधे की लाशें दफ़न तक नहीं।
तैरनी लगी कितनी बदनसीब लाशें,
उन लाशों के मुख तक अगन तक नहीं।

हरिश्चंद्र राजा न ईमान से डिगे,
सिंहासन छोड़ राम वन को गए।
हो क्या गया आजकल के इंशा को,
जिसके लिए भगत सिंह फांसी चढ़े।

रामकेश एम.यादव(कवि,साहित्यकार),मुंबई

डॉ.रामकुमार चतुर्वेदी

*राम बाण🏹 सांस रोती रही*
     आज के इस दौर में मुश्किल नहीं हैं काम।
         आदमी बिकने लगे बिकने लगे हैं नाम।

              बोल गूंगो के यहाँ अंधे दिखायें राह।
             दौड़ लँगड़ों के यहाँ,लूले बढ़ायें चाह।
     दोष नजरों का उन्हें दिन को दिखायें शाम।

          द्वंद है इस बात का खुद‌के सतायें लोग।
         कुछ हवाओं साथ थे जिसने बढ़ाये रोग।
          आदमी को तौलते हैं कौड़ियों के दाम।।

            देखता आकाश धरती में हुआ हैं शोर।
              दूर क्यों अपने हुए बेचैन क्यों हैं भोर।
             सांस क्यों रोती रहीं कैसे हवा के नाम।।

                राजसी अंदाज में चलने लगे हैं बोल।
            राज की क्या बात है जो पीटते हैं ढोल।
                 रंग भी बदले हुए जपने लगे हैं राम।।

                  पेड़ ये खामोश हैं पत्ते यहाँ हैं मौन।
            ‌ भूलती सड़कें यहाँ जाने कहाँ हैं कौन।
         बात अनशन की करें सड़कें लगायें जाम।।

          साख की इस धुंध में बदली हुई हैं छाँव।
            याद फिर आने लगे अमराइयों के गाँव।
         धूप का सौदा हुआ बिकने लगी हैं शाम।।

       दिन न बदला है न बदली है यहाँ पर रात।
          पर‌ बदल जाते यहाँ इंसानियत जज्बात।
            मौत के इस खेल में कैसे हुये बदनाम।।
‌ *डॉ.रामकुमार चतुर्वेदी*

कुमकुम सिंह

शीर्षक-   मुस्कुराहट      
    
   दे सकते हो तो दे दो ,
           किसी को मुस्कुराहट उधार।
 कभी ना उससे वापस मांगना ,
             फिर से मेरे यार ।
मुस्कुराने की वजह बन जाओ ,
            बस यही फलसफा याद रखो
 मेरे दिलदार ।
अगर किसी को कुछ देना है तो ,
        थोड़ी सी खुशियां दे दो ।
गम तो मिल जाते हैं,
        हर मोड़ पे बिन मांगे हजार।
 इसलिए हो सके तो दे दो ,
        खुशियां एक दूसरे को उधार।
 जिस से बनी रहे ,
          खुशियां बेशुमार।

           कुमकुम सिंह

जयश्री श्रीवास्तव

प्रतियोगिता के लिए
अलमारी मे रखे पुराने खत
अलमारी में रखे पुराने खतों ने सोई स्म्रतियों को जगा दिया
बीते हुए सुनहरे  पलो को दुहरा दिया
भूल कर सब काम पढ़ने बैठ गयी
अतीत की गलियों में गुम हो
गयी
कॉलेज में उनसे मुलाकात हुई थी
दिल मे प्यार की शमा जली थी
साथ जीने मरने की कसमें खाई थी
अपने अपने मन की बात ये खतों द्वारा पहुँचायी थी
बहुत कुछ कहना चाहते थे
सामने होने पर चाह कर भी होठ न हिलते थे
डाकिए का रोज करते थे  इंतज़ार
दूर से उसे आता देख लगता मानो आ गया मेरा प्यार
खत ले दौड़ पड़ते थे
छत के किसी कोने में बैठ पढ़ते थे
फिर सहेज अलमारी में धरते थे
गुलाब की पंखुड़ियां उनमें रखते थे
खुश्बू से प्रिय के पास होने का अहसास करते थे
भाग्यशाली थे पाया उसे जिसे करते थे प्यार
प्रभु ने मुझे दिया मनचाहा उपहार
वो फ़ौज में रह देश सेवा करते थे
हमारी मनोभाव ये खत व्यक्त करते थे
तब नही फोन हुआ करता था
सुख दुख की खबर ख़त ही दिया करते थे
आखिरी खत हाथ रह गया था
यही मुझे ज़िन्दगी भर का दर्द दे गया था
आऊँगा अपनी परी को देखने
पर आने से पहले कर्तव्य का खत उन्हें मिला
छुट्टी रद्द हुई सीमा पर जाने का आदेश मिला
मैं राह तकती रही बेटी को लिए
बिन बेटी को देखे वो शहीद हुए
बार बार इन्हें पढ़ती हूँ चूमती हूँ
अपनी अनमोल धरोहर को सहेज अलमारी में बंद रखती हूँ
जब जब अलमारी खोलती हूँ
खतों से यादो की महक आती है 
जो हँसाती, गुदगुदाती रुलाती है
यही तो धन दौलत से बड़ी मेरे जीवन की थाती है

स्वरचित
जयश्री श्रीवास्तव
जया मोहन
प्रयागराज

एस के कपूर श्री हंस

*।।पत्रकारिता दिवस*
*30 मई पर।।*
*।।समाज,राष्ट्र का सजग*
*सतर्क प्रहरी,पत्रकार।।*
*।।विधा।।मुक्तक।।*
1
कभी मीठा तो कभी
चीत्कार लिखता है।
कभी विपक्ष  कभी
सरकार लिखता है।।
कलम का  सिपाही
रुकता नहीं   कभी।
हर बात   वह    तो
बार बार लिखता है।।
2
कभी आरपार कभी
कारोबार लिखता है।
कभी विसंगति और 
प्रचार लिखता    है।।
समाज राष्ट्र  के  हर
बिंदु को छूती कलम।
हर विषय की    वह
भरमार   लिखता है।।
3
कभी ओज तो कभी
श्रृंगार     लिखता है।
कभी खिजा   कभी
बहार     लिखता है।।
खुशी गम के     हर
पहलू को  छूता  वो।
कभी जीत तो कभी
हार    लिखता     है।।
4
कभी व्यंग तो कभी
सरोकार लिखता है।
कभी शांति    कभी
अंगार लिखता   है।।
छू जाती है  कलम
दिल को       कभी।
जब भावनाओं का
संसार  लिखता  है।।
5
सब पढ़ते हैं कि वो
जोरदार लिखता है।
कभी दबके या बन
सरदार लिखता  है।।
हर हालात  को  वो
लिखता समझ कर।
सब कोई और नहीं
पत्रकार लिखता है।।
*रचयिता।। एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।।।।*
मोब।।।         9897071046
                    8218685464

