जयश्री श्रीवास्तव

प्रतियोगिता के लिए
अलमारी मे रखे पुराने खत
अलमारी में रखे पुराने खतों ने सोई स्म्रतियों को जगा दिया
बीते हुए सुनहरे  पलो को दुहरा दिया
भूल कर सब काम पढ़ने बैठ गयी
अतीत की गलियों में गुम हो
गयी
कॉलेज में उनसे मुलाकात हुई थी
दिल मे प्यार की शमा जली थी
साथ जीने मरने की कसमें खाई थी
अपने अपने मन की बात ये खतों द्वारा पहुँचायी थी
बहुत कुछ कहना चाहते थे
सामने होने पर चाह कर भी होठ न हिलते थे
डाकिए का रोज करते थे  इंतज़ार
दूर से उसे आता देख लगता मानो आ गया मेरा प्यार
खत ले दौड़ पड़ते थे
छत के किसी कोने में बैठ पढ़ते थे
फिर सहेज अलमारी में धरते थे
गुलाब की पंखुड़ियां उनमें रखते थे
खुश्बू से प्रिय के पास होने का अहसास करते थे
भाग्यशाली थे पाया उसे जिसे करते थे प्यार
प्रभु ने मुझे दिया मनचाहा उपहार
वो फ़ौज में रह देश सेवा करते थे
हमारी मनोभाव ये खत व्यक्त करते थे
तब नही फोन हुआ करता था
सुख दुख की खबर ख़त ही दिया करते थे
आखिरी खत हाथ रह गया था
यही मुझे ज़िन्दगी भर का दर्द दे गया था
आऊँगा अपनी परी को देखने
पर आने से पहले कर्तव्य का खत उन्हें मिला
छुट्टी रद्द हुई सीमा पर जाने का आदेश मिला
मैं राह तकती रही बेटी को लिए
बिन बेटी को देखे वो शहीद हुए
बार बार इन्हें पढ़ती हूँ चूमती हूँ
अपनी अनमोल धरोहर को सहेज अलमारी में बंद रखती हूँ
जब जब अलमारी खोलती हूँ
खतों से यादो की महक आती है 
जो हँसाती, गुदगुदाती रुलाती है
यही तो धन दौलत से बड़ी मेरे जीवन की थाती है

स्वरचित
जयश्री श्रीवास्तव
जया मोहन
प्रयागराज

कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...