देवानंद साहा आनंद अमरपुरी

............कुदरत का कहर...........

हर तरफ दिखते हैं कुदरत का कहर।
हर बस्ती,गाँव,जिला,तालूका,शहर।।

जिन पंचतत्व  का बना शरीर हमारा;
कभी सहना पड़ता है उनका कहर।।

प्रकृति से मनुष्य का बढता छेड़छाड़;
इसी बदौलत होते प्रकृति का कहर।।

ताउते,यास,आमफान,तितली आदि;
दिखाते रहते आग -पानी का लहर।।

राजनीति का हर ओर होता घुसपैठ;
घोलता रहता है वैमनस्य का जहर।।

आतताइयोंऔर स्वार्थियों के कारण;
लोगों को पीड़ाते  प्रगति का  ठहर।।

अंत में मिलता प्रकृति से ही"आनंद"
चैन से कटताशेष जीवन का पहर।।

-----देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"

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