राजवीर सिंह तरंग

नमन मित्रो, 
पत्रकारिता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं, 
पत्रकारिता दिवस के अवसर पर एक मुक्तक 

बनाकर आईना सच को कि हम अखबार लिखते हैं, 
सफर में मुश्किलें लाखो मगर मझधार लिखते हैं। 
नहीं करते कभी समझौता हम अपने उसूलों से, 
अगर हो झूठ तो हम झूठ ही हर बार लिखते हैं। 

राजवीर सिंह 'तरंग'
बदायूँ।

निशा अतुल्य

आज हिन्दी पत्रकारिता दिवस की शुभकामनाएं व बधाई सभी पत्रकार बंधुओ को समर्पित 
30.5.2021

मैं एक विचार हूँ 
चलता फिरता व्यवहार हूँ 
समाज का हूँ आइना 
मैं पत्रकार हूँ ।
क़लम मेरी धारदार
लिखती बहुत कमाल
सत्य का दर्पण बने 
बस मेरी ये पुकार ।
क़लम कभी न मौन हो
चाहे छाया अंधकार हो
गुणगान करे किसी का ये
ऐसा न व्यापार हो ।
कुछ राग अपना गा रहे
पत्रकारिता लज्जा रहे
झूठ को बनाके सच
समाज को भरमा रहे ।
असत्य की खोज कर 
सत्य की तेज धार हो 
देश न कभी बंटे 
न आत्मा पे वार हो।
निडर गुणवान पत्रकार
धर्म अपना निभा 
पत्रकारिता है बड़ा स्तम्भ 
देश को सदा बता ।

स्वरचित
निशा"अतुल्य"


हाइकु 
5,7,5 वर्णिक विधा
30.5.3021

तू चला था क्या
साथ हमसफ़र 
या ख़्वाब टूटा ।

आसान राह
नहीं है कोई यहाँ
मुश्किल है तू ।

ओस की बूंद
कौन था रोया यहाँ 
अकेली रात ।

उदास रात
चाँद तारें है कहाँ
पूछे पहर ।

अंधेरी भोर
है बादलों का शोर
पँछी हैं कहाँ ।

कोटर सूना
घोंसला हुआ जूना
उड़ा परिंदा।

निःशब्द शोर
ये कैसी हुई भोर
नहीं है कोई ।

बीते ये रात
हो उजली सहर
प्रतीक्षा रत।

छोड़ दे अब
निराशा का आँचल
बीतेगी निशा ।

स्वरचित 
निशा"अतुल्य"

सुधीर श्रीवास्तव

वो बरसात की रात
***************
आज भी सिहर जाता हूँ
याद करके वो मनहूस बरसात,
जो मेरी परीक्षा लेते लेते
मेरी अबोध बच्ची को निगल गई।
शायद ईश्वर को यही मंजूर था
तभी तो बेतरतीब हवाऐं
टूटे फूटे छप्पर तक को उड़ा ले गई,
सिर छुपाने का इकलौता
आश्रय भी छीन ले गई।
घुप काली रात,
डरावनें बादलों की गड़गडाहट
रह रहकर कलेजे को चीरती 
चमकती बिजली
ऊपर से मूसलाधार वारिश 
उसमें भीगते हम पति पत्नी
और हमारी मासूम बच्ची,
हम तो कलेजा मजबूत किए
सहने को विवश थे मगर
हमारी बच्ची माँ के सीने से 
चिमटी की चिमटी रह गई
हमें रोता बिलखता छोड़ गई।
● सुधीर श्रीवास्तव
        गोण्डा, उ.प्र.
     8115285921
©मौलिक, स्वरचित

लखीमपुर खीरी : स्व0 आशुकवि नीरज अवस्थी जी की श्रद्धांजलि के उपलक्ष्य में आयोजित वर्चुअल नीरज स्मृति काव्योत्सव 2021 में देश प्रदेश के कलमकारों ने किया सिरकत मिला 106 कलमकारों को नीरज स्मृति साहित्य सम्मान पत्र।

लखीमपुर खीरी : स्व0 आशुकवि नीरज अवस्थी जी की श्रद्धांजलि के उपलक्ष्य में आयोजित वर्चुअल नीरज स्मृति काव्योत्सव 2021 में देश प्रदेश के कलमकारों ने किया सिरकत मिला 106 कलमकारों को नीरज स्मृति साहित्य सम्मान पत्र।

लखीमपुर खीरी । उत्तर प्रदेश खमारिया पंडित जनपद खीरी लखिमपुर हिंदी साहित्य एव अवधि साहित्य के जाने माने हस्ताक्षर नीरज अवस्थी जी का दिनांक 11/05/2021 को कोरोना के कारण स्वर्गवास होगया । नीरज अवस्थी जी की आकस्मिक मृत्यु की खबर आग की तरह फैल गयी जिसके कारण उनके पैतृक गांव खमारिया पंडित एव खीरी लखीमपुर, सीतापुर, पीलीभीत, शाहजहांपुर, बरेली , गोरखपुर, महराजगंज एवं आस-पास के जनपद और भारत के कई प्रदेशों के कवि लेखक साहित्य प्रेमियों के मध्य शोक की लहर दौड़ गयी स्वर्गीय नीरज अवस्थी जी द्वारा काव्य रंगोली साहित्यिक पटल श्याम सौभाग्य फाउंडेशन की स्थापना की गई थी जिसके माध्यम से उनको साहित्यिक सामाजिक गतिविधियों को संचालित करते थे । 

