डॉ0 हरि नाथ मिश्र

*सजल*
मात्रा-भार--16
समांत--इया
पदांत--भाई
जगत बड़ा है छलिया भाई,
आज धवल कल करिया भाई।।

नित नूतन यह रूप दिखाता,
अभी सुखी फिर दुखिया भाई।।

मिले किसी को पलँग-बिछौना,
नहीं किसी को खटिया भाई।।

कुछ को लगता विष भी अमृत,
कुछ को अमृत घटिया भाई।।

कहीं झाड़ है काँटों वाली,
कहीं आम की बगिया भाई।।

चाहे जैसा भी यह जग है,
इसको समझो बढ़िया भाई।।

आश्रय देता यही सभी को,
जैसे संतों की कुटिया भाई।।
        ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
            9919446372

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