डॉ0 हरि नाथ मिश्र

आठवाँ-1
  *आठवाँ अध्याय*(श्रीकृष्णचरितबखान)-1
रहे पुरोहित जदुकुल नीका।
पंडित गर्गाचारहिं ठीका।।
    आए गुरु गोकुल इक बारा।
    जा पहुँचे वै नंद-दुवारा ।।
पाइ गुरुहिं तहँ नंदयिबाबा।
करि प्रनाम लीन्ह असबाबा।।
     ब्रह्मइ गुरु अरु गुरु भगवाना।
     अस भावहिं पूजे बिधि नाना।।
बिधिवत पाइ अतिथि-सत्कारा।
भए मगन गुरु नंद-दुवारा।।
     करि अभिवादन निज कर जोरे।
      कहे नंद अति भाव-बिभोरे ।।
तुमहीं पूर्णकाम मैं मानूँ।
केहि बिधि सेवा करउँ न जानूँ।।
    बड़े भागि जे नाथ पधारे।
     अवसि होहि कल्यान हमारे।।
निज प्रपंच अरु घर के काजा।
अरुझल रहहुँ सुनहु महराजा।।
     पहुँचि पाउँ नहिं आश्रम तोहरे।
      छमहु नाथ अभागि अस मोरे।।
भूत-भविष्य-गरभ का आहे।
जानै नहिं नर केतनहु चाहे।।
     ब्रह्म-बेत्ता हे गुरु ग्यानी।
     जोतिष-बिद्या तुमहिं बखानी।।
करि के नामकरन-सँस्कारा।
मम दुइ सुतन्ह करउ उपकारा।।
    मनुज जाति कै ब्रह्मन गुरुहीं।
    धरम-करम ना हो बिनु द्विजहीं।।
                डॉ0हरि नाथ मिश्र
                 9919446372

कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...