        फोटो: स्व0 आशुकवि नीरज अवस्थी जी

अल्प आयु एवं अल्पकाल में ही स्वर्गीय नीरज जी ने जनपद लखीमपुर खीरी और खमारिया पंडित का नाम देश विदेश में  रौशन किया। दिनांक 23/05/2021 को स्वर्गीय नीरज अवस्थी की श्रद्धांजलि के उपलक्ष्य में नीरज जी की अजेय कीर्ति काव्य रंगोली के माध्यम अंतरराष्ट्रीय काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमे देश -विदेश के कुल 106 साहित्यकारों कवियों ने हिस्सा लिया दिनांक 30/5/2021 को स्वर्गीय नीरज जी की श्रद्धांजलि के अवसर पर आयोजित काव्य प्रतियोगिता का सम्मान समारोह का आयोजन किया गया जिसमें नीरज स्मृति साहित्य सम्मान- 2021 सम्मान पत्र वितरित किया गया। स्वर्गीय नीरज जी की श्रद्धांजलि के उपलक्ष में आयोजित काव्य प्रतियोगिता दिनांक 23/5/2021 एव  दिनाक 30/05/2021 को श्रद्धांजलि सभा के प्रतिभागियों के सम्मान सम्मेलन के सार्थक सफल संचालन दायित्व की प्राभावी भूमिका दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल जी मधु शंखधर स्वतंत्र जी, डॉ इंदु झुनझुन वाला जी ने निभाया जिसमें सकारात्मक सशक्त सहयोग की भूमिका का निर्वहन शेषाद्री त्रिवेदी, नन्दलाल मणि त्रिपाठी पिताम्बर, अनिल गर्ग जी, मुन्नालाल मिश्र जी, शिवम् त्रिपाठी शिवम् जी ने प्रदान किया। 

इन अवसरों पर क्षेत्र के गणमान्य नागरिक मीडिया जगत के प्रमुख हस्तियों ने आभासी माध्यम से अपनी भावनाएं संवेदनाओं को व्यक्त किया। अन्त में आभार ज्ञापन रचना अवस्थी जी की धर्म पत्नी रचना अवस्थी जी ने इस भरोसे विश्वाश के साथ करते हुये अनुरोध किया कि उनके पति की विरासत उनके संकल्प निरंतर उद्देश्य पथ की तरफ अग्रसर होते रहेंगे।

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

नवाँ-2
   *नवाँ अध्याय*(श्रीकृष्णचरितबखान)-2
गाँठ चोटिका जब भे भंजित।
गिरनहिं लगे पुष्प जे गुंथित।।
     सुमुखी मातु जसोदा अंतहिं।
     निज कर गहीं लला भगवंतहिं।।
लगीं डराने अरु धमकाने।
डरपहिं किसुन न जाइ बखाने।।
     धनि-धनि भागि तोर हे माई।
     लखि तव भृकुटी डरैं कन्हाई।।
रोवहिं किसुन नियन अपराधी।
ब्रत टूटे जस रोवहिं साधी।।
      मलत अश्रु कज्जल भे आनन।
      अश्रु बहहि बरसै जस सावन।।
कान्हा कहहिं न डाँटउ माई।
अब नहिं मटुकी फोरब जाई।।
     सुनि अस बचनहिं किसुन बिधाता।
      सिंधु-नेह उमड़ा उर माता ।।
पुनि बिचार जसुमति-मन आवा।
बान्हि रखहुँ जे भाग न पावा।।
     रज्जु लेइ तुरतै तहँ बान्हा।
     जायँ न ताकि पराई कान्हा।।
जानहिं नहिं जनु प्रभु कै महिमा।
बाहर-भीतर नहिं कछु वहि मा।।
    प्रभु कै अंत न औरउ आदी।
     रहँ प्रभु पहिले रह जग बादी।।
बाहर-भीतर जगत क रूपा।
रहहिं प्रभू बस सतत अनूपा।।
     जे कछु इहवाँ परै लखाई।
     प्रभुहिं सबहिं मा जानउ भाई।।
इंद्री परे, अब्यक्त स्वरूपा।
अजित-अमिट अरु अलख-अनूपा।।
दोहा-किसुन अनंत बिराट अहँ,बिष्नु- रूप- अवतार।
        जे नहिं जानै भेद ई,मूरख कह संसार ।।
                    डॉ0हरि नाथ मिश्र
                     9919446372

एस के कपूर श्री हंस

*।।  प्रातःकाल   वंदन।।*
🎂🎂🎂🎂🎂🎂🎂
प्रणाम   स्नेह अभिव्यक्ति
आदर सुविचार हो।
प्रणाम    अभिवादन   का 
इक़   प्रसार      हो।।
प्रणाम हमारी      संस्कार
संस्कृति का है अंग।
*आज प्रातःकाल  प्रेषित*
*प्रणाम स्वीकार हो।।*
👌👌👌👌👌👌👌👌
*शुभ प्रभात।।।।।।।।।।।।।।।।।*
*।।।।।।।।।।।।।।  एस के कपूर*
👍👍👍👍👍👍👍👍




पत्रकारिता दिवस 30 मई के अवसर पर।।*
*।।पत्रकार से ही समाचार।।हाइकु।।*
1
पत्रकारिता 
आज की जरूरत
शुद्ध धारिता
2
पत्रकार है
कलम का सिपाही
वफादार है
3
है पत्रकार
शब्दों का जादूगर
विश्व आधार
4
ये समाचार
पत्रकार की देन
हर प्रकार
5
पत्रकारिता
कभी खुशी या गम
रोज़ भरता
6
पत्रकारिता
लिखे भविष्य का भी
दूरदर्शिता
7
ये पत्रकार 
लिखे यह सही ही
हो सरकार
8
ये पत्रकार
आज स्पष्टवादिता
है दरकार
9
ये पत्रकार
गलत सही चुन
बुरा नकार
10
पत्रकारिता
सकारात्मकता हो
तो सार्थकता
11
पत्रकारिता
यह है चौथा स्तंभ
लोकतंत्र का
12
ये पत्रकार
मीडिया का प्रभार
सुने पुकार
13
ये पत्रकार
ये संवाद संचार
आज आधार
14
ये पत्रकार
कलम तलवार
है ललकार
15
ये पत्रकार
कलम तलवार
है ललकार
16
ये पत्रकार
करे ख़बरदार
जवाबदार
17
पत्रकारिता
निष्पक्षवादिता
यही यथार्ता
*रचयिता।।एस के कपूर* " *श्री हंस* *"।।* *बरेली।।*
मोब  9897071046
        8218685464



