कहां है सुख
सुख और दुःख दोनों
इंसान के लिए
इंसानियत के गतिमान पहिए है
सुख तन और धन में नही
सुख सिर्फ मन में है
निःस्वार्थ भाव से
मदद करना सबकी
इनायत न करना
शिकायत अगर कोई
रखता हो तुमसे
पलट के तुम उनसे
शिकायत न करना
इन्ही से बनता है इंसान
इन्ही से बनता है हमारी
दिव्य आत्मा का परिधान
ये प्रेम और है क्या
जीवन का ही गायन है
सिर्फ सांसे नही है,जरूरी
जो हमको रखे जिंदा
सत्कर्म और मानवता से ही
सच्चा सुख मिलता है
नश्वर मानव तन पाकर
सुख का भोग न कर पाओगे
बिना दुखो का स्वाद चखे
सुख वर्षो की सुदीर्घता में नही
शायद एक क्षण में है
पर्वत की विशालता में नही
शायद एक कण में है
सुख तन और धन में नही
सुख सिर्फ मन में है
नूतन लाल साहू
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