डॉ0 हरि नाथ मिश्र

आओ धरा पे...
आओ धरा पे कृष्ण जी,तेरी धरा को चाह है,
आकर उबारो कष्ट से,चारो तरफ बस आह है।
काली घटाओं से घिरा है,जिंदगी का व्योम यह-
अब तो सुनाई पड़ रही यहाँ,चाँद की कराह है।।

इस विश्व पे है पड़ रही छाया किसी शैतान की,
यह है दिखे साज़िश कुदरती,या किसी हैवान की।
आकर बचा लो नाथ अब,अभिशप्त इस संसार को-
आशीष दे अब शुष्क कर दो,कष्ट-सिंधु अथाह है।।

तेरा बनाया लोक यह,रक्षक तुम्हीं तो नाथ हो,
जो डस रहा है इस समय,तक्षक कोई तो नाग हो।
तेरी महिमा नाथ अद्भुत,तुम तो करुणा-सिंधु हो-
फण को कुचल कर नाग के,कर दो सुगम जो राह है।।

देखते बनती नहीं है,यह विकट अब नाश-लीला,
आता नहीं कैसे कसें ,जो हुआ संबंध ढीला।
गीता का वाचन कर के फिर,मंत्र कोई फूँक दो-
कर दो क्षमा अपराध सारे,जो हुआ गुनाह है।।
            ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
                 9919446372

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