*नवाँ अध्याय*(श्रीकृष्णचरितबखान)-1
एक बेरि जसुमति नँदरानी।
मथन लगीं दधि लेइ मथानी।।
सुधि करतै सभ लला कै लीला।
दही मथैं मैया गुन सीला।।
कटि स्थूल भाग पै सोहै।
लहँगा रेसम कै मन मोहै।।
पुत्र-नेह स्तन पय-पूरित।
थकित बाँह खैंचत रजु थूरित।।
कर-कंगन,कानहिं कनफूला।
हीलहिं जनु ते झूलहिं झूला।।
छलक रहीं मुहँ बूंद पसीना।
पुष्प मालती चोटिहिं लीना ।।
रहीं मथत दधि जसुमति मैया।
पहुँचे तहँ तब किसुन कन्हैया।।
पकरि क तुरतै दही-मथानी।
चढ़े गोद मा जसुमति रानी।।
लगीं करावन स्तन-पाना।
मंद-मंद जसुमति मुस्काना।।
यहि बिच उबलत दूध उफाना।
लखि जसुमति तहँ कीन्ह पयाना।।
छाँड़ि कन्हैया बिनु पय-पानहिं।
जनु अतृप्त-छुब्ध अवमानहिं।।
क्रोधित कृष्न भींचि निज दँतुली।
लइ लोढ़ा फोरे दधि-बटुली।।
निज लोचन भरि नकली आँसू।
जाइ क खावहिं माखन बासू।।
उफनत दूध उतारि क मैया।
मथन-गृहहिं गइँ धावत पैंया।।
फूटल मटका लखि के तहवाँ।
जानि लला करतूतै उहवाँ।।
प्रमुदित मना होइ अति हरषित।
बिहँसी लखि लीला आकर्षित।।
उधर किसुन चढ़ि छींका ऊपर।
माखन लेइ क छींका छूकर।।
रहे खियावत सभ बानरहीं।
बड़ चौकन्ना भइ के ऊहहीं।।
कर गहि छड़ी जसूमति मैया।
जा पहुँची जहँ रहे कन्हैया।।
देखि छड़ी लइ आवत माई।
डरि के कान्हा चले पराई।।
बड़-बड़ मुनी-तपस्वी-ग्यानी।
सुद्ध-सुच्छ मन प्रभुहिं न जानी।।
सो प्रभु पाछे धावहिं माता।
लीला तव बड़ गजब बिधाता।।
दोहा-आगे-आगे किसुन रहँ, पाछे-पाछे मातु।
भार नितम्भहिं सिथिल गति,थकित जसोदा गातु।।
डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
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