*।।काफ़िया।। आरी।।*
*।।रदीफ़।। बहुत जरूरी है।।*
1
उसूल से करना वफादारी  बहुत जरूरी है।
हर बात में  सिलसिलेवारी बहुत जरूरी है।।
2
जिन्दगी तो  ऊपरवाले  की दी  नियामत है।
इसकी तो सही से  रखवारी बहुत जरूरी है।।
3
यह वक़्त बवा का   कोई जान जाया न जाये।
इस वक़्त सेहत की समझदारी बहुत जरूरी है।।
4
बाहर निकलना मतलब खुद जोखिम मोल लेना।
अभी कुछ दिन घर की चारदीवारी बहुत जरूरी है।।
5
दवा दुआ के साथ कोशिश करें अंदर टिकने की।
नहीं करे कोई बाहर  सवारी बहुत जरूरी है।।
6
दूर दूर रह  कर निभाने   हैं तुमको रिश्ते भी।
इस बात में तुम्हारी दिलदारी बहुत जरूरी है।।
7
*हंस* यह वक़्त खुद बचनेऔर परिवार बचाने का।
जान  लो कि तुम्हारी जवाबदारी बहुत जरूरी है।।
*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।।।।*
मोब।।।।।      9897071046
                    8218685464

विनय साग़र जायसवाल

ग़ज़ल---

मुहब्बत जहां से छुपाना है मुश्किल 
सभी को मगर यह बताना है मुश्किल

छुपा है बहुत कुछ निगाहों में उसकी
मगर उससे नज़रें मिलाना है मुश्किल 

ज़ुबां रूबरू काँप जाती है उसके
मुहब्बत को उस पर जताना है मुश्किल

हवाएं बहुत तेज़ हैं नफ़रतों की
चराग़-ए-मुहब्बत जलाना है मुश्किल

ख़िज़ाँओं के खे़मे हैं चारों तरफ़ ही
यहाँ फूल कलियाँ खिलाना है मुश्किल

किराये के घर में गुज़ारेंगे कब तक
नशेमन बहुत ही बनाना है मुश्किल

है मँहगाई हद से ज़ियादा ही *साग़र* 
ग़रीबी में घर का चलाना है मुश्किल

🖋️विनय साग़र जायसवाल ,बरेली
29/5/2021
रूबरू-समक्ष
ख़ेमे-डेरे
नशेमन-आवास

नूतन लाल साहू

अलमारी में रखें पुराने खत

वही रंग,वही ढंग
वही हाल,वही चाल
अलमारी में रखें पुराने खत
आ गया नया साल
खुशहाली को आफतों ने डस्सी
हास्य व्यंग की पीओ लस्सी
बीता बरस,बात हुई बासी
पूरी हो गई,बारहमासी
अलमारी में रखें पुराने खत
आ गया नया साल
वैसे तो हमें,कोई ख़ास
शुभकामना संदेश नहीं आया
पर दोस्तों को भेजते रहें
शुभ कामनाएं
आधुनिक युग,इक्कीसवीं सदी में भी
है लोग अंधविश्वासी
अलमारी में रखें पुराने खत
आ गया नया साल
ये हंसी भी चीज है करामाती
आती है तो आती है
नही आती है तो नही आती है
आप कोशिश करते रहिए
सबको हंसाने की
नही आयेगी, और
आयेगी तो,बिना बात के बात पर
आ जाएगी
अलमारी में रखें पुराने खत
बहुत ढूंढी,बहुत ढूंढी,नही मिली
पर अचानक,एकांत में
अपनी बत्तीसी खिली
क्योंकि खत लगी हाथ में
खुशहाली को आफतों ने डस्सी
हास्य व्यंग की पीओ लस्सी

नूतन लाल साहू

प्रो0 शरद नारायण खरे

काव्य रंगोली आज का सम्मानित कलमकार

(1)नाम----प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे
(2)जन्म- 25-09-1961
(3) शिक्षा-एम.ए(इतिहास)(मेरिट होल्डर),एल-     एल.बी,पी-एच.डी.(इतिहास) 
(4)व्यवसाय----शासकीय सेवा,  
प्राध्यापक व विभागाध्यक्ष इतिहास/प्रभारी प्राचार्य
कार्यालय----शासकीय जे.एम.सी.महिला महीविद्यालय,मंडला(म.प्र.)
(5)प्रकाशित रचनाएं व गतिविधियां --
*चार दशकों नें देश के पांच सौ से अधिक प्रकाशनों व विशेषांकों में दस हज़ार से अधिक रचनाएं प्रकाशित 
*गद्य- पद्य में कुल 20 कृतियां प्रकाशित (चुभन,हक़ीक़त,विवेचना के स्वर,अनुभूतियाँ,कसक आदि)
*प्रसारण-----रेडियो(38 बार),भोपाल दूरदर्शन (6बार),ज़ी-स्माइल,ज़ी टी.वी.,स्टार टी.वी., ई.टी.वी.,सब-टी.वी.,साधना चैनल से प्रसारण ।
*संपादन---9 कृतियों व 8 पत्रिकाओं/विशेषांकों का सम्पादन ।
*विशेष---सुपरिचित मंचीय हास्य- व्यंग्य कवि, संयोजक,संचालक,मोटीवेटर,शोध- निदेशक,विषय विशेषज्ञ,रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय जबलपुर के इतिहास विभाग के अध्ययन मंडल के तीसरी बार व शासकीय पी.जी.ओटोनॉमस कॉलेज, छिंदवाड़ा इतिहासअध्ययन मंडल के सदस्य ।   
एम.ए.इतिहास की पुस्तकों का लेखन
150 से अधिक कृतियों में प्राक्कथन/ भूमिका का लेखन ।
300 से अधिक कृतियों की समीक्षा का लेखन
राष्ट्रीय शोध संगोष्ठियों में160 से अधिक शोध पत्रों की प्रस्तुति
सम्मेलनों/ समारोहों में 350 से अधिक व्याख्यान 
300 से अधिक कवि सम्मेलन ।
475से अधिक कार्यक्रमों का संचालन ।
सम्मान/अलंकरण/ प्रशस्ति पत्र------देश के लगभग सभी राज्यों में 700 से अधिक सारस्वत सम्मान/ अवार्ड/ अभिनंदन ।सर्वप्रमुख अवार्ड--- म.प्र.साहित्य अकादमी का अखिल भारतीय माखनलाल चतुर्वेदी अवार्ड(51000/ रु)।
संपर्क/वर्तमान पता-आज़ाद वार्ड-चौक,मंडला,मप्र,
मो.9425484382
========================

(1)
प्रकाश का गीत
-----------------------
अँधियारे से लड़कर हमको,उजियारे को गढ़ना होगा !
डगर भरी हो काँटों से पर,आगे को नित बढ़ना होगा !!

