सुनीता असीम

प्यार को घटते हुए देखा गया है।
नफरतें बढ़ते हुए देखा गया है।
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जो बना बलवान फिरता है जगत में।
उसको भी डरते   हुए देखा गया है।
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आग की महिमा  भला कैसे कहें हम।
अग्नि को जलते  हुए देखा गया है।
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जब हुई कृपा कभी भगवान की है।
अंधे को पढ़ते हुए देखा गया है।
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दर्प कैसे इस जवानी का करें फिर।
जब इसे  ढलते हुए देखा गया है।
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सुनीता असीम
१२/४/२०२१

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