आठवाँ-2
*अठवाँ अध्याय*(श्रीकृष्णचरितबखान)-2
सुनि अस बचन नंद बाबा कै।
गर्गाचार बाति कह मन कै।।
सुनहु नंद जग जानै सोई।
गुरु जदुबंस कुलयि हम होंई।।
कहे नंद बाबा हे गुरुवर।
अति गुप करउ कार ई ऋषिवर।।
'स्वस्तिक-वाचन' मम गोसाला।
अति गुप-चुप प्रभु करउ निराला।।
अति एकांत जगह ऊ अहई।
नामकरन तहँ बिधिवत भवई।।
गुप-चुप कीन्हा गर्गाचारा।
तुरतयि नामकरन संस्कारा।।
'रौहिनेय' रामयि भे नामा।
तनय रोहिनी अरु 'बल'-धामा।।
रखहिं सबहिं सँग प्रेम क भावा।
नाम 'संकर्षन' यहि तें पावा ।।
साँवर तन वाला ई बालक।
रहा सबहिं जुग असुरन्ह-घालक।।
धवल-रकत अरु पीतहि बरना।
पाछिल जुगहिं रहा ई धरना।
सोरठा-नंद सुनहु धरि ध्यान,कृष्न बरन यहि जन्महीं।
नाम कृष्न गुन-खान,रखहु अबहिं यहि कै यहीं।।
डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
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