           पीड़ा,ग़म है,व्यथा-वेदना,
             दर्द नित्य मुस्काता
            जो सच्चा है,जो अच्छा है,
             वह अब नित दुख पाता

किंचित भी ना शेष कलुषता,शुचिता को अब वरना होगा !
डगर भरी हो काँटों से पर,आगे को नित बढ़ना होगा !!

           झूठ,कपट,चालों का मौसम,
          अंतर्मन अकुलाता
          हुआ आज बेदर्द ज़माना,
            अश्रु नयन में आता

जीवन बने सुवासित सबका,पुष्प सा हमको खिलना होगा !
डगर भरी हो काँटों से पर,आगे को नित बढ़ना होगा !!

              कुछ तुम सुधरो,कुछ हम सुधरें,
               नव आगत मुस्काए
               सब विकार,दुर्गुण मिट जाएं,
             अपनापन छा जाए

औरों की पीड़ा हरने को,ख़ुद दीपक बन जलना होगा !
डगर भरी हो काँटों से पर,आगे को नित बढ़ना होगा !!
=============================

2- गीत
=======
गिर रही है रोज़ ही,क़ीमत यहाँ इंसान की
बढ़ रही है रोज़ ही,आफ़त यहाँ इंसान की

न सत्य है,न नीति है,
बस झूठ का बाज़ार है
न रीति है,न प्रीति है,
बस मौत का व्यापार है
श्मशान में भी लूट है,दुर्गति यहाँ इंसान की।
गिर रही है रोज़ ही,क़ीमत यहाँ इंसान की।।

बिक रहीं नकली दवाएँ,
ऑक्सीजन रो रही
इंसानियत कलपे यहाँ,
करुणा मनुज की सो रही
ज़िन्दगी दुख-दर्द में,शामत यहाँ इंसान की।
गिर रही है रोज़ ही,क़ीमत यहाँ इंसान की।।

हो रहे लाशों के ठेके,
मँहगा है अब तो कफ़न
चार काँधे भी नहीं हैं,
रिश्ते-नाते हैं दफ़न
साँस है व्यापार में पीड़ित यहाँ इंसान की।
गिर रही है रोज़ ही,क़ीमत यहाँ इंसान की।।

जोंक बन अब आदमी,
चूसता नित ख़ून है
भावनाएँ बिक रही हैं,
हर तरफ तो सून है
बच सकेगी कैसे अब,क़ीमत यहाँ इंसान की।
गिर रही है रोज़ ही क़ीमत यहाँ इंसान की।।
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      3-    समकालीन गीत
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रोदन करती आज दिशाएं,मौसम पर पहरे हैं !
अपनों ने जो सौंपे हैं वो,घाव बहुत गहरे हैं !!

बढ़ता जाता दर्द नित्य ही,
संतापों का मेला
कहने को है भीड़,हक़ीक़त,
में हर एक अकेला

रौनक तो अब शेष रही ना,बादल भी ठहरे हैं !
अपनों ने जो सौंपे वो,घाव बहुत गहरे हैं !!

मायूसी है,बढ़ी हताशा,
शुष्क हुआ हर मुखड़ा
जिसका भी खींचा नक़ाब,
वह क्रोधित होकर उखड़ा

ग़म,पीड़ा औ' व्यथा-वेदना के ध्वज नित फहरे हैं !
अपनों ने जो सौंपे हैं वो घाव बहुत गहरे हैं !!

व्यवस्थाओं ने हमको लूटा,
कौन सुने फरियाद
रोज़ाना हो रही खोखली,
ईमां की बुनियाद

कौन सुनेगा,किसे सुनाएं,यहां सभी बहरे हैं !
अपनों ने जो सौंपे है वो घाव बहुत गहरे हैं !!

बदल रहीं नित परिभाषाएं,
सबका नव चिंतन है
हर इक की है पृथक मान्यता,
पोषित हुआ पतन है

सूनापन है मातम दिखता,उड़े-उड़े चेहरे हैं !
अपनों ने जो सौंपे हैं वो घाव बहुत गहरे हैं !!
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4- समसामयिक गीत
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दिल छोटे,पर मक़ां हैं बड़े,सारे भाई न्यारे !
अपने तक सारे हैं सीमित,नहीं परस्पर प्यारे !!

       दद्दा-अम्मां हो गये बोझा,
        कौन रखे अब उनको
        टूटे छप्पर रात गुज़ारें
        परछी में हैं दिन को

हर मुश्किल से दद्दा जीते,पर अपनों से हारे !
अपने तक सीमित हैं सारे,नहीं परस्पर प्यारे !!

          मीठा बचपन भूल चुके सब,
          वर्तमान की बातें
           दौलत,धरती,बैल-ढोरवा,
            की ख़ातिर आघातें

अपनी करनी से बेटों ने,फैलाये अँधियारे !
अपने तक सीमित हैं सारे,नहीं परस्पर प्यारे !!

             खेत सिंच रहे,पर दिल सूखे,
               जगह-जगह हरियाली
              रिश्ते तो अब रिसते हर दिन,
               रची अमावस काली

कोर्ट-कचहरी रोज़ाना ही,ह्रदय-मुकदमे हारे  !
अपने तक सीमित हैं सारे,नहीं परस्पर प्यारे !!

              बिलख रहीं चौपालें अब तो,
             नीम खड़ा रोता है
            पीपल वाला मंदिर भी तो,
          रोज़ श्राप देता है

आज वक्त की इस देहरी पर,सब करनी के मारे !!
अपने तक सीमित हैं सारे,नहीं परस्पर प्यारे !!


