डॉ0 हरि नाथ मिश्र

आठवाँ-2
  *अठवाँ अध्याय*(श्रीकृष्णचरितबखान)-2
सुनि अस बचन नंद बाबा कै।
गर्गाचार बाति कह मन कै।।
     सुनहु नंद जग जानै सोई।
     गुरु जदुबंस कुलयि हम होंई।।
कहे नंद बाबा हे गुरुवर।
अति गुप करउ कार ई ऋषिवर।।
    'स्वस्तिक-वाचन' मम गोसाला।
     अति गुप-चुप प्रभु करउ निराला।।
अति एकांत जगह ऊ अहई।
नामकरन तहँ बिधिवत भवई।।
    गुप-चुप कीन्हा गर्गाचारा।
    तुरतयि नामकरन संस्कारा।।
'रौहिनेय' रामयि भे नामा।
तनय रोहिनी अरु 'बल'-धामा।।
    रखहिं सबहिं सँग प्रेम क भावा।
     नाम 'संकर्षन' यहि तें पावा ।।
साँवर तन वाला ई बालक।
रहा सबहिं जुग असुरन्ह-घालक।।
    धवल-रकत अरु पीतहि बरना।
    पाछिल जुगहिं रहा ई धरना।
सोरठा-नंद सुनहु धरि ध्यान,कृष्न बरन यहि जन्महीं।
           नाम कृष्न गुन-खान,रखहु अबहिं यहि कै यहीं।।
                          डॉ0हरि नाथ मिश्र
                           9919446372

कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...