डॉ0 हरि नाथ मिश्र

सातवाँ-2
  *सातवाँ अध्याय*(श्रीकृष्णचरितबखान)-2
पुनि उठाइ क गोद कन्हैया।
स्तन-पान करवनी मैया।।
    मिलि सभ गोप उठाइ क लढ़िया।
    सीधा करि क दीन्ह वहिं ठढ़िया।।
दधि-अछत अरु कुस-जल लइ के।
लढ़िया पूजे पुनि सभ मिलि के।।
    इरिषा-हिंसा-दंभ बिहीना।
    सत्यसील द्विज आसिष दीना।।
बाल कृष्न कै भे अभिषेका।
पढ़ि-पढ़ि बेद क मंत्र अनेका।।
    पाठ 'स्वस्त्ययन' अरु 'हवनादी'।
    नंद कराइ लीन्ह परसादी।।
बिधिवत ब्रह्मन-भोज करावा।
गऊ-दच्छिना-दान दिलावा।।
     कंचन-भूषन-सज्जित गैया।
     द्विजहिं दान दिय बाबा-मैया।।
एक बेरि जब मातु जसोदा।
लइके किसुनहिं आपुन गोदा।।
     रहीं दुलारत हिय भरि नेहा।
     कृष्न-भार तहँ भारी देहा।।
सहि नहिं सकीं कृष्न कै भारा।
तुरत कृष्न कहँ भूइँ उतारा।।
     लगीं करन सुमिरन भगवाना।
     लीला बाल कृष्न जनु जाना।।
रहा दनुज इक कंसहिं दासा।
त्रिनावर्त तिसु नाम उदासा।।
     आया गोकुल होइ बवंडर।
     किसुनहिं लइ नभ उड़ा भयंकर।।
बहु-बहु धूरि उड़ाइ अकासा।
ब्रजहिं ढाँकि जन किया हतासा।।
    उठत बवंडर गर्जन घोरा।
    रजकन-तम पसरा चहुँ-ओरा।।
सब जन बेसुध अरु उदबिगना।
इत-उत भागहिं लउके किछु ना।।
दोहा-घटना अद्भुत घटत लखि,बाबा नंद बिचार।
         सत्य कथन बसुदेव कै, भयो मोंहि एतबार।।
                    डॉ0हरि नाथ मिश्र
                     9919446372

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