               ---प्रो.शरद नारायण खरे

सुनीता असीम

मेरी तो जान भी तुझमें बसी है।
कन्हैया तू ही मेरी जिंदगी है।
***
हमारा है मेरी सांसों में जबसे।
खुशी मिलती मुझे तो नित नई है।
***
नज़र जबसे  मिली मेरी हैं तुमसे।
जगी दिल में नई इक रोशनी है।
***
बड़े हो बे-मुरव्वत नंदलाला।
पिला नज़रों से दे दी तिश्नगी है।
***
यहीं सोचूं तुम्हें अपना बनाकर।
मेरे दिल ने करी क्यूं खुदकुशी है।
***
जरा ले लो सुनीता को शरण में।
हे मोहन इल्तिज़ा ये आखिरी है।
***
सुनीता असीम
२९/५/२०२१

डॉ० रामबली मिश्र हरिहरपुरी

हरिहरपुरी का सवैया

मिलना प्रिय से करना दिल से, हर बात कहा करते रहना।
भर अंक सदा रमते रहना, मुँह में मुँह डाल बहा करना।
सब पीर हरो हर क्लेश कटे, उसके मन को पढ़ना लिखना।
मन में अति प्यार भरा करना, प्रिय के दिल से जुड़ते चलना।
मत वाद करो प्रतिवाद नहीं, शुभ भाव बने मन से बहना।
चल हाथ मिलाय निहाल हुए,उसके प्रति स्नेहिल हो दिखना।
मिल एक बने चलना फिरना, मधु  सावन मास सुधा बनना।
अति आतुर भाव बहे मन में , उर आँगन रास सदा रचना।

रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801

सुनीता असीम

आंख में अश्के-रवानी दर्द की।
है यही केवल कहानी दर्द की।
****
इक कसक उठती रहे दिल में कहीं।
दर्द ही  खालिस निशानी दर्द की।
****
 रो रहा हो दिल मगर चहरा हंसे।
जात ये ही है      पुरानी दर्द की।
****
दर्द की खुशियां लगे प्यारी इसे।
आंख करती कद्रदानी दर्द की।
****
कह नहीं पाए किसी से दर्द को।
कौन सुनता खुदबयानी दर्द की
****
सुनीता असीम
२८/५/२०२१

एस के कपूर श्री हंस

।।कॅरोना को खुली चिठ्ठी।।*
*।। जल्द दुनिया से गायब तेरा* 
*गंद होगा।।*
*।।विधा।।मुक्तक।।*
1
कॅरोना महाशय जी आपको
हमारा प्रणाम   है।
जल्द मिलने वाला    आपसे
संबको आराम है।।
तेरी तबाही और तेरे   सबक
सब    याद रखेंगे।
दुनिया भर में हो चुका तू अब
बदनाम        है।।
2
परमाणु हो  या   विषाणु   हो
काट सबको   होती है।
वक़्त आने पर मौत     की तो
आहट संबको होती है।।
जो उड़ता    उसको   होता है 
गिरना                भी।
एक दिन अंत  की   घबराहट
तो  संबको  होती है।।
3
सुन लो कॅरोना माना कि तुम
खून के    प्यासे हो।
विपरीत काल    वाले      तुम
बुद्धि    विनाशे हो।।
लेकिन अब तेरे जाने के  दिन
आ     गए         हैं।
सम्पूर्ण संसार के लिए  केवल
सत्यानाशे       हो।।
4
दवा ने तेरी विदाई अब    तय 
कर       दी     है।
तेरे सीने में भी     आग    पूरी
भर     दी       है।।
तेरे आने से हमें  कमियों   का
भी चला है   पता।
व्यवस्था भी   अब       दुरुस्त
कर    दी       है।।
5
हे कॅरोना तेरे     कहर     और
लहर का अंत होगा।
दूर आँखों से       हमारे    यह
जहर     मंद   होगा।।
फिर वैसा रंग        और    ढंग
वापिस    लायेंगे।
जल्द ही दुनिया     से   गायब
तेरा ये गंद  होगा।।
*रचयिता।। एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।।।।*
मोब।।।।।       9897071046
                     8218685464


*हमारे भारतीय त्यौहार।।।केवल पर्व ही नहीं।।।।संबधों की प्रगाढ़ता का सुअवसर।।।*
होली ,दीवाली, दशहरा,रक्षा बंधन, दुर्गा पूजा,नवरात्रि,लोहड़ी व अन्य  केवल रंगों के खेलने व आतिशबाजी व अन्य बातों के त्यौहार ही नहीं है,अपितु दिलों का रंगना,मिलना इसमें  परम आवश्यक है।रंगों के बहने के साथ ही मन का मैल बहना भी बहुत आवश्यक है ,तभी होली की सार्थकता है।और दीपावली पर जाकर मिलना ,उनके हाथ से मीठा खाना, साथ हंसना बोलना ही पर्व की सार्थकता है।
कहा  गया है कि, अंहकार मनुष्य के पतन का मूल कारण है। अंहकार मनुष्य की बुद्धिविवेक , तर्कशक्ति , मिलनसारिता तथा अन्य गुणों का हरण कर लेता है।व्यक्ति का जितना वैचारिक पतन होता है  ,उतना ही उसका अंहकार बढता जाता है। अंहकार से देवता भी दानव बन जाता है और अंहकार रहित मनुष्य देवता समान हो जाता है।बड़ी से बड़ी गलती के तह में  यदि  जाये ,तो मूल स्रोत में अंहकार को ही पायेंगे।
ईर्ष्या व घृणा का मूल कारण भी अंहकार ही होता है ,जो अन्ततः कई क्षेत्रों में  असफलता का कारण बनता है। होली ,दीपावली व अन्य त्योहार वो अवसर है ,जब कि ,मनुष्य समस्त विद्वेष व कुभावना का त्याग कर  शत्रु को भी मित्र बना सकता है।अंहकारी सदैव विनम्रता विहिन होता है।अंहकार आने से  मनुष्य अपने वास्तविक रूप से भी  ,धीरे धीरे दूर हटने लगता है और एक बहुरूपीये समान बन जाता है।वह कई झूठे  आवरण अोढ लेता है और उसकी  अपनी  असलियत ही लुप्त होने लगती है।अंहकारी में , हम की भावना नहीं  होती है।उसमें  केवल  मैं की  भावना ही होती है।यह भावना नेतृत्व क्षमता  व समाजिक लोकप्रियता के लिए अत्यंत घातक है।अंहकारी व्यक्ति में धीरे धीरे ,धैर्य  , निष्ठा ,सदभावना का अभाव होने लगता है।अंहकार का खानदान बहुत बड़ा है और यह अकेले नहीं आता है और  साथ में कोध्र, स्वार्थ, घृणा ,अहम,लालच, नीचा दिखाने की प्रवर्ति, अलोकप्रियता  ,अधीरता , आलोचना ,निरादर ,कर्मविहीन सफलता की लालसा ,अतिआत्म विश्वास, त्रुटि को स्वीकार न करना, आदि अनेक अवगुण स्वतः ही साथ आ जाते हैं।अतएव ,त्योहारों में बड़ापन दिखायें, एक कदम आगे बढे, दिल से गले लगायें।आप पायेंगे नफरत की बहुत मजबूत सी दिखने वाली दिवार, भरभरा कर एक झटके में ढह जायेगी।
सारांश यही है कि, होलिका दहन मे अहंकार को भी जला कर नाश कर दिया जाना चाहिए।जन्माष्टमी का प्रसाद का आदान प्रदान करें।दीपावली में एक दूसरे के यहाँ अवश्य जाये।रक्षा बंधन पर भाई बहन के यहाँ जाकर राखी बंधवाये।मिलकर दशहरा पर्व पर रावण दहन करें।तभी  इन  पवित्र पावन पर्व की सार्थकता है।पहल करके देखिये, एक कदम बढ़ाइये, आप पाएंगे कि पहले ही दो कदम आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं।गले भी लगिये और दिलों को भी मिलाइये।आप देखेंगे कि त्योहारों की यह मिलन सारिता, एक सकारात्मक परिणाम आपके जीवन में लेकर आयेगी।
*लेखक।।।।।एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।।।।*
9897071046
8218685464

