ग़ज़ल--
कुछ दोस्तों ने प्यार ही इतना जता दिया
दुनिया का दर्द हमने भी हँसकर भुला दिया
ख़ुशबू हरेक गुल में है अपनी अलग अलग
रिश्तों को बस ये सोच के हमने निभा दिया
मैं मुनतज़िर था देगा कोई तो
जवाब वो
उसने मेरे सवाल पे बस मुस्कुरा दिया
ऐ दोस्त मुझको लाके ख़यालों की भीड़ में
इस ज़िन्दगी ने और भी तन्हा बना दिया
दुनिया से जाके आँख मिलाऊँ तो किस तरह
इल्ज़ाम उसने ऐसा मेरे सर लगा दिया
परछाईं मेरी आके मेरे पाँव पड़ गयी
जब मैंने चढ़ते शम्स को सर पर बिठा दिया
*साग़र* फ़ज़ाएं आज हैं क्यों कर धुआँ-धुआँ
शायद किसी ने मेरा नशेमन जला दिया
🖋️विनय साग़र जायसवाल,बरेली
मुन्तज़िर-प्रतीक्षा रत
शम्स-सूरज
नशेमन-आवास ,घोंसला,
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