आशुकवि एवं काव्य रंगोली परिवार के संस्थापक एवं काव्य रंगोली पत्रिका के संपादक लोकप्रिय कवि साहित्यकार रचनाकार समीक्षक, मार्गदर्शक श्री नीरज अवस्थी जी का कोरोना से आज दिनांक 11 मई 2021 को सुबह हुआ निधन, साहित्य जगत की हुई अपूर्णिय क्षति, उनकी रिक्ति भर पाना असम्भव, परमात्मा का क्रूर प्रहार, अंश्रूपूरित श्रद्धांजलि समर्पित।
जनपद लखीमपुर खीरी के ऐरा खमरिया पंडित गांव निवासी आशुकवि एवं काव्य रंगोली परिवार के संस्थापक एवं काव्य रंगोली पत्रिका के संपादक लोकप्रिय कवि साहित्यकार रचनाकार समीक्षक श्री नीरज अवस्थी का कोरोना से आज दिनांक 11 मई 2021 को सुबह निधन हो गया। दादा की अच्छाई के बारे में और साफगोई के बारे जितना कहा जाए वह कम ही होगा।
श्री नीरज अवस्थी के निधन से साहित्य जगत की अपूरणीय क्षति हुई है, उनका जाना हमारे लिए निजी छती है ,मैंने अपना एक मार्गदर्शक खो दिया ,आशु कवि श्री नीरज अवस्थी ने बहुत ही कम संसाधन में साहित्य की जो सेवा की है उसे सदियों सदियों तक याद किया जाएगा ,श्री नीरज अवस्थी जी साहित्य जगत की एक ऐसी शख्सियत थे जिन्होंने कभी ऊंच नीच छोटे बड़े का भेदभाव जाना ही नहीं, उन्होंने देश के विभिन्न कोने कोने से कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक के साहित्यकारों को खमरिया गांव बुलाकर सम्मानित किया, मेरा भी सौभाग्य रहा कि मुझे भी आपके संस्था व आपके हाथों से सम्मानित होने का अवसर प्राप्त हुआ, ईश्वर आपकी आत्मा को शांति प्रदान करें तथा घोर दु:ख की इस घड़ी में परिवार को दु:ख सहने की असीम क्षमता प्रदान करें।
ॐशांतिॐ
😭😭😭😭😭🙏🙏🙏🙏🙏
दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल
कि थक गया हूं बस करो
दूर तलक जा होना है आसमानी
नई इबारत लिख रहा हूं बस करो।
गुफ्तगू की नये सफर की
मृत्यु तो आनी ही है जी लिजिए
अमर होना है अगर हर दिलों में
मरकर जिंदगी के चरम ले लिजिए।
क्यों! मौत को चुपके से बुलाया
व्याकुल हो गये स्तब्ध हैं सब
मौत को आनी थी कल कहा था
आमंत्रित ऐसे किया स्तब्ध हैं सब।
अश्रुपूरित_श्रद्धांजलि_आशुकवि_नीरज_अवस्थी_दादाजी
दयानन्द_त्रिपाठी_व्याकुल
महराजगंज, उत्तर प्रदेश।
नीचे दी गरीब मेरी यह रचना स्व0 आशुकवि नीरज अवस्थी दादा जी को सहृदय 😭😭😭😭😭😭🙏🙏🙏🙏समर्पित करता हूं...
पानी बिकने लगा हंसी हो हवा बिके परिहास,
नहीं होश है मानव संकट में हार रहा इतिहास।
आसूं औ दहशत का आलम हर नयनों में उभर रही,
जानें कितने आशाओं पर बज्र पात सी मचल रही।
ऐ मरने वालों सुनों गुज़ारिश वोट डालते जाओ तुम,
निष्ठुर समय बता रहा है मृत्यु द्वारे सजल रही।
राजनीति का चाबुक ऐसा अटक रही हैं सांसें अब,
जीत रही सियासत देखो हारी ले मानवता उपहास।
पानी बिकने लगा हंसी हो हवा बिके परिहास,
नहीं होश है मानव संकट में हार रहा इतिहास।
सांसों का संकट है फैला कभी यहां और कभी वहां,
सभी दलों के नेता सारे एक्जिट पोल पर लड़े जहां।
कहीं बिलखता बचपन है तो कहीं जवानी डूब गयी,
देखो सारे श्रवण तुम्हारे घातक बाणों से मरे जहां।
कटुता-कपट-कुसंगत तेरे पर उपदेश कुशल बहुतेरे,
सब कालखण्ड में अंकित होंगें ले स्वर्णिम इतिहास।
पानी बिकने लगा हंसी हो हवा बिके परिहास,
नहीं होश है मानव संकट में हार रहा इतिहास।
जब भी रावण खड़ा सामने दिख जाये लो चेत,
संहारक हैं कृष्ण धरा की करें श्रीराम सा हेत।
उत्तर-दक्षिण, पूरब-पश्चिम हाहाकार चहुंओर,
लेकिन तृष्णा नहीं गयी है हैं गज़ब चरित्र के प्रेत।
इस समर का पहर बहुत है बाकी करनी है गणना,
ताप-तपित धरती है व्याकुल स्वार्थ लोभ बनवास
पानी बिकने लगा हंसी हो हवा बिके परिहास,
नहीं होश है मानव संकट में हार रहा इतिहास।
है सुविधा अनगिनत जहां में फिर भी संकट है गहरा,
सुख के सब सामान जुटाके देते है मरघट में पहरा।
हर प्राणी है सहमा-सहमा मृत्यु का आभास लिए,
सदा सत्य है मृत्यु लेकिन फिर भी जीवन है गहरा।
नैतिकता के रखवाले सारे सच्चे साधक नहीं रहे,
अब सम्प्रभुता पाने की खातिर कर डाले बकवास।
पानी बिकने लगा हंसी हो हवा बिके परिहास,
नहीं होश है मानव संकट में हार रहा इतिहास।
© दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल
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