*।।  प्रातःकाल   वंदन।।*
🎂🎂🎂🎂🎂🎂🎂
श्रद्धेय करते  आपका  हम
अभिनन्दन   हैं।
हर्षित गर्वित करतेआपका  
हम   मन      हैं।।
आपका सुख   सम्रद्धि ही
है    हमारा ध्येय।
*आज प्रभातबेला में करते*
*आपका वंदन हैं।।*
👌👌👌👌👌👌👌👌
*शुभ प्रभात।।।।।।।।।।।।।।।।।*
*।।।।।।।।।।।।।।  एस के कपूर*
👍👍👍👍👍👍👍👍
दिनाँक. 29.   05.     2021
🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️

विनय साग़र जायसवाल

ग़ज़ल-

वो यक़ीनन ही मजबूरे-हालात थी 
टालती रहती  हर दिन मुलाकात थी

उसका चेहरा नज़र आता चारों तरफ़
इश्क़ था या कि कोई करामात थी 

दिल फ़िदा होके सब कुछ लुटाता रहा 
उसकी मासूमियत में अजब बात थी 

सर से पा तक सराबोर रहता था मैं
प्यार की इतनी करती वो बरसात थी 

प्यार से उसने जादू सा क्या कर दिया
मेरे सारे ग़मों की हुई मात थी

उसके लफ़्जों से दिल का चमन खिल उठा
 यह  ग़ज़ल थी या कोई मुनाजात थी

जिसकी तारीफ़ करते न *साग़र* थका
इस जहां में अकेली वही ज़ात थी

 🖋️विनय साग़र जायसवाल,बरेली
28/5/2021
मुनाजात-ईश प्रार्थना

नूतन लाल साहू

ये लफ्ज आईनें है

सुनों सुनोंं प्यारे
बातें तो है,बहुत पुरानी
पर है ये अमर कहानी
यहां बड़े बड़े बलवान हुए
धनवान हुए,गुणवान हुए
पर इस दुनिया में
कोई न बचे
जिसने भी अच्छा कर्म किया
उसका गाथा अमर हुआ
अंत समय में उसने मुक्ति पाया
ये लफ्ज आईनें है
मानुष जन्म उन्ही का सफल हुआ
चुन चुन लकड़ी महल बनाया
मूरख कहें घर मेरा
ना घर तेरा ना घर मेरा
चिड़ियां रैन बसेरा
जब तक पंछी बोल रहा है
सब राह देखें तेरा
प्राण पखेरु उड़ जाने पर
कौन कहेगा मेरा
जीवन की डोर जिसने भी किया
हरि के हवाले
उसके जीवन में,हर रोज
आया इक नया सवेरा
ये लफ्ज बोलते है
मन का झुकना बहुत जरूरी है
मानुष जन्म उन्ही का सफल होता है
जो भी आया,प्रभु जी के शरण में
उसे ही, भव से पार उतारा
जो पड़ा,माया मोह के चक्कर में
उसे बीच भंवर में छोड़ा
ये लफ्ज आईने है
जिसे मिला प्रभु जी का सहारा
मानुष जन्म उन्ही का सफल हुआ

नूतन लाल साहू

सुधीर श्रीवास्तव

फौजी
******
फौजी आन,बान,शान है
देश का गौरव,स्वाभिमान है
अपने देश के फौजियों पर
हम सबको बड़ा ही नाज है।
फौजी है तो देश सुरक्षित
दुश्मन तो पूरी तरह ही
पाता है खुद को असुरक्षित,
देश में आई हर विपदा से 
आंधी, तूफान, बाढ़,महामारी
अन्यान्य प्राकृतिक आपदा में
भीषण दुर्घटना, 
देशविरोधी ताकतों से
देश के भीतर बाहर 
षडयंत्रकारियों से
हमें और राष्ट्र को बचाता
हमारा ही फौजी।
हर स्थिति, परिस्थिति में
डटा रहता, जुटा रहता
एक शपथ की खातिर
जान हथेली पर रखता,
देश की खातिर खुद को ही नहीं
परिवार को भी भूल जाता
हमारे देश का जाँबाज़ फौजी।
बिना डरे,झुके या विचलन के
हर हाल में भूख,प्यास और
मोह ,ममता, भय अथवा लालच के
निष्ठुर निर्मोही बनकर
सिर्फ़ कर्तव्य पथ पर डटा रहता
हमारे देश का जाँबाज फौजी।
देश ही नहीं, हम भी हैं 
तभी तो पूर्ण सुरक्षित हैं,
हमारा फौजी जब मुस्तैद है
सुख सुविधा छोड़ जब डटा है।
जब हम चैन से घरों में सोते हैं 
तब हमारी नींद में खलल न पड़े
सुख,सुविधा,नींद तजे दिन रात
अपने कर्तव्य पथ पर चौकन्ना
हमारे देश का जाँबाज फौजी।
◆ सुधीर श्रीवास्तव
      गोण्डा, उ.प्र.
    8115285921
©मौलिक, स्वरचित

