"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
आशुकवि रमेश कुमार द्विवेदी चंचल
पावनमंच कोप्रणाम ,वन्दन ,नमन व अभिनन्दन ,आज की मेरी रचना में ईश वन्दना ।।पद।। व समायिक छन्द सवैया ह़ै,अवलोकन करें..।।पद।। जाँऊ कहाँ तजि शरन तिहारी।। बालेपनु तै उमरि ढलतु तकु देखि कैइव दरबारी।। हौं तौ गयौ कछू देवी देवतानहि पायौ भवहारी।। कमलनैन कै भाव ना पायौं नहि मोहन त्रिपुरारी।। लोगु बतावतु सिद्धिधामु कयी मुल कँह भाव तिहारी।। मोरमुकुट छवि वशी मधुरमन मन ना रमैं ई मुरारी।। कानन छवि मकराकृत कुंडल पग सोहै नुपुरु तिहारी।। काशी गया वनारसु घूम्यौ अबु वृन्दावन वारी।। भाखत चंचल का छवि वरनौं करूनासिन्धु खरारी।।1।। सवैया छन्द ।।सामयिक।। माह जो आवतु नीकहु जेठ गरीबनु गाँव मजा करिहैं।। घूमिहैं केहु केहु शादी वियाहु औ बागनु बीचु हवा मिलिहैं।।। आमु गिरैं जँहु भाँति कैइव अरू भिन्नन भिन्न स्वादु लेवैहैं।। भाखत चंचल काव कही अबु ख्यातनु पाँसि सबै डरिहैं ।।1।।। किसानु केऊ छोडि़हैं बेरनिऊ औ धान कै खेत तयार करैंहै।। गेंहू तौ काटि धरें जो भुसैलनु बीजहु धानु कोठारी हटै़ंहैं।। छानि औ छापर छैइहँय केऊ केऊ कंडा भुसैला तयार करैहैं।। भाखत चंचल काव कही अबु घूमबु छाँडि ऊ खेती करैंहैं।।2।।। ख्यातनु दूबि खनाई करैं अरू खर पतवारू निकारि धरैंगे।। गाय औ भैसिऊ दूध निकारिनिकारि के हाटु बजारू बेचैंगे।। गरीबी हटैगी जो खेती बने सरकारू हजार जौ सिक्स मिलैंगे।। भाखत चंचल मेहनतु के बलु जैविक खेती किसानु करैंगे।।3।। गिरिहँय आम मधूपनू बीजु औ जामुन कालि गुलालु गिरैंगी।। धावै पवन करि झोंका जो राति तौ झोलनू साथु ऊ बाग भिरैंगी।। उठि भिनुसारू बिनैंगे ऊ जामुन आसव नीकनु नीकु धरैंगी।। भाखत चंचल नीकु मजा फल कटहलु खूब बजारू बिकैंगी।।4।। आशुकवि रमेश कुमार द्विवेदी, चंचल।ओमनगर, सुलतानपुर, उलरा, चन्दौकी, अमेठी ,उ.प्र.।।मोबाइल..। 8853521398,9125519009।।
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