डॉ0 हरि नाथ मिश्र

आठवाँ-9
  *आठवाँ अध्याय*(श्रीकृष्णचरितबखान)-9
उमड़त नेह लगै जस सागर।
जसुमति-हृदय कृष्न प्रभु नागर।।
    जसुमति-पुत्र उहहिं भगवाना।
     बेद-सांख्य जे जोग बखाना।।
सकल उपनिषद महिमा गावैं।
जे प्रभु भजत भगत सुख पावैं।।
     सो प्रभु जनम भयो गृह जसुमत।
     धनि-धनि भागि जाय नहिं बरनत।।
धनि-धनि भागि जसोदा मैया।
जाकर स्तन पियो कन्हैया।।
     बाबा नंद त जोगी रहईं।
     यहिं तें कृष्न लला सुत पवईं।।
लला जसोदा लीला करहीं।
गोपी-सखा परम सुख लहहीं।।
     जसुमति-नंद अनंदित होवैं।
     पर सुख अस बसुदेवयि खोवैं।।
अस सुख मिलै न मातु देवकी।
कारन कवन बता मुनि अबकी।।
   अस सुनि प्रस्न मुनी सुकदेवा।
   कहे परिच्छित सुनु चित लेवा।।
दोहा-धरा-द्रोन-उर मा रहइ, ब्रह्मा-भगति अपार।
        मिलइ उनहिं किसुनहिं भगति,कह जा ब्रह्मा द्वार।।
       एवमस्तु तब तुरत कह,ब्रह्मा दियो असीष।
        अगले जनमहिं पाइ ते,तनय रूप जगदीस।।
        द्रोन भए ब्रज नंदहीं,धरा जसोदा रूप।
         पुत्र तिनहिं कै कृष्न भे,लीला करहिं अनूप।।
         पति-पत्नी कै रूप मा,गोपी-गोपिहिं साथ।
         निरखहिं लीला किसुन कै,अरु बलरामहिं नाथ।।
                        डॉ0हरि नाथ मिश्र
                          9919446372

कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...