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

आओ धरा पे...
आओ धरा पे कृष्ण जी,तेरी धरा को चाह है,
आकर उबारो कष्ट से,चारो तरफ बस आह है।
काली घटाओं से घिरा है,जिंदगी का व्योम यह-
अब तो सुनाई पड़ रही यहाँ,चाँद की कराह है।।

इस विश्व पे है पड़ रही छाया किसी शैतान की,
यह है दिखे साज़िश कुदरती,या किसी हैवान की।
आकर बचा लो नाथ अब,अभिशप्त इस संसार को-
आशीष दे अब शुष्क कर दो,कष्ट-सिंधु अथाह है।।

तेरा बनाया लोक यह,रक्षक तुम्हीं तो नाथ हो,
जो डस रहा है इस समय,तक्षक कोई तो नाग हो।
तेरी महिमा नाथ अद्भुत,तुम तो करुणा-सिंधु हो-
फण को कुचल कर नाग के,कर दो सुगम जो राह है।।

देखते बनती नहीं है,यह विकट अब नाश-लीला,
आता नहीं कैसे कसें ,जो हुआ संबंध ढीला।
गीता का वाचन कर के फिर,मंत्र कोई फूँक दो-
कर दो क्षमा अपराध सारे,जो हुआ गुनाह है।।
            ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
                 9919446372

मधु शंखधर स्वतंत्र

🚩 *सुप्रभातम्*🚩
*मधु के मधुमय मुक्तक*
🌷🌷🌷🌷🌷🌷
🌹🌹 *हस्ताक्षर*🌹🌹
---------------------------------

◆ हस्ताक्षर पहचान है , यही बताता मोल।
जहाँ चले भाषा यही , चले न कोई बोल।
सत्य सिद्ध करता सदा, नीति नियम की बात,
हस्ताक्षर को मान लो, संविधान  का गोल।।

◆ शिक्षित हस्ताक्षर करे , लिखित बढ़ाए मान।
लगा अँगूठा मानते, इसका यही निदान।
सोच समझ पढ़ कर करो, हस्ताक्षर सब जान,
छल कपटी से यह करे, मनुज को सावधान।।

◆ हस्ताक्षर देता सदा, मानव को संकेत।
अक्षर का कर ज्ञान लो, बन जाओ अनिकेत।
जहाँ बसे अज्ञानता, मानव जीवन मूल।
ढह जाए वह स्वयं ही, जैसे टीला रेत।।

◆ हस्ताक्षर से स्वयं की, सोच बने संकल्प।
यही सतत मानें सभी, इसका नहीं विकल्प। 
चेतन मन संज्ञान से, मानव बने महान,
हस्ताक्षर है दीर्घता, मान नहीं यह अल्प।।
*मधु शंखधर स्वतंत्र*
*प्रयागराज*✒️
*29.05.2021*

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

खुशियों का दिया----

रंगोली की बोली उत्साह उमंग है
मन भावो का रंग खास  खुशियां
प्रसंग है।।
आशा अभिलाषा की पूर्णतया 
सुख शांति बैभव का आगमन है।।
दिया जला है प्यार उजियार  का
तमस मन का मिटाना संकल्प है।।
सुख बैभव का आचार व्यवहार
दुःख क्लेश से मुक्ति का आश्वाशन
 आवाहन है।।
जीवन मे भय रोग  बाधा
ना हो, दृश्य अदृश्य शत्रु का
समापन आस्था संस्कार है।।
हताशा निराशा पल ना आवे
नित्य नियमित रिद्धि सिद्धि 
आराधना अवसर अपरिहार्य है।।
जल गए दिये जीवन संचार में
मनौती मान्यता प्राप्ति प्रमाणिकता
प्राथमिकता का अनुष्ठान है।।
बच्चों की चाहत खुशियां 
लौ दिए कि तरह, कुटुंब
परिवार की राह का प्रकाश है।।
फुलझड़ियों आतिश बाजी
द्वेष दंम्भ घृणा के अंधकार
दुनियां पे प्यार मोहब्बत
के जग मग जग मग चिराग है।।

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश

अतुल पाठक धैर्य

शीर्षक-गुज़रे हुए लम्हे
विधा-कविता
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मुस्कुराता हुआ चेहरा उसका जब करीब से देखा था,
हुआ शादाब दिल जो खिल उठा था।

गुज़रे हुए लम्हे फिर लौटकर तो नहीं आते,
पर यादों का कारवाँ होंठों पे हँसी मुस्कान ज़रूर ले आता है।

वो ख़ुशनुमा पल कैसे भूल सकता मैं,
उसके मीठे अल्फ़ाज़ और जादूई मुस्कान को आज भी याद करता मैं।

ज़िन्दगी को सही मायने में जीने के लिए ज़िन्दादिल होना बेहद ज़रूरी है,
दो पल की ज़िन्दगी है इसे यादगार बनाना ज़रूरी है।

खुद को कहीं गुम न होने देना,
खुद को अपनेआप में तलाशना भी ज़रूरी है।

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शीर्षक-असमानता का चश्मा
विधा-कविता
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असमानता का चश्मा जब तक अपनी समझ से न हटा पाओगे,
तब तक न अपने समाज को सुंदर और न अपने देश को मेरा भारत महान बना पाओगे।

जहां बेटियों और महिलाओं को समान दर्जा न दिला पाओगे,
वहां कभी सशक्त समाज की कल्पना भी न कर पाओगे।

आज किसी भी क्षेत्र में महिलाएं पुरुषों से कतई कमतर नहीं फिर भी अगर बेटियों को आगे बढ़ने का अवसर न दे पाओगे,
तो याद रखना समाज में कभी सही मायने में विकास न कर पाओगे।

रचनाकार-अतुल पाठक " धैर्य "
जनपद हाथरस(उत्तर प्रदेश)
मौलिक/स्वरचित रचना

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