आठवाँ-1
*आठवाँ अध्याय*(श्रीकृष्णचरितबखान)-1
रहे पुरोहित जदुकुल नीका।
पंडित गर्गाचारहिं ठीका।।
आए गुरु गोकुल इक बारा।
जा पहुँचे वै नंद-दुवारा ।।
पाइ गुरुहिं तहँ नंदयिबाबा।
करि प्रनाम लीन्ह असबाबा।।
ब्रह्मइ गुरु अरु गुरु भगवाना।
अस भावहिं पूजे बिधि नाना।।
बिधिवत पाइ अतिथि-सत्कारा।
भए मगन गुरु नंद-दुवारा।।
करि अभिवादन निज कर जोरे।
कहे नंद अति भाव-बिभोरे ।।
तुमहीं पूर्णकाम मैं मानूँ।
केहि बिधि सेवा करउँ न जानूँ।।
बड़े भागि जे नाथ पधारे।
अवसि होहि कल्यान हमारे।।
निज प्रपंच अरु घर के काजा।
अरुझल रहहुँ सुनहु महराजा।।
पहुँचि पाउँ नहिं आश्रम तोहरे।
छमहु नाथ अभागि अस मोरे।।
भूत-भविष्य-गरभ का आहे।
जानै नहिं नर केतनहु चाहे।।
ब्रह्म-बेत्ता हे गुरु ग्यानी।
जोतिष-बिद्या तुमहिं बखानी।।
करि के नामकरन-सँस्कारा।
मम दुइ सुतन्ह करउ उपकारा।।
मनुज जाति कै ब्रह्मन गुरुहीं।
धरम-करम ना हो बिनु द्विजहीं